छोटी सी ज़िन्दगी
क्या गलत क्या सही है दोस्तों
|
इतनी ही समझ नहीं है दोस्तों
||
ख़ामोश आँखें कुछ कहती नहीं
|
रिश्तों में बर्फ़ जमी है
दोस्तों ||
जिसके मिलने से थी हर ख़ुशी
|
बन गया अजनबी है दोस्तों
||
बढ़ गयी हैं दूरियां इस
कदर |
कोई नज़र जैसे लगी है दोस्तों
||
बढ़ रहे रोज उलझनों के धागे
|
ज़िन्दगी ये उलझ रही है
दोस्तों ||
रेत पे खड़ी है दिवार रिश्तों
की |
धीरे-धीरे गिर रही है दोस्तों ||
आओ साफ करते हैं उस धूल
को |
नफरतों की ‘दीप’ जमी है
दोस्तों ||
गिले-शिकवे मिटा लग लें
गले |
बड़ी छोटी सी ज़िन्दगी है
दोस्तों ||
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें