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मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जल स्रोतों को बचाना जरुरी

पिछले कुछ वर्षों में देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में पेय जल का संकट देखने को मिला है वहीं ग्रामीण क्षेत्र भी सूखते जलस्रोतों को देखने को विवश दिखे हैं | एक तरफ गंगा, यमुना, कावेरी, एवं नर्मदा जैसी बड़ी नदियों का स्वतन्त्र जल प्रवाह अवरूद्ध होता दिखा है वहीं वर्षों से ग्रामीण जीवन का हिस्सा रहे कुएं एवं नलकूप का जल स्तर भी बेहद नीचे पहुँच चुका है | ताल, तलैया जहाँ बीते दिनों की बात हैं वहीं देश की प्रमुख झील सूखे का दंश झेलने को विवश हैं | तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद छोटे तालाब एवं पोखर भी दयनीय स्थिति में ही दिखते हैं | जल स्रोतों के रूप में उपलब्ध लगभग सभी विकल्प आज गम्भीर संकट का सामना कर रहे हैं | सरकारी तंत्र की अनदेखी एवं आम जनमानस की उपेक्षा से भले ही जल स्रोत संकट ग्रस्त दिखते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि इससे पूरा जीवन तंत्र ही खतरे में है | जल ही जीवन है, सदियों पुरानी यह उक्ति हमारे जीवन में जल की उपयोगिता को रेखांकित करती है और हमें सचेत करती है कि जिस दिन जल स्रोतों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा, उस दिन पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जायेगा | नदियाँ मानव सभ्यता के विकास की स...

हिन्दी पत्रकारिता : संभावनाएं एवं चुनौतियाँ

पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ी तेजी से बदलाव देखने को मिले हैं | कुछ बदलाव जहाँ सकारात्मक प्रतीत होते हैं वहीं कुछ बदलाव २०० वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष कठिन चुनौती प्रस्तुत  करते नज़र आते हैं | प्रसार संख्या की दृष्टि से अंग्रेजी समाचार पत्रों से काफी आगे निकल चुके हिन्दी समाचार पत्र इसके समृद्ध संसार को दर्शाते हैं तो वहीं हिन्दी समाचार चैनल तेजी से बाजार विस्तार कर रहे हैं | अच्छी यातायात व्यवस्था, साक्षरता दर में सुधार, एवं उन्नत तकनीकी ने समाचार पत्रों को ग्रामीण बाज़ार की तरफ अग्रसर करने का कार्य किया है | साथ टी वी चैनल बड़ी तेजी से क्षेत्र विस्तार करने में लगे हैं जिससे सुदूरवर्ती क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में भी सिर्फ दूरदर्शन सेवा प्राप्त करने की बाध्यता  समाप्त हो गई है | आज हिन्दी पत्रकारिता, अंग्रेजी एवं अन्य भाषायी पत्रकारिता से कोसों आगे नज़र आती है जिन्हें आई आर एस की रिपोर्ट पुष्ट करती है | टेलीविजन रेटिंग पॉइंट में भी हिन्दी समाचार चैनलों को आगे देखा जा सकता है | हिन्दी पत्रकारिता के बाजार विस्तार के पीछे ह...

प्लास्टिक कचरे का बढ़ता बोझ

पर्यावरण के समक्ष उपस्थित वर्तमान चुनौतियों में प्लास्टिक जनित चुनौती सर्व-प्रमुख है | प्लास्टिक किसी न किसी रूप में हमारे दैनिक गतिविधियों में इस प्रकार से सम्मिलित हो चुका है कि तमाम प्रयत्न के बावजूद हम अपने जीवन से इसे निकाल नहीं पा रहे हैं | एक तरफ सरकार द्वारा ‘प्लास्टिक मुक्त भारत की’ कोशिशें की जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक कचरे का लग रहा अम्बार भविष्य में एक गम्भीर परिणाम की तरफ इशारा कर रहा है | आज सिंगल यूज़ प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है | केंद्र एवं राज्य स्तर पर प्लास्टिक का उपयोग रोकने के लिए कई कानून भी लागू हैं परन्तु इनका प्रभावी असर देखने को नहीं मिलता है | सरकार द्वारा निर्देश जारी होने के बाद भले ही कुछ दिनों तक लोग प्लास्टिक के उपयोग से बचते हैं परन्तु कुछ दिनों के बाद ही सब सामान्य हो जाता है | सरकारी मशीनरी की सक्रियता कम होती जाती है एवं प्लास्टिक उत्पाद निर्माता कम्पनियों के हौसले बुलन्द होते जाते हैं | दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति एवं इण्डियन पाल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सालाना भारत में ३४ लाख टन प्...