मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक

भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक रही है | शिक्षक अपने छात्र के लिए न सिर्फ पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाता आया है अपितु समय के साथ अच्छे शिक्षक की आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण होती गयी है | अतीत में कई ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा से न सिर्फ विद्यार्थी के ज्ञान को समृद्ध किया अपितु उनके चरित्र को इस प्रकार से गढ़ने का कार्य किया जिससे भारतीय जीवन दर्शन को एक नई राह मिली | गुरु-शिष्य की प्राचीन परम्परा रही हो या फिर आधुनिक शिक्षा पद्धति, एक अच्छा शिक्षक अपने ज्ञान से शिष्य को सामाजिक जीवन के अनुकूल बनाता है जिससे वह अपने जीवन में आने वाली अनेकानेक चुनौतियों का सामना आसानी से कर सके | विद्यार्थी के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर शिक्षक की अमिट छाप होती है जिससे उसके आनुभविक मूल्य निर्धारित होते हैं | सामाजिक जीवन में शिक्षा प्राण तत्व की भांति ही है, जो हमारे व्यावहारिक जीवन के संचालन में महती भूमिका निभाती है | शिक्षा ज्ञानार्जन के साथ ही जीवन पद्धति के निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाती है, एवं यह किसी भी देश, काल एवं परिस्थिति में प्रासंगिक है | किसी भी सामाजिक व्यवस्था के निर्धारण में वहाँ की शिक्षा व्यवस्था का अमूल्य योगदान होता है, साथ ही यह व्यवस्था मानव संसाधन विकास की दशा एवं दिशा का निर्धारण करती है | इस व्यवस्था की धूरी शिक्षक नामक संस्था पर टिकी है, जो व्यक्ति, समाज, एवं देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है | ऐसे में शिक्षक, गुणवत्तायुक्त शिक्षा के माध्यम से समाज अथवा देश के संचालन में आधार निर्धारण का कार्य करता है | प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सम्पूर्ण शिक्षा को भारतीय मूल्यों के साथ प्रसारित करने वाले वे शिक्षक ही हैं जिन्होंने विद्यार्थी के जीवन को सुगम एवं सार्थक बनाने का कार्य किया है |

महान शिक्षाविद, दार्शनिक एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस शिक्षकों के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता अर्पण करने का अवसर प्रदान करता है, साथ ही यह दिन प्रत्येक विद्यार्थी को अपने आदर्श शिक्षक को याद करने का भी एक माध्यम बनता है | गुरु-शिष्य परम्परा के इस महत्वपूर्ण क्षण की प्रासंगिकता इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि विगत कुछ वर्षों में सामाजिक संरचना में अनेकानेक बदलाव देखने को मिले हैं, एवं शिक्षा का क्षेत्र भी इनसे अछूता नहीं है | शिक्षा का उद्देश्य हो, उसका प्रसार हो, या फिर शैक्षणिक संस्थानों की संरचना; कई बदलाव देखने को मिलते हैं | शिक्षा के उद्देश्य के केंद्र में आज रोजगार ने स्थान बना लिया है, एवं विद्यार्थी रोजगारोन्मुखी शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व देने लगे हैं | विद्यार्थियों का यह कार्य कदाचित अनुचित नहीं है क्योंकि आज हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जिसमें वैश्विक बाजार की चुनौतियाँ भी हैं | बाजार-आधारित चुनौतियाँ मूल्यपरक शिक्षा व्यवस्था पर निरंतर प्रहार कर रही हैं जिसका सामना शिक्षक नामक संस्था को भी करना पड़ रहा है | एक तरफ तो शिक्षक को वैश्विक अवसर के लिए अपने विद्यार्थी को कौशलयुक्त शिक्षा प्रदान करने का अति महत्वपूर्ण कार्य करना है तो वहीं भारतीय मूल्यों का बीजारोपण करना भी अत्यंत आवश्यक है | रोजगारोन्मुखी शिक्षा की अनिवार्य शर्त ने शिक्षा प्रणाली को बदलने के साथ ही विद्यार्थी की मानसिकता पर भी प्रतिकूल असर डाला है जिससे वह जीवन मार्ग पर आने वाली चुनौतियों के सामने अपने आप को कमजोर महसुस करता है |

