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का बा राजा बनारस में ?

  बाबा विशेश्वर क दरबार बा, माँ अन्नपूर्णा क श्रृंगार बा | ज्ञान क सगरो भण्डार इहाँ, सगरी बनारस होशियार बा || मालवीय क सपना इहवाँ, कबीर-तुलसी क रचना इहवाँ | डोम राजा के अगवाँ, राजा हरिश्चन्द्र भी कर्जदार बा || का बा राजा बनारस……. वरुणा-असी क अद्भुत संगम, शिव डमरू क डम-डम-डम | सुबह-ए-बनारस मनभावन, गंगा आरती क दृश्य विहंगम || धर्म-अध्यात्म क ई नगरी, शिव-त्रिशूल पर टिकल सही बा | सारनाथ में बुद्ध क दर्शन, पावन कर देला सबकर मन || का बा राजा बनारस…..         भारत-माता मन्दिर के देखे, देश-विदेश से लोगवा आवें | राम नगर किला सबही के, गौरवशाली इतिहास देखावे || ऊँच-नीच क शब्द इहाँ, केहरो भी न त पावल जाला   | संत रविदास के इहवां पर, बड़ श्रद्धा संग पूजल जाला || का बा राजा बनारस…. चेला भी गुरु कहल जाला, हर अड़ी चुनाव लड़ल जाला | बात-बात में बड़का संबोधन, देके प्यार से भिड़ल जाला || राशन इहाँ उठावे वालन, अन्न पुजारी सब बढ़के मिलिहें | रेती पार पहुँच गदबेला, सिलबट्टा पर भाँग घोटल जाला || का बा राजा बनारस…. बड़का छोटका भेद मिटावे,...

सूरजकुण्ड मेला : परम्परागत माध्यम का आधुनिक रूप

  देश के प्रमुख लक्खी मेलों में शुमार ‘सूरजकुण्ड अन्तर्राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला’ एक आधुनिक लोक सम्मेलन है । दिल्ली से सटे हरियाणा के शहर फरीदाबाद को सूरजकुण्ड मेले के आयोजन के लिए भी विशेषतौर पर जाना जाता है । इस मेले का आयोजन फ़रवरी महीने के पहले पक्ष में किया जाता है । दो हफ्ते तक चलने वाले इस मेले में न सिर्फ परम्परागत कलाओं की जीवन्त झाँकी देखने को मिलती है बल्कि कई मायनों में इस मेले से आधुनिकता की भीनी- भीनी खुश्बू भी आती है, ऐसा लगता है जैसे मेले में गाँव और शहर दोनों के रंग मिलाकर किसी ने चित्रकारी की हो । वैसे तो सूरजकुण्ड गाँव है परन्तु मेले के दौरान यह छोटी सी जगह शहरी परिवेश के आगन्तुकों से पटा पड़ा होता है । मेले का नैसर्गिक स्वरूप हो या फिर आधुनिकता का तड़का, ४० एकड़ में फैले मेला परिसर में दोनों का बोध होता है । एक तरफ जहाँ यह मेला ग्रामीण कलाकारों को मंच प्रदान करता है वहीं दूसरी तरफ शहरी लोगों के रूप में आधुनिकता से ओत- प्रोत दर्शक भी । प्रतिवर्ष लाखों आगन्तुकों को अपनी तरफ खींचकर ले आने वाले इस मेले में विदेशी सैलानियों की संख्या भी हजारों में होती है । सार्क देशों क...