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उलझन

एक अजीब उलझन में हूँ, मद्धम धड़कन में हूँ | हुई है कातिल हवा ऐसी, ज़िन्दा ही कफ़न में हूँ || मौत के शोर में डूबे हुए, करूण क्रन्दन में हूँ | रौंद गया हो जिसे कोई, उजड़े गुलशन में हूँ   || छाया है गुबार हर तरफ, चिता के धुँआओं का | आसमां भी रो रहा, रंग बदला है घटाओं का || सियासत के कद्रदान, इस कदर हुए हैं मेहरबान | नोंच रहे ज़िन्दा लाश, हुक्मरानों के बन्धन में हूँ || जल रहे मेरे ख़्वाब ‘दीप’, ख़्वाबों के तपन में हूँ | कह रही उखड़ती साँसें, कुछ पल ही तन में हूँ ||

रूकती नहीं है ज़िन्दगी

  रूकती नहीं है ज़िन्दगी, राहों के रूक जाने से | कारवां बिछड़ जाने से, शमां के बुझ जाने से || आती नहीं है रौशनी, कभी अरमां जलाने से | सूखता नहीं समन्दर, नदियों के सूख जाने से || हो जाये रात अगर, समन्दर से कभी गहरी | होगी फिर सुबह नई, उजाले के आने से || जीवन के धूप-छाँव में, दिखते हैं रोज रंग नये | कट जाते मुश्किल सफ़र, कुछ क़दम बढ़ाने से || रोका है किसने आपको, ग़म में मुस्कुराने से | ख़्वाबों को बुनने से, मन्जिल को पाने से ||

हमने देखी है…

  बदलते मौसम की बेरूखी हमने देखी है, आँखों में दर्द और बेबसी हमने देखी है | गुमान था जिसे सफलता के आसमां का, सरकती हुई एक ज़िन्दगी हमने देखी है || होती है जो कभी उजाले में हरपल साथ, अँधेरे में परछाईं की बेरूखी हमने देखी है | प्यार में सराबोर थी जो ज़िन्दगी कभी, प्यार की बूँद को तरसती हमने देखी है || अर्श से फर्श के दरमयां बदलते रिश्ते, हिज्र-ए-शाम की मायूसी हमने देखी है | बदल जाते पैमाने सिक्के की खनक से, ऐसे मयखाने की मयकशी हमने देखी है ||