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बरसाती मेंढक

चुनावी बरसात में आ जाते हो तुम, कुछ पल के लिए टरटराते हो तुम  चुनावी मौसम बहुत भाता है तुम्हे ,  हर वितर्क पर लार टपकाते हो तुम  कीचड़ से नाता बहुत है पुराना , कीचड़ से ही हमेशा नहाते हो तुम धर्म जाति पर होती है गिद्ध नज़र  जनता को आपस में लड़ाते हो तुम  जैसे ही ख़त्म हो जाता है चुनाव  न जाने कहाँ गुम हो जाते हो तुम