मात्र भौगोलिक संरचना नहीं हैं नदियाँ

 


नदियाँ पृथ्वी पर जीवन के संचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, मनुष्य सहित अनेक जीव जन्तु को जल प्रदान करने वाली जल संसाधन की स्रोत नदियाँ अनेकों जीव-जन्तुओं का घर भी हैं | भारत के सभी प्राचीन शहर किसी न किसी नदी किनारे ही अपने स्वरुप को प्राप्त किये हैं अर्थात इन शहरों के निर्माण एवं विकास में कोई न कोई नदी सहगामी रही है | हमारे देश में कई ऐसी नदियाँ हैं जिनका पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है | ये नदियाँ हमारी परम्पराओं की संवाहक हैं तो सभ्यता की साक्षी भी | हमारे अनेक रीति-रिवाजों में ये अहम् स्थान रखती हैं, तो वहीं धार्मिक अनुष्ठान भी इनके बिना अधूरे माने जाते हैं | ऐसे में हमारी उदासीनता एवं नदियों के प्रति हमारा आचरण, इस जीवनदायिनी जल-संसाधन के प्रति गंभीरता के अभाव को दर्शाता है | प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज नदियों को माता-तुल्य मानते आये हैं, ऐसे में हमें नदियों के प्रति अपने आचरण में बदलाव करने की आवश्यकता अत्यंत आवश्यक हो जाती है | हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का अंग रही नदियाँ आज हमारी उपभोक्तावादी एवं अदूरदर्शी सोच के कारण न सिर्फ प्रदूषण का दंश झेलने को मजबूर हैं अपितु कुछेक नदियों को हमारे लोभ ने नालों अथवा नालियों के रूप में पहुंचा दिया है | नदियों को लेकर कुछेक असमंजस की स्थिति भी दिखलाई देती है, एक तरफ तो यह स्थिति पड़ोसी देशों के मध्य दिखती है तो वहीं दूसरी तरफ कुछ राज्य भी इस स्थिति में दिखलाई देते हैं | इससे कई बार इनसे जुड़ी नीतियाँ प्रभावित होती हैं | वर्तमान केंद्र सरकार इस असमंजस की स्थिति से बचने के लिए निरंतर प्रयासरत दिखती है | 2012 में बनी राष्ट्रीय जल नीति में भी नदियों को केन्द्र में रखा गया, एवं इनके समक्ष आ रही चुनौतियों के समाधान की योजना पर काम करने की बात की गयी | चीन, नेपाल, बांग्लादेश, एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी जल संसाधन नीति को लेकर कई चुनौतियाँ विद्यमान दिखती हैं जबकि कुछ राज्यों में भी नदियों के जल-बंटवारे को लेकर मतभेद है जिससे नदियों से जुड़ी नीतियों के क्रियान्वयन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है | हमारी उपेक्षा एवं उदासीनता के कारण ‘असी’ जैसी कई नदियाँ आज नाले का रूप ले चुकी हैं जिन्हें बड़ी संख्या में स्थानीय जनमानस नाले के रूप में ही जानता है | ऐसे में आने वाली पीढ़ी के मानस पटल में इन नदियों का नाम भी अंकित हो पायेगा, संदेह ही है |

हमारी उपभोक्तावादी सोच एवं उदासीनता के कारण नदियों के भौगोलिक स्वरुप में भी बदलाव देखने को मिला है, नदियों के किनारे हुए अवैध निर्माण से इनका क्षेत्र संकुचित हुआ है जिससे कई बार बाढ़ रुपी आपदा का भी सामना करना पड़ता है | कल-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल, नदियों को लगातर प्रदूषित कर रहे हैं | औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले हानिकारक रसायनयुक्त अपशिष्ट जब नदियों में गिरते हैं तो यह सिर्फ नदी के जल को गन्दा नहीं करते हैं अपितु उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं जिससे नदी के अन्दर रहने वाले जीव जन्तुओं के समक्ष जीवन-संकट उत्पन्न हो जाता है | हिंडन नदी आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है तो वहीं राजधानी दिल्ली में अपने पौराणिक महत्त्व के साथ ही जल-धमनी रुपी यमुना की वर्तमान स्थिति काफी दयनीय दिखती है | दिल्ली सरकार ने 2025 तक यमुना को साफ करने का लक्ष्य रखा है परन्तु यमुना की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह असंभव प्रतीत होता है | 1993 में शुरू ‘यमुना एक्शन प्लान’ का लक्ष्य इस नदी को साफ करना था परन्तु आज भी इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका है | एक तरफ तो बढ़ती जनसंख्या के कारण इस नदी पर घरेलू अपशिष्ट का दबाव बढ़ता जा रहा है तो वहीं कुछेक अवैध कालोनियों से निकलने वाला यह अपशिष्ट नालों के माध्यम से नदी के जल में मिल रहा है | यह स्थिति तब और भी भयावह हो जाती है जब अपशिष्ट मिले जल को आवश्यक संसाधनों के बिना पूरी तरह से शोधित करना मुश्किल हो जाता है, एवं लगभग 850 एमजीडी की तुलना में केवल 600 एमजीडी सीवर-जल ही शोधित करने की व्यवस्था सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य को दूर बताती है | दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि विगत कुछ वर्षों में यमुना में प्रदूषण दोगुना हुआ है जो चिंताजनक है | दिल्ली सरकार ने 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से सीवेज जल को शोधित करके यमुना को साफ़ करने का प्रयास तो किया है परन्तु यह प्रयास तब तक सार्थक परिणाम में नहीं बदल सकता जब तक समस्या के मूल पर प्रहार न किया जाय, इसके लिए सरकार को जन-जागरूकता के साथ ही जल प्रदूषण से जुड़े कानून को भी प्रभावी रूप से लागू करने का प्रयास करना होगा | इसके साथ ही उपलब्ध जल-शोधन उपकरणों की क्षमता को भी जनसंख्या के अनुपात में ही बढ़ाना होगा |

