मरते हैं तो मरने दो मजदूर ही तो हैं, बेबस लाचार गरीब मजबूर ही तो हैं | छले जाते हैं ये ताउम्र ज़िन्दगी में, वक्त के मारे मिट्टी के कोहिनूर ही तो हैं || दुःख में मुस्कुराने का हुनर आता इन्हें, सदियों से ही कुचला जाता है जिन्हें | कीड़े-मकोड़े से ज्यादा वजूद नहीं कोई, सुख गढ़ते हैं पर सुख से दूर ही तो हैं || गाँव से शहर भाग आते हैं अभागे, लाते हैं साथ ये जिम्मेदारियों के धागे | बहन का सम्मान और पिता की लाठी, माँ के आँखों के ये नूर ही तो हैं || गर्मी जाड़ा हो या भयंकर बरसात, सुहानी सुबह हो या फिर काली रात | हर रोज ही अपनी हड्डियों को गलाते, खुद के अरमान जलाते तन्दूर ही तो हैं || आपके सपनों का महल हैं ये बनाते, भगा देते हैं आप साहब इनको रुलाके | बहुत कुछ कहती हैं नम आँखें इनकी, कसूर इतना है कि बेक़सूर ही तो हैं || बड़ा दर्द है ‘दीप’ इनकी सिसकियों में मोल नहीं जिनका सत्ता की गलियों में | मौत पर बहा देते कुछ घड़ियाली आँसू, राजशाही के लिए ये गैर-जरूर ही तो हैं || जिस शहर को अपने पसीने से सींचा, उस शहर से लौट रहे बेगरूर ही तो हैं | भू...