विगत कुछ वर्षों में भारत सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान को गति प्रदान करने करने के साथ ही शिक्षा के अधिकार अधिनियम का क्षेत्र भी बढ़ाया है जिससे शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त किया है जिसमें भारत को ज्ञान के केंद्र के रूप में पुनःस्थापित करने के साथ ही जीवंत समाज निर्माण के आधारतत्व निहित हैं जिसके केंद्र में शिक्षक ही हैं | स्वतंत्रता के समय देश में केवल 20 विश्वविद्यालय थे जो वर्तमान में बढ़कर 1043 के आंकडें को छू चुके हैं  जबकि 42 हजार से अधिक महाविद्यालय शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं | सरकार समग्र शिक्षा के लक्ष्य के प्रति अपने कदम निरंतर बढ़ा रही है, परन्तु इसकी सार्थकता मूल्यपरक एवं गुणवत्तायुक्त शिक्षा पर ही निर्भर करती है जिसे शिक्षकों की सक्रीय सहभागिता के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है | वर्तमान तकनीकी युग में सूचना एवं शिक्षा के लिए अनेकानेक विकल्प उपलब्ध हैं और विद्यार्थी के लिए किसी भी प्रकार की अंतर्वस्तु से जुड़ना अत्यंत आसान भी है, वह पलक झपकते ही सूचना के उस अथाह सागर में प्रविष्ट कर लेता है जो भौगोलिक बंधन से सर्वथामुक्त है | हालाँकि यहाँ उसकी जिज्ञासा तो शांत हो जाती है परन्तु मशीन आधारित यह दुनिया उसे मानवीय मूल्यों का वह पाठ नहीं पढ़ा पाती है जो शिक्षक अपने आनुभविक मूल्यों के आधार पर अपने विद्यार्थी के मस्तिष्क में आसानी से डाल देता है | शिक्षक न सिर्फ अपने विद्यार्थी के मनःस्थिति को समझता है अपितु उसके जीवनद्वन्द का आंकलन भी आसानी से कर लेता है | वह अपने विद्यार्थी के ज्ञान-स्तर को भी भलीभांति जानता है, एवं उसके अनुरूप अपनी शिक्षण पद्धति में आवश्यक बदलाव करता है | आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस युग में विद्यार्थी के लिए प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करना जितना आसान है, जीवन मूल्यों को आत्मसात करना उतना ही कठिन है | तकनीकी, शिक्षा प्राप्त करने का एक माध्यम हो सकती है परन्तु यह शिक्षक का विकल्प नहीं है | शिक्षक रुपी संस्था सामाजिक अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है और देश के सर्वांगीण विकास के लिए भी | वर्तमान सन्दर्भ में यह संस्था और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब मनुष्य बाजार आधारित बदलावों के चपेट में आकर बहुत ही तेजी से सामाजिक ताने-बाने में अप्रासंगिक हो रहा है | आधुनिक तकनीकी बदलाव को एक सकारात्मक सोच के साथ अपनाने के लिए शिक्षक भी तैयार है, शिक्षक की यह तैयारी विद्यार्थी के लिए भी प्रासंगिक है क्योंकि तकनीकी का ज्ञान रखने वाला शिक्षक इससे अपनी शिक्षण पद्धति को समृद्ध करके ज्ञान का प्रसार आसानी से कर सकता है, और देखा जाय तो वह तकनीकी ज्ञान न रखने वाले शिक्षक से बेहतर कार्य कर सकता है | ऐसे में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि सरकार एवं समाज, शिक्षक नामक संस्था के महत्त्व को समझे एवं उसके लिए अनुकूल सामाजिक वातावरण का निर्माण करे | शिक्षक भी अपने उत्तरदायित्व को समझे, एवं मात्र वेतनभोगी कर्मचारी न बनकर विद्यार्थी को मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करे, जिससे आदर्श समाज की स्थापना की जा सके एवं भारत को विश्व-गुरु के रूप में पुनःस्थापित किया जा सके |

 



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