कितना सही है न्याय का बुलडोजर मॉडल ?

 


विगत कुछ वर्षों में आपराधिक कृत्य के जबाब में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बुलडोजर को एक हथियार के रूप में उपयोग किया है जिसे समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा समर्थन भी मिला है | अपराधियों द्वारा अपराध के रास्ते किये गये अवैध निर्माण के ऊपर जब बुलडोजर चलता है तो निश्चित रूप से यह उनके उस हौसले को तोड़ने का प्रयास होता है जो उन्हें अपराध जगत के गॉडफादर  अथवा राजनीतिक संरक्षक से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मिला होता है | पीड़ित परिवार इस प्रक्रिया में संतोष की अनुभूति करता है, एवं पुलिस प्रशासन में उसकी आस्था बनी रहती है | न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति एवं खर्चीला होने के कारण आज न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है | हाल ही में देश की सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति महोदया ने भी न्याय की इस धीमी प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया था, एवं राजस्थान के एक आपराधिक मामले में लगभग तीन दशक बाद निर्णय आने को दुखद बताया था | त्वरित न्याय के बुलडोजर मॉडल को उत्तर प्रदेश में कई अवसर पर देखा गया है जिसे अन्य प्रदेशों में भी कुछेक अवसर पर अमल में लाया गया है | अपने कार्यकाल में योगी सरकार ने कई बड़े अपराधियों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का निर्देश दिया जिसमें अतीक अहमद, मुख़्तार अंसारी एवं विकास दुबे जैसे बड़े अपराधी शामिल थे | समाज के एक बड़े वर्ग ने न्याय की इस प्रक्रिया की सराहना भी किया क्योंकि इस प्रक्रिया में अभी तक जितने लोगों के खिलाफ कार्यवाही की गयी है उनका किसी न किसी रूप में आपराधिक कृत्य में संलिप्तता रही है, एवं कई को तो न्यायालय द्वारा सजा भी दी जा चुकी है | योगी सरकार ने अतीक अहमद के अवैध निर्माण को गिराकर उसपर गरीबों के लिए आवास बनाकर अच्छा काम किया है | गुजरात के सूरत में गणेश पंडाल पर किये गये पथराव के बाद चिन्हित आरोपियों के अवैध निर्माण पर की गयी बुलडोजर कार्यवाही के बाद अपराधियों के पक्ष में भीड़ इकठ्ठा हो गयी, जबकि हाल ही में मध्यप्रदेश प्रशासन ने पुलिस थाने पर पत्थरबाजी कराने के आरोपी शहजाद अली की कोठी पर बुलडोजर चलाने का निर्देश दिया था जिसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर किया गया | देश के कई राज्यों में बुलडोजर द्वारा अपराधियों के कराये गये निर्माण को ध्वस्त करने का प्रचलन देखा गया है, जिनमें उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अगुवाई की है | यही कारण है कि ‘बुलडोजर न्याय’ आज मुख्यमंत्री योगी के बुलडोजर जस्टिस का पर्याय बन चुका है, जब भी कोई अपराध करता है तो उसे डर होता है कि ऐसा करने से उसके एवं उसके परिवार की छत छिन सकती है |

