तेरा ख़त
जब भी उदास होता हूँ , झंझावातों में उलझकर होठों पर हल्की मुस्कान, बिखेर जाता है तेरा ख़त जब भी मायूस होता हूँ, असफलताओं के बाद रौशनी की किरण दिल में जगा जाते हैं वो शब्द तन्हाईयों के बिस्तर पर जब नींद आती नहीं है लोरी बनकर मुझे सुला जाते हैं वो लिखे अक्षर डगमगाते हैं जब भी पाँव ज़िन्दगी के डगर पर आँखों से कानों तक पहुँच हौसला दे जाते स्वर न होकर भी पास होते हो हर कदम साथ तुम कैसी ये ज़िन्दगी होती, न होते पास जो तेरे ख़त