पिछले कुछ वर्षों में मौसम ने जिस तरह से करवट बदला है उससे आने वाले खतरे का अंदेशा होने लगा है | बिन मौसम के बारिश की मार हो या दिन प्रतिदिन चिलचिलाती गर्मी का टूटता रिकॉर्ड , बादल फटने की बढ़ती घटनाएं हों या फिर सैकड़ों को काल के गाल में ले जाने वाली लू का प्रकोप , निश्चित तौर पर प्रकृति हमें आगाह कर रही है | प्रकृति से हो रहे छेड़छाड़ ने पूरे पारिस्थितिकीय तंत्र को बदल दिया है जिससे प्रतिदिन एक नई चुनौती जन्म ले रही है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन एक तरफ इन संसाधनों की भविष्य में उपलब्धता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की समस्या को भी जन्म दे रहा है | आज मनुष्य की भौतिकवादी जीवनशैली एवं उपभोक्तावादी आचरण की कीमत पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक जीव किसी न किसी रूप में चुका रहा है | आर्थिक प्रगति को विकास की धुरी मान बैठा मानव जिस प्रकार से प्रकृति रुपी उसी डाल को काट रहा है जिसपर उसका अस्तित्व टिका है, निश्चित तौर पर उसकी सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है | विगत कुछ वर्षों से देश में बारिश की कमी की वजह से जहाँ कई राज्य सूखे का दंश झेल चुके हैं वहीं भार...