गिरगिटों ने रंग बदलना छोड़ दिया ( व्यंग्य )

अब गिरगिट रंग नहीं बदलतेअरे ! ये क्या ? आप किस सोच में पड़ गएबचपन से ही सुनते रहे थे की इस दुनिया में गिरगिट बहुत तेजी से रंग बदलते हैंआप गिरगिटों के रंग बदलने वाली बात को इतनी बार सुन चुके होंगे की आप के जेहन में गिरगिटों के रंग बदलने वाली बात एकदम से बैठ गयी होगीआप में से कई भाई तो उन्हें रंग बदलते देख भी चुके होंगेकुछ उत्सुकतावश तो कुछ दोस्तों के सामने डींगे भरने के लिए की उन्होंने गिरगिटों को रंग बदलते हुए प्रत्यक्ष देखा हैकुछ के लिए तो यह एक बरी उपलब्धि होगी
बेचारे गिरगिट ! सदियों से इंसान द्वारा दिए जा रहे उलाहनो को सुनने के लिए विवश थेउन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा थाउन्हें लगता था की उन्हें नाहक ही परेशां किया जाता हैलेकिन पिछले कुछ दिनों से गिरगिटों ने पूरी तरह से रंग बदलना छोड़ दिया हैअब आप सोच रहे होंगे की उनके यूनियन लीडर ने रंग बदलने के लिए मना किया होगा या फिर मुफ्त की पब्लिसिटी हासिल करने के लिए किसी संगठन ने फतवा जारी कर दिया होगापरन्तु यदि आप ऐसा सोच रहे है तो आप सौ फीसदी गलत हैंअब आप कहेंगे की गिरगिटों के सामने कौन सा संकट खड़ा हुआ जो वे अपने मौलिक कार्य से तौबा कर लिएअब आप विचार कर रहे होंगे की कहीं गिरगिट वेचारे भी मंदी की मार के शिकार तो नहीं हो गएकुछ भाई सोच रहे होंगे की उन्हें रंगों से एलर्जी हो गयी होगीअरे नहीं भाई ! ऐसा भी नहीं हैउन्हें किसी भाई -वाई के तरफ से धमकी भी नहीं मिली है और ही सरकार ने नए कानून के जरिये उनपर कोई प्रतिबन्ध ही लगाया हैअब आप कहेंगे की जब उन्हें भाई बिरादरी का भरपूर समर्थन है और सरकार भी उनपर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध लगाने की इच्छुक नहीं है तो भला गिरगिटों पर कौन सी मुसीबत गयी जो उन्हें इतना कठोर फैसला लेना पड़ा
अच्छा चलिए अब हम ही आप को बता देते है कि गिरगिटों ने इतना कठोर फैसला क्यों लिया ? यह फैसला गिरगिटों ने नेताओं द्वारा उनके कार्य में बढ़ते हस्तक्षेप को देखते हुए लिया हैपहले तो शरहद पार के किसी नेता द्वारा रंग बदलने कि बात सुनायी देती थी परन्तु अब जबकि अपने देश के नेता इतनी तेजी से रंग बदलने लगे हैं , पूरी गिरगिट बिरादरी सदमे में हैगिरगिटों के सरदार तो कोमा में चले गए हैंकुछ समय के लिए तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ था कि रंग बदलने के मामले में नेता उन्हें पीछे छोड़ देंगे लेकिन जैसे ही नेताओं ने अपना असली चेहरा दिखाना शुरू किया , बेचारों को ऐसा सदमा पहुंचा कि वे इससे उबार ही नहीं पायें हैंरंग बदलने वाले नेताओं कि बढती संख्या ने उन्हें इतना कठोर फैसला लेने को मजबूर कर दिया थाआप ही बताइए बेचारे गिरगिट क्या करते ? बर्दाश्त कि भी हद होती हैवे तो अपनी दुनिया में खुश थे , पर जाने उन्हें किसकी नजर लग गयीबेचारों को इस तरह का दुर्दिन देखना पड़ा । उनके कार्यों में नेताओं का हस्तक्षेप इतना बढ़ गया था कि उनके पास अब कोई दूसरा राष्ट बचा नहीं थालिहाजा उन्होंने नेताओं के लिए अपने कार्यों एवं सदियों से चली रही परंपरा कि क़ुरबानी देना ही मुनासिब समझालेकिन अब भी गिरगिटों को एक कष्ट हैजब भी कोई नेता रंग बदलता है तो उसकी तुलना लोग गिरगिट से करने लगते हैंबेचारे गिरगिट , आखिर लोंगो को कैसे समझाएं कि अब वे रंग नहीं बदलतेअब यह कार्य नेताओं के जिम्मे है

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