उलझन
एक अजीब उलझन में हूँ, मद्धम धड़कन में हूँ | हुई है कातिल हवा ऐसी, ज़िन्दा ही कफ़न में हूँ || मौत के शोर में डूबे हुए, करूण क्रन्दन में हूँ | रौंद गया हो जिसे कोई, उजड़े गुलशन में हूँ || छाया है गुबार हर तरफ, चिता के धुँआओं का | आसमां भी रो रहा, रंग बदला है घटाओं का || सियासत के कद्रदान, इस कदर हुए हैं मेहरबान | नोंच रहे ज़िन्दा लाश, हुक्मरानों के बन्धन में हूँ || जल रहे मेरे ख़्वाब ‘दीप’, ख़्वाबों के तपन में हूँ | कह रही उखड़ती साँसें, कुछ पल ही तन में हूँ ||