शिक्षा में भारतीयता को स्थापित करेगा भारत शिक्षा अधिष्ठान
शिक्षा में भारतीयता स्थापित
करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा 15 दिसम्बर 2025 को लोकसभा में एक ऐतिहासिक विधेयक पेश
किया गया | ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक-2025’ नामक इस
विधेयक के जरिये सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था को मैकाले
शिक्षा पद्धति के प्रभाव से पूर्णतया मुक्त करने के संकल्प को पूरा करने में वह कोई
कमी नहीं रखना चाहती है | केंद्र की मोदी सरकार ने 5 वर्ष पूर्व
ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लाकर यह स्पष्ट कर दिया था
कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में भारत और भारतीयता सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगी | शिक्षा
में भारतीयता को स्थापित करने के लिए जो भी प्रयास करने होंगे सरकार द्वारा किया जायेगा
| विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक को उसी प्रयास की दिशा में बढ़ाया गया एक सार्थक
कदम कहा जा सकता है | संसद में प्रस्तुत इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य वर्तमान शिक्षा
व्यवस्था में समयानुकूल परिवर्तन के साथ ही एक ऐसे शीर्ष शिक्षा आयोग का गठन करना है
जो शैक्षणिक उन्नयन की पटकथा लिख सके | विपक्ष द्वारा हंगामा करने के पश्चात् प्रस्तुत
विधेयक को भले ही संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज
दिया गया है परन्तु सरकार की मंशा इस विधेयक को जल्द से जल्द अधिनियम का रूप देने की
है जिससे भारत केन्द्रित शिक्षा नीति का सपना साकार करके विकसित भारत के लक्ष्य को
प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके | विकसित भारत केन्द्रित विधेयक का नाम इस
बात को बल प्रदान करता है जो सरकार की दृष्टि एवं दृष्टिकोण दोनों को स्पष्ट करता है
|
हम जानते
हैं कि किसी भी राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था उस राष्ट्र की दशा और दिशा दोनों का निर्धारण
करती है | राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था जितनी सुदृढ़ होगी, राष्ट्र उतनी ही तेजी से प्रगति
के मार्ग पर अग्रसर होगा क्योंकि शिक्षा ही वह महत्वपूर्ण कारक है जो व्यक्ति के समग्र
जीवन को प्रभावित करने के साथ ही समाज एवं राष्ट्र का स्वरुप निर्धारित करती है | मनुष्य
के सर्वांगीण विकास का आधार रखने वाली शिक्षा व्यक्तित्व एवं चरित्र निर्माण के माध्यम
से राष्ट्र के उन्नति की संवाहक हो सकती है, ऐसे में शिक्षा व्यवस्था को राष्ट्र की
भावना के अनुरूप होना चाहिए | विगत कुछ वर्षों से भारत विकसित राष्ट्र की ओर तेजी से
कदम बढ़ा रहा है ऐसे में शिक्षा व्यवस्था को समयानुकूल बनाना तर्कसंगत है क्योंकि यदि
हमें वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र का लक्ष्य प्राप्त करना है तो शिक्षा पद्धति
में मौजूद कमियों को दूर करना होगा | शिक्षा व्यवस्था को विषयगत जड़ता से मुक्त करने
के लिए समय-सापेक्ष शिक्षा व्यवस्था में सुधार होना आवश्यक है जिसकी नींव इस विधेयक
के माध्यम से रखी गयी है | ऐसा नहीं है कि शिक्षा सुधार की यह पहली कवायद है, स्वतंत्रता
के पश्चात् पूर्ववर्ती सरकारों ने भी ऐसे कदम बढ़ाये थे जिनका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र
में आवश्यक सुधार करना था | 1948 में गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की संस्तुतियां हों या फिर
1964 में गठित कोठारी आयोग की संस्तुतियां, तत्कालीन सरकार द्वारा
शैक्षणिक संस्थानों के सुदृढ़ीकरण की दिशा में बढ़ाये गये कदम को रेखांकित करती हैं |
ऐसे में, आज जब वैश्विक शैक्षणिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, एवं सरकार वर्तमान आवश्यकताओं
को ध्यान में रखकर उच्च शिक्षा के नियमन में बदलाव करना चाहती है तो हम सभी को मिलकर
उसका स्वागत करना चाहिए |
अब प्रश्न यह उठता है कि भारत
शिक्षा अधिष्ठान से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में क्या बदलाव होगा ? तो सबसे पहला उत्तर
है कि इस अधिष्ठान के माध्यम से उच्च शिक्षा से जुड़ी यूजीसी, एआईसीटीई, एवं एनसीटीई जैसी नियामक संस्थाओं को समाप्त
