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हिन्दी राग़

                                    आज वर्षों बाद एक कवि सम्मलेन में जाने का मौका मिला । इस सम्मलेन का आयोजन हिंदी की रोजी रोटी खाने वाली एक बड़ी संस्था ने किया था । हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कवि सम्मलेन में कई मूर्धन्य कवि पधार रहे थे। इन मूर्धन्यों के बीच मेरा कद इतना बड़ा ही था जितना किसी हिंदीभाषी क्षेत्र से आये छात्र का अंग्रेजी माध्यम से पढाई करने वाले छात्रों के बीच होता है । अंग्रेजियत के माहौल में पले बढ़े इन महानुभावों के बीच   बैठकर   मेरा वही हाल हो रहा था जैसाकि किसी निगमीय कार्यालय में साक्षात्कार के लिए बैठे हिन्दीभाषी प्रतिभागी का होता है । बराबर की कुर्सी पर मुझ जैसे निरीह प्राणी को देखकर एक सज्जन से नहीं रहा गया , परिणाम स्वरुप उनके शब्द बाण का मुझे शिकार होना पड़ा । मसलन आप कहाँ से हैं ? आपको   पहले   कभी   नहीं   देखा  , क्या आप हिंदी में कवितायेँ ... ? इत्यादि प्रश्न सुनकर मै दंग रह गया। भारत जैसे देश में जहाँ हिन्दी दिवस मना...