बाजारवाद और उपभोक्ता संरक्षण
बाजार की दृष्टि से भारत विश्व के तमाम देशों के लिए सबसे अधिक संभावनाओं वाला क्षेत्र है | उत्पाद बनाने वाली सभी बड़ी कम्पनियां न सिर्फ भारत के बाजार में पैठ बनाने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाती हैं अपितु बाजार विस्तार के लिए लगातार प्रयासरत दिखती हैं | वैश्वीकरण के बाद से भारत का उपभोक्ता बाजार विश्व के तमाम देशों के लिए खुल गया जिससे उत्पाद अथवा सेवा प्रदान वाली विदेशी कम्पनियों ने भारतीय बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करना शुरू कर दिया | कुछ विदेशी कम्पनियों ने सस्ते उत्पाद के जरिये भारतीय उत्पादों को बाजार से लगभग बाहर कर दिया तो वहीं कुछ भारतीय कम्पनियों ने बाजार में बने रहने के लिए अपने उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता करना शुरू कर दिया | फलस्वरूप उत्पाद अथवा सेवा की उपलब्धता तो बढ़ी परन्तु उपभोक्ता हितों पर भी व्यापक असर देखने को मिला | बाजारवाद की बढ़ती संस्कृति ने उपभोक्ता हितों को सर्वाधिक प्रभावित किया है | अधिक मुनाफे की चाह ने उपभोक्ता हितों को हाशिए पर ले जाने का कार्य किया है, साथ ही मिलावटी अथवा नकली उत्पादों की समस्या से भी दो-चार होना पड़ा है | त्योहारों के समय अक्सर ही मिलावटी सामानों की बिक्री सम्बन्धित समाचार सुनने को मिलते हैं | कुछ स्थानों पर सरकारी महकमा छापेमारी कर उत्पाद को जब्त करता दिखता है तो वहीं कुछ मामलों में गिरफ़्तारी भी दिखती है | परन्तु जब मामला बड़ी कंपनियों से जुड़ा होता है तो आम उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-१९८६ ही अन्तिम विकल्प नजर आता है जिसकी सहायता से उपभोक्ता न्याय की उम्मीद करता है |
कई बार जमाखोरी की वजह
से बाजार में उत्पाद की किल्लत पैदा हो जाती है जिसका फायदा उठाकर मुट्ठी भर लोग न
सिर्फ उत्पाद को मनमाने दाम पर बेचते हैं अपितु उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम की
अवहेलना भी करते हैं | अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य पर उत्पाद बेचना
गैरक़ानूनी है परन्तु माँग एवं उत्पाद उपलब्धता के बीच बड़े अन्तर बताकर उपभोक्ता को
ठगा जाता है | कई बार भ्रामक विज्ञापनों के जरिये उपभोक्ता को धोखा दिया जाता है
तो कई बार विपणन के चक्रव्यूह में उपभोक्ता रुपी अभिमन्यु स्वतः ही फँस जाता है | अक्सर
ही कम्पनियां अपनी सेवा शर्तों को छुपाने का प्रयास करती दिखती हैं, एवं
विज्ञापनों में उन्हें इस प्रकार से दर्शाया जाता है जिसे उपभोक्ता आसानी से समझ न
सके | जब भी उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज कराता है, कम्पनियां इन्हीं सेवा शर्तों को
रक्षा कवच के रूप में उपयोग करती हैं | उत्पाद अथवा सेवा प्रदान करने वाली कम्पनी
का तर्क होता है कि हमने तो अपनी सेवा शर्तों के बारे में पहले ही बता दिया था, अब
अगर उपभोक्ता ने उन सेवा शर्तों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो इसमें कम्पनी की क्या
गलती ?
ऐसे में प्रश्न यह
उठता है कि उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा कैसे करे ? निश्चित तौर पर इस प्रश्न का
उत्तर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों में मिलता है | २४ दिसम्बर, १९८६ को
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-१९८६ अस्तित्व में आया जिसने उपभोक्ताओं के हितों को
सुरक्षित रखने का आधार दिया एवं सरकार द्वारा उत्पाद अथवा सेवा प्रदत्त करने वाली
कम्पनियों की मनमानी पर अंकुश लगाने की ओर कदम बढ़ाया गया | यह अधिनियम उपभोक्ता अधिकारों
के सशक्तिकरण की दिशा में सरकार का एक सार्थक प्रयास है | चूँकि उपभोक्ता संरक्षण
अधिनियम सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है, अतः इसके प्रावधानों की जानकारी
प्रत्येक भारतीय को होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित किया जा सके |
वैश्वीकरण के इस युग में बाजार पर नियंत्रण अथवा निगरानी बहुत ही दुरूह कार्य है |
ऐसे में सरकार का यह फ़र्ज बनता है कि वह प्रत्येक भारतीय नागरिक को उपभोक्ता हितों
के प्रति जागरूक करे | विगत कुछ वर्षों में सरकार ने इस दिशा में प्रयास भी किया
है परन्तु आज भी भारतीय जनमानस अपने उपभोक्ता अधिकारों के प्रति उतना सचेत व सतर्क
नहीं दिखता है जितना कि पश्चिमी देशों के उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति सचेत
दिखलाई पड़ते हैं |
सरकार उपभोक्ताओं को
जागरूक करने के लिए जनहित विज्ञापनों का उपयोग करते दिखती है एवं ‘जागो ग्राहक
जागो’ जैसी मुहीम के जरिये उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करती है | इस
मुहीम ने भले ही शहरी उपभोक्ताओं को कुछ हद तक जागरूक किया है परन्तु ग्रामीण
परिवेश के उपभोक्ताओं में आज भी उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता का स्तर बहुत
ही कम है | ऐसे में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धार कुंद हो जाती है क्योंकि
ग्रामीण उपभोक्ता अपनी शिकायत लेकर सम्बन्धित फोरम तक पहुँच ही नहीं पाता है जबकि
वह उत्पाद एवं सेवा सम्बन्धित किसी भी शिकायत को ‘कंज्यूमर फोरम’ में दर्ज करा
सकता है | उपभोक्ता विवाद के निपटारे के
लिए जिला, राज्य अथवा राष्ट्रीय स्तर पर त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की व्यवस्था है
जो उपभोक्ता द्वारा किये गये शिकायत को देखती, परखती, एवं तदानुसार निर्णय लेती है
| उपभोक्ता को एन सी डी आर सी डॉट एन आई सी डॉट इन पर फोरम सम्बन्धित समस्त विवरण
प्राप्त हो सकता है, एवं वह अपनी शिकायत स्वयं अथवा प्रतिनिधि के जरिये २ वर्ष की
समय सीमा के अन्दर सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है | बाजार भले ही
सरकार के आय का प्रमुख स्रोत है परन्तु उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित करना एवं
उनका संवर्धन करना भी सरकार की जिम्मेदारी है | त्रिस्तरीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद
की स्थापना करके सरकार ने भले ही उपभोक्ता हितों को पुख्ता किया है परन्तु जब तक
आम उपभोक्ता पूरी तरह जागरूक नहीं हो जाता, अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल ही है |
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