विकास की वर्तमान आवश्यकताओं ने नदियों के मुक्त प्रवाह को भी बाधित किया है जिससे इनका पारिस्थितिकीय तंत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है | वर्षा के दिनों को छोड़ दिया जाय तो अधिसंख्य नदियाँ अपने गंतव्य मार्ग पर ही दम तोड़ देती हैं या फिर नालों के गंदे जल को लेकर आगे बढ़ रही होती हैं | बिजली की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जबसे गंगा के प्रवाह को टिहरी में रोका गया, अमृततुल्य जल धारण करने वाली यह नदी अपने मूल रूप में कभी नहीं दिखी | भारत के पाँच प्रमुख राज्यों से होकर बंगाल की खाड़ी तक पहुँचने वाली गंगा अपने उद्गम राज्य उत्तराखंड में ही दूषित हो जाती है जिससे देश की 28 प्रतिशत जलापूर्ति करने वाली इस नदी का जल स्वच्छ एवं निर्मल नहीं रह पाता है | जून 2014 में शुरू किये गये नमामि गंगे परियोजना का लक्ष्य भी अभी बहुत दूर प्रतीत होता है, एवं स्वच्छ गंगा का लक्ष्य अभी भी दूर है | 20 हजार करोड़ रूपये बजट के साथ शुरू इस योजना में गंगा के संरक्षण एवं प्रदूषण के कारकों को दूर करने की विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं, एवं  विगत कुछ वर्षों में इसके कुछ सकारात्मक संकेत भी मिले हैं, नमामि गंगे की समीक्षा रिपोर्ट में यह कहा गया है कि गंगा में डॉल्फिन की संख्या बढ़ रही है एवं घुलित ऑक्सिजन की स्थिति में भी सुधार देखने को मिला है |

नदियों का स्वस्थ एवं स्वच्छ होना पृथ्वी पर स्वस्थ जीवन के लिए नितांत आवश्यक है | इस कार्य में हम सभी को सहयोग करना होगा, एवं सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं में सहभागी बनना होगा | नदियों की स्वच्छता प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से हमारे आचरण पर निर्भर है | यदि प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य को समझे तो यह कार्य बिल्कुल सम्भव है | प्रत्येक नदी अपने आप को साफ़ करने की क्षमता रखती है, बशर्ते हम उसे अपशिष्ट पदार्थों एवं औद्योगिक कचरा ढ़ोने वाला माध्यम न समझें | गंगा जैसी बड़ी नदी हो या फिर असी जैसी छोटी नदी, यमुना नदी हो या वरुणा एवं हिंडन, या फिर कावेरी या नर्मदा, सभी नदियाँ हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं | बड़ी नदियों का स्वास्थ्य छोटी नदियों से भी जुड़ा है | आम तौर पर हमारा पूरा ध्यान बड़ी नदियों की तरफ होता है, और कई छोटी नदियाँ कब नाले का रूप ले लेती हैं, हमें पता ही नहीं चलता है | सरकार को बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों के पुनरुद्धार के भी प्रयास करने होंगे जिससे इन जीवनदायिनी नदियों को बचाया जा सके | हमें आज नदियों के महत्त्व को समझना होगा, एवं इन्हें मात्र भौगोलिक इकाई न मानकर मानव अस्तित्व से जोड़कर देखना होगा |

 

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