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बाजारवाद और उपभोक्ता संरक्षण

बाजार की दृष्टि से भारत विश्व के तमाम देशों के लिए सबसे अधिक संभावनाओं वाला क्षेत्र है | उत्पाद बनाने वाली सभी बड़ी कम्पनियां न सिर्फ भारत के बाजार में पैठ बनाने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाती हैं अपितु बाजार विस्तार के लिए लगातार प्रयासरत दिखती हैं | वैश्वीकरण के बाद से भारत का उपभोक्ता बाजार विश्व के तमाम देशों के लिए खुल गया जिससे उत्पाद अथवा सेवा प्रदान वाली विदेशी कम्पनियों ने भारतीय बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करना शुरू कर दिया | कुछ विदेशी कम्पनियों ने सस्ते उत्पाद के जरिये भारतीय उत्पादों को बाजार से लगभग बाहर कर दिया तो वहीं कुछ भारतीय कम्पनियों ने बाजार में बने रहने के लिए अपने उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता करना शुरू कर दिया | फलस्वरूप उत्पाद अथवा सेवा की उपलब्धता तो बढ़ी परन्तु उपभोक्ता हितों पर भी व्यापक असर देखने को मिला | बाजारवाद की बढ़ती संस्कृति ने उपभोक्ता हितों को सर्वाधिक प्रभावित किया है |   अधिक मुनाफे की चाह ने उपभोक्ता हितों को हाशिए पर ले जाने का कार्य किया है, साथ ही मिलावटी अथवा नकली उत्पादों की समस्या से भी दो-चार होना पड़ा है | त्योहारों के समय अक्सर ही ...

मैं हिंदू हूँ

सत्य सनातन का संवाहक, हिंद-कुश का हिंदू हूँ | सप्तऋषियों का वंशज मैं, नभमण्डल का बिंदू हूँ || राम की मर्यादा मुझमें, कृष्ण की आभा है मुझमें | भगीरथ सा तप है मुझमें, प्रेम भाव का मैं सिंधू हूँ || वेद-पुराण रग-रग में मेरे, धर्म-नीति जीवनपथ में मेरे | त्याग दधीचि सा है मुझमें, मैं सृष्टि का केंद्र बिंदू हूँ ||