गांव
गांव जबसे हमारे शहर बन गये,
बीज प्यार के देखो जहर बन गये |
टूट गई हैं जबसे मिट्टी की दिवारें,
सभी के यहां पक्के घर बन गये ||
तरक्की इतनी हुई कि इठलाने लगे,
माँ- बाप से अलग घर बनाने लगे |
बांट लेते थे कभी गैरों के भी गम,
आज अपनों से नजरें चुराने लगे ||
गांव की बदली है ऐसी आबो- हवा,
भाई-भाई में नफरत से नहाई फिजा |
नजर किसकी लगी ये पता न चला,
प्यार के देवता आज कहर बन गये ||
टीवी सोफे और महंगे साजो-सामान,
रूतबा भी और दौलतमंद की पहचान |
नींद आती थी जो नंगी चारपाई पर ,
मखमली बिस्तर भी नहीं देते आराम ||
चले थे कहाँ और 'दीप ' कहाँ आ गये,
सब कुछ पाकर भी हम बंजर बन गये ||
बीज प्यार के देखो जहर बन गये |
टूट गई हैं जबसे मिट्टी की दिवारें,
सभी के यहां पक्के घर बन गये ||
तरक्की इतनी हुई कि इठलाने लगे,
माँ- बाप से अलग घर बनाने लगे |
बांट लेते थे कभी गैरों के भी गम,
आज अपनों से नजरें चुराने लगे ||
गांव की बदली है ऐसी आबो- हवा,
भाई-भाई में नफरत से नहाई फिजा |
नजर किसकी लगी ये पता न चला,
प्यार के देवता आज कहर बन गये ||
टीवी सोफे और महंगे साजो-सामान,
रूतबा भी और दौलतमंद की पहचान |
नींद आती थी जो नंगी चारपाई पर ,
मखमली बिस्तर भी नहीं देते आराम ||
चले थे कहाँ और 'दीप ' कहाँ आ गये,
सब कुछ पाकर भी हम बंजर बन गये ||
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