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देश का हाल

ये देश उबल रहा है ये देश जल रहा है, सियासी गलियारों में नफ़रत का खेल चल रहा है। वादों की हांडी पर देश के अरमानों को रख, गिरगिट से तेज नेताओं का रंग बदल रहा है। पथराई आँखों में 'दीप ' उम्मीद की रोशनी भी नहीं, बंजर जमीं पर जैसे हल चल रहा है। क्यूँ ? ख़ुदकुशी को मजबूर हो रहा अन्नदाता, जिसके मेहनत से सबका पेट पल रहा है। गीता बाइबल और कुरान आज हो गयीं बेजान, धर्म के नाम पर लहू बहा रहा है इन्सान। मन्दिर और मस्जिद की बदल रही हैं फिजाएं, राम रहीम को लड़ाने का खेल चल रहा है। बेगुनाहों के मौत पर भी सियासत होने लगी है, हैवानियत से हार इंसानियत रोने लगी है झूठे मक्कारों ने कर ली है तरक्की इतनी, हर गली- हर तरफ इन्हीं का खेल चल रहा है। कभी कहलाता था देश हमारा सोने की चिड़िया, रिश्तों की पाठ हमसे पढ़ती थी दुनिया अब तो अपने आँगन में महफ़ूज नहीं मासूम, हर घर के अन्दर ही कोई रावण पल रहा है।