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गांव

गांव जबसे  हमारे  शहर बन गये, बीज प्यार के देखो जहर बन गये | टूट गई हैं जबसे मिट्टी की  दिवारें, सभी के यहां पक्के घर बन गये || तरक्की इतनी हुई कि इठलाने लगे, माँ- बाप से अलग  घर बनाने लगे | बांट लेते थे कभी गैरों के भी  गम, आज अपनों से नजरें  चुराने लगे || गांव की बदली है ऐसी आबो- हवा, भाई-भाई में नफरत से नहाई फिजा | नजर किसकी लगी ये पता न चला, प्यार के देवता आज कहर बन गये || टीवी सोफे और महंगे साजो-सामान, रूतबा भी और दौलतमंद की पहचान | नींद आती थी जो नंगी  चारपाई  पर , मखमली बिस्तर भी नहीं देते आराम || चले थे कहाँ और 'दीप ' कहाँ आ गये, सब कुछ पाकर भी हम बंजर बन गये ||

एहसास

बिन तेरे अधूरा हूँ,   मेरी पहचान इतनी है | तू सीने में है जबतक, मेरी हाँ जान इतनी है || तेरी यादों की महफ़िल से, सनम मैं रोज गुजरता हूँ चाँद तारों से रातों को, तेरी ही बातें करता हूँ || तेरे दीदार को आँखें, मेरी हर पल तरसती हैं | कभी पलकें भिगोती हैं , कभी सावन सी बरसती हैं || खता थी मेरी कोई, जो मुझको छोड़ गये तुम | जगाकर प्यार सीने में, तड़पता छोड़ गये तुम || तेरे बारे में पूछूँ जो, इन बेदर्द हवाओं से | तार दिल के छेड़ कहतीं, पूंछो दिशाओं से || तुझसे बिछड़ कर मेरे, जज्बात कैसे हैं | कैसे बताऊँ तुझको, मेरे हालात कैसे हैं || तू लौट के आ जा, मेरी अरमान बन जा तू | मैं बन जाऊँ तेरी धड़कन, मेरी जां बन जा तू ||