अब प्रश्न यह उठता है कि न्याय का बुलडोजर मॉडल कितना सही है ? निश्चित रूप से इसके पक्ष एवं विपक्ष दोनों में ही अनेकानेक लोग खड़े मिल जायेंगे | कुछ मानवाधिकारों की दुहाई देंगे तो कुछ न्याय प्रक्रिया की भेंट चढ़ गये अपनों के समर्थन में इसे सही ठहरायेंगे | बुलडोजर कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई करते हुए जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि किसी भी आरोपी अथवा अपराधी के घर को गिरा देना न्यायोचित नहीं है क्योंकि यह परिवार के अन्य सदस्यों के लिए ठीक नहीं है | परिवार के किसी एक व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध का दण्ड उसके परिवार को नहीं दिया जा सकता है, यह सही भी है, संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार भी सभी के लिए है | किसी अपराधी की सजा उसके परिवार को क्यों मिले ? अपराधी व्यक्ति द्वारा अपराध के माध्यम से अर्जित सम्पत्ति पर उसका परिवार तो सीधे हक जमा सकता है, परन्तु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अपराध को मौन समर्थन देने वाला परिवार मौलिक अधिकारों की दुहाई देने कोर्ट अवश्य पहुँच जाता है | और हाँ, पीड़ित परिवार के मौलिक अधिकार तो हैं ही नहीं ? न्याय की आस लिए वह वर्षों भटकता रहता है, इस बीच उसे अनगिनत आर्थिक, मानसिक, एवं शारीरिक परेशानी झेलनी पड़ती है, और कभी-कभी तो वह न्याय की उम्मीद में दम तोड़ देता है | निश्चित तौर पर बुलडोजर कार्यवाही को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है, परन्तु जनहित का सम्मान करते हुए कानूनी दायरे में की गयी इस कार्यवाही को गलत भी नहीं कह सकते हैं | किसी अपराधी द्वारा कराये गये अवैध निर्माण पर आँखें बंद किये हुए प्रशासन द्वारा अचानक नींद से जागकर की गयी बुलडोजर कार्यवाही का तरीका गलत हो सकता है परन्तु एक के बाद दूसरे अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी के मन में कानून का भय एवं पीड़ित परिवार के मन में न्याय की उम्मीद जगाने के साथ इस प्रक्रिया को गलत ठहराना भी न्यायोचित नहीं है |

निश्चित रूप से लोकतान्त्रिक देश भारत में बुलडोजर द्वारा न्याय प्राप्त करने की संस्कृति न्यायिक प्रक्रिया के हित में नहीं है, एवं सभ्य सामाजिक जीवन में इसे उचित भी नहीं ठहराया जा सकता है परन्तु बहुसंख्य जनभावनाएं इसके पक्ष में दिखती हैं | कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर किसी अपराधी द्वारा कोई अपराध किया जाता है तो उसके खिलाफ ठोस एवं त्वरित कार्यवाही बनती है, चाहे वह बुलडोजर कार्यवाही ही क्यों न हो ? यदि हम अपराधी के परिवार के मौलिक अधिकारों की बात करते हैं तो हमें पीड़ित परिवार के मौलिक अधिकारों की बात भी करनी होगी | निश्चित रूप से बुलडोजर का दुरूपयोग भी सम्भव है, एवं प्रशासनिक अधिकारी इसका दुरूपयोग कर सकते हैं, परन्तु इसकी सम्भावना अत्यंत कम ही है क्योंकि इस प्रकार की कार्यवाही अक्सर गम्भीर अपराध में ही देखी गयी है जिसपर जन-अदालत एवं मीडिया की भी नजर रहती है, ऐसे में कोई भी अधिकारी या सरकार गलत कार्यवाही करके अपनी किरकिरी नहीं कराना चाहेगी | समाज को भयमुक्त बनाने के लिए अपराधियों में भय के भाव को लाना भी सरकार का ही काम है, एवं उत्तर प्रदेश में इसे अनुभव किया जा सकता है | मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बुलडोजर कार्यवाही को देखकर कई बड़े अपराधियों ने स्वयं ही सरेंडर कर दिया | वास्तव में, न्याय की प्रतीक्षा में ऊम्र गुजार देने वाली पीढ़ी के लिए यह न्याय तो नहीं है परन्तु उसे अपराधियों द्वारा मिले ज़ख्मों पर प्रशासन द्वारा लगाये गये मरहम से कम भी नहीं है | सर्वोच्च न्यायलय वास्तव में यह चाहता है कि इस प्रकार की संस्कृति समाज में न पनपे तो उसे न्याय व्यवस्था को ठीक करने के साथ ही न्याय प्रक्रिया को गति प्रदान करने के ठोस उपाय करने होंगे | सरकारें बदलती रहेंगी, उनकी कार्य प्रणाली भी बदलती रहेंगी, परन्तु अच्छी न्याय व्यवस्था सभी सरकार में जीवित-तंत्र को आधार प्रदान करती रहेगी | जिस दिन जनता को कानूनी प्रक्रिया द्वारा न्याय आसान एवं सुलभ होगा, वह ‘बुलडोजर-न्याय’ जैसी किसी भी संस्कृति का समर्थन करना छोड़ देगी |

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