अमर शहीदों के शौर्य और बलिदान की दस्तावेज प्रस्तुत करती फ़िल्में
23 मार्च, 1931 भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में वह तिथि है जो आज भी हमें आज़ादी का मूल्य समझाती है, साथ ही हँसते-हँसते फांसी के फंदे को गले लगा लेने वाले अमर बलिदानियों के त्याग और बलिदान की याद दिलाती है | यह तिथि हमें भारत माँ को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने वाले उन वीर शहीदों की याद दिलाती है जो भारतीय स्वतंत्रता की पटकथा लिखते हुए सदा के लिए खामोश हो गये | भारतीय स्वतंत्रता के नायकों की जब भी बात होगी, अमर शहीद भगत सिंह की जरुर बात होगी | शहीद भगत सिंह का व्यक्तित्व न सिर्फ भारतीय जनमानस में क्रांति का ‘इंकलाब’ पैदा करता है अपितु फिल्मकारों को भी खींचता है | आजादी के लगभग 75 वर्ष बाद भी स्वतंत्रता आन्दोलन की पृष्ठभूमि को केंद्र में रखकर फ़िल्में बन रही हैं जिनमें भारतीय स्वतंत्रता की पटकथा लिखने वाले नायकों के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया जाता है | यह विषय आजादी के लगभग 75 वर्ष पूरा होने के बावजूद न सिर्फ फिल्म निर्माताओं को अपनी तरफ खींचता है अपितु भारतीय जनमानस में आज़ादी के संघर्षों से जुड़ी मुख्य घटनाओं सम्बन्धित संचार भी करता है | बड़े पर्दे पर ‘शही...