करके उच्च शिक्षा के लिए एकल नियामक संस्था को आकार देने का प्रयास किया गया है | विधेयक
को प्रस्तुत करते समय केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने स्पष्ट कहा है
कि यह अधिष्ठान शिक्षण संस्थानों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगा जिससे संस्थान शिक्षण,
अनुसंधान, एवं नवाचार की दिशा में कार्य करने के लिए अधिक स्वतंत्र होंगे | इससे उच्च
शिक्षा, अनुसंधान, वैज्ञानिक, एवं तकनीकी संस्थानों में मानकों के निर्धारण एवं समन्वय
की प्रक्रिया आसान हो जायेगी जिससे संस्थान त्वरित गति से अपेक्षित कार्य कर सकेंगे
| अध्यक्ष सहित 13 सदस्यीय इस अधिष्ठान में विनियमन, गुणवत्ता, एवं मानक से जुड़े
3 परिषदों के गठन की बात कही गयी है | विकसित भारत शिक्षा विनियमन
परिषद जहाँ नियामक परिषद के रूप में कार्य करेगा वहीं विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता
परिषद एक प्रत्यायन परिषद का कार्य, एवं विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद मानक निर्धारण
परिषद के रूप में कार्य करेगा |
हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि
उच्च शिक्षा व्यवस्था से जुड़े एकल नियामक संस्था के रूप में यह अधिष्ठान पारदर्शी शिक्षा
व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करेगा | इससे शिक्षा प्रणाली में आवश्यक सुधार के साथ ही
मानकीकरण एवं स्वायत्तता की प्रक्रिया आसान होगी, एवं उच्च शिक्षण संस्थान नीति एवं
पाठ्यक्रम को लेकर अधिक स्वतंत्र हो सकेंगे | उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए एकल
शीर्ष निकाय के अस्तित्व में आने से उच्च शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक बदलाव देखने
को मिलेगा एवं विभिन्न नियामक संस्थाओं के मानकीकरण की लम्बी प्रक्रिया से शिक्षण संस्थान
को मुक्ति मिलेगी | हालाँकि प्रस्तुत विधेयक में आईआईटी और आइआइएम जैसे कुछ महत्वपूर्ण
शैक्षणिक संस्थानों को इस अधिष्ठान से मुक्त रखा गया है जिससे उनकी स्वायत्तता बाधित
न हो | इससे स्पष्ट होता है कि सरकार शिक्षा में सुधार तो चाहती है परन्तु वह ऐसे किसी
बदलाव से भी दूर रहना चाहती है जिससे राष्ट्रीय महत्त्व के किसी शैक्षणिक संस्थान का
मार्ग अवरूध्द हो | इस अधिष्ठान
के पारित होने से उन शैक्षणिक संस्थानों को एक लम्बी मंजूरी प्रक्रिया से मुक्ति
मिलेगी जो कभी यूजीसी तो कभी एआईसीटीई जैसे नियामक संस्थानों से आवश्यक कागज़ी कार्यवाही
पूरी होने का लम्बा इन्तजार करते थे | उदाहरण स्वरुप यदि कोई कॉलेज मानविकी एवं तकनीकि
पाठ्यक्रम संचालित करना चाहता था तो उसे यूजीसी एवं एआईसीटीई दोनों के निर्धारित मानकों
को पूरा करके सम्बंधित प्रक्रिया पूरी करनी होती थी | यह अधिष्ठान, उच्च शिक्षण संस्थानों
को ऐसी सभी जटिलताओं से मुक्ति प्रदान करेगा जिससे शैक्षणिक वातावरण में सकारात्मक
सुधार देखने को मिलेगा |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अध्यक्षता वाले मंत्रीमंडल ने 12 दिसंबर 2025 को ही इस
ऐतिहासिक विधेयक को मंजूरी दे दिया था जिससे सरकार का रूख स्पष्ट है कि वह शैक्षणिक
सुधारों वाले इस विधेयक को लेकर गंभीर है | विपक्ष भले ही इस विधेयक के नाम एवं स्वरुप
पर आपत्ति दर्ज करा रहा है परन्तु इसके मूल स्वरुप में अधिक परिवर्तन की सम्भावना न
के बराबर ही दिखलाई देती है क्योंकि यह विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को क्रियान्वित करने की दिशा में ही एक सार्थक कदम है जिसमें मातृभाषा का
गौरव है तो राष्ट्र प्रथम की भावना भी है, शैक्षणिक उन्नयन की दिशा में बढ़ता कदम है
तो वहीं विकसित भारत के लक्ष्य को साधने वाली शिक्षा व्यवस्था भी है | निश्चित रूप
से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प करने की दिशा में सरकार ने एक और महत्वपूर्ण
कदम बढ़ाया है, राष्ट्रहित में बढ़ाया गया यह कदम सशक्त एवं समृद्ध भारत के सपने को साकार
करेगा एवं भारत विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करेगा |
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