छपास रोग ( व्यंग्य )
कल मेरे एक छात्र ने मुझसे पूछा कि सर आप किस रोग को सबसे खतरनाक मानते हैं ?मैंने उत्तर दिया , वर्तमान में छपास रोग सबसे खतरनाक है । इसका वायरस जिस तेजी से लोगों को गिरफ्त में ले रहा है इससे आने वाले दिनों में इसके पुरे भारत में फैल जाने कि गंभीर आशंका है । प्रश्न पूछने वाले छात्र के साथ ही अन्य छात्रो के पल्ले भी कुछ नहीं पड़ा । आखिर पड़ता भी कैसे ? उन्होंने स्वाईन्न फ्लू , एड्स , हेपेतायितिस बी जैसी खतरनाक बिमारियों का नाम तो सुना था परन्तु इस रोग के बारे में उनका ज्ञान शून्य था । अभी मै कुछ बोलता कि तभी दुसरे छात्र ने पूछ लिया , सर !यह रोग किस वायरस से फैलता है ?इसका इलाज क्या है ? इस रोग का लक्षण क्या है ?प्रश्नों कि एक लम्बी श्रंखला ने मेरे माथे पर सिकन ला दिया । मै कुछ देर के लिए शांत हो गया । मुझे शांत देखकर छात्र आपस में ईशारे से यह कहने का प्रयास कर रहे थे कि सर हम लोगों को बेवकूफ बना रहे है । भला ऐसा रोग कोई है क्या ? इस रोग के बारे में न तो किसी टी वी चैनल वाले ने बताया है और न ही इसके बारे में समाचार पत्रों में ही कोई खबर छपी है । अभी तो इस रोग से पीड़ित किसी व्यक्ति के बारे में भी पता नहीं चला है । मैंने जब छात्रों को बताया कि इस रोग का मेडिकल साइंस से कोई लेना देना नहीं है तो वे कहने लगे - सर ! भला ऐसा भी कोई रोग हो सकता है जिसका मेडिकल साइंस से कोई सम्बन्ध न हो । कुछ को तो मेरे ज्ञान पर भी संदेह होने लगा था । छात्रो के कौतुहल को शांत करते हुए मैंने उन्हें पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी के बारे में बताना शुरू किया जो कुछ वर्षों से इस रोग से पीड़ित थे । पिछले कुछ महीनो से तो उनकी बीमारी और भी गंभीर हो गयी है । जिस सप्ताह में दो तिन बार उनकी फोटो अख़बार में नहीं आ जाती , उस सप्ताह में उनका ब्लड प्रेसर काफी बढ़ जाता है । उनका ब्लड प्रेसर कम करने के लिए किसी डॉक्टर कि जरुरत नहीं पड़ती है बल्कि इसके लिए उन्हें मीडिया के कैमरों कि रौशनी कि जरुरत होती है । कैमरा कि रौशनी पड़ते ही गुप्ता जी का ब्लड प्रेसर नोर्मल हो जाता है । इसके लिए गुप्ता जी दिन रात एक करते दिखाई पड़ते है । समाज सेवा , धरने- प्रदर्शन , शोक सभा , राजनितिक रैलियों के साथ ही प्रेस कांफ्रेंस के जरिये वे छपास क्लिनिक सेंटर पहुच ही जाते है । मीडिया कर्मी कि नजर उनपर पड़े इसके लिए वे कई हथकंडे अपनाते हैं । राजनितिक रैली में जहाँ वे सबसे वरिस्थ नेता से चिपके रहते है तो धरना प्रदर्शन के दौरान तेज आवाज में उनके द्वारा लगाये जा रहे नारे उन्हें कैमरे के सेंसर के करीब पंहुचा ही देते है । ऐसी कोई भी शोकसभा जिसमे मीडिया के पहुचने कि संभावना होती है उसमे गुप्ता जी शोकाकुल परिवार के सबसे करीब दिखाई पड़ते है । समाज सेवा का मौका तो वैसे भी वे नहीं छोड़ते है विशेषकर जिसमे मीडिया के पहुचने कि गुंजाईश होती है । छपास रोग से पीड़ित गुप्ता जी कि इच्छा राजनीती में नाम करने कि है । अभी कुछ और बताता तभी एक दुसरे छात्र ने पूछ लिया , सर इस बीमारी का लक्षण क्या है ? मैंने उत्तर दिया , बच्चों इस बीमारी को पहचानना आसान तो नहीं है परन्तु इस रोग से ग्रसित व्यक्ति कि जुबान बहुत तेजी से फिसलती है , वह कुछ भी बोलना शुरू कर देता है । मीडिया कि मौजूदगी में वह जरुरत से ज्यादा एक्टिव दीखता है । बेवजह किसी मुद्दे को तिल का तार बना देता है । कोई भी सीधा कार्य इनको उल्टा दिखाई देता है । बिना मांगे ही राय देना और कैमरे के सामने तरह तरह के रूप में नजर आने कि आदत से इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कि पहचान कि जा सकती है । अभी हम कुछ आगे बताते , एक छात्र बोल पड़ा - सर ! अभी आपने जितने भी लक्षण बताएं है उसमे से काफी लक्षण हमारे देश के कई नेताओं में दिखाई देते हैं । सभी छात्रों ने एक आवाज में उस छात्र कि बात का समर्थन किया जिसमे मेरी भी मौन स्वीकृति शामिल थी । कुछ पल के पश्चात् एक और छात्र ने पूछा, सर ! इस भयानक बीमारी का इलाज क्या है ? मैंने उत्तर दिया - इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कैमरे कि रौशनी से दूर रखा जय तो कुछ समय के बाद इस रोग का वायरस खुद बा खुद समाप्त हो जाता है ।
its awesome sir
जवाब देंहटाएंreally a good writing
💯💯💯🔥🔥🔥🔥
जवाब देंहटाएंWell said. 👏🏼👏🏼
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