संदेश

सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज़िंदगी का सफ़र

खिड़की से दिखा जो, आसमाँ समझ लिया | साथ में तन्हा भीड़ थी , कारवां समझ लिया || ज़िन्दगी के सवालों में, उलझा हुआ था कभी | आसान से सवालों को,  इंतहां समझ लिया || खुद से दूर होकर जब, तलाशता रहा खुशियाँ | किराये के मकां को ही, आशियाँ समझ लिया | ठोकरों ने सिखाया,  सम्भलकर चलना मुझे | ठोकरों को जब मैंने,  हमनवां समझ लिया || वक्त ने दिखाये 'दीप', ज़िंदगी के हजारों रंग | ज़िंदगी का हर लम्हा, हसीं दास्तां समझ लिया ||

तकनीकी युग में शिक्षक की प्रासंगिकता

शिक्षक किसी भी समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | शिष्य के बौद्धिक विकास के साथ ही उसके चरित्र निर्माण का अहम् दायित्व भी गुरु नामक संस्था पर निर्भर करती है | प्राचीन काल से लेकर अबतक शिक्षण व्यवस्था में अनेकानेक परिवर्तन देखने को मिले हैं, परन्तु बदलते परिवेश में भी गुरु कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुआ है | आज के तकनीकी युग में शिक्षक का कार्य एवं दायित्व दोनों ही प्रभावित हुआ है, परन्तु इससे शिक्षक की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है | शिक्षण-प्रशिक्षण के बदलते स्वरुप ने शिक्षक के सामने चुनौती अवश्य प्रस्तुत किया है, परन्तु आदर्श शिक्षक तकनीकी बदलाव को शिक्षण-पद्धति के साथ जोड़कर निरन्तर क्रियाशील दिखता है | ‘वर्चुअल क्लासरूम’ के इस युग में लोग गुरु जैसी संस्था पर प्रश्न उठा रहे हैं, और आधुनिक शिष्यों के लिए गुरु जैसी संस्था का महत्त्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है | ‘गुरु’ के स्थान पर ‘गूगल’ के महत्त्व को बढ़ता देख लोग गुरु जैसी महत्वपूर्ण संस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठा रहे हैं, जो कदापि उचित नहीं है | आज के इस युग में निश्चित तौर पर ‘मेटा’ को महत्त्व दिया जाना चाहिए, परन्तु इससे...