प्लास्टिक कचरे का बढ़ता बोझ
पर्यावरण के समक्ष उपस्थित वर्तमान चुनौतियों में प्लास्टिक जनित चुनौती सर्व-प्रमुख है | प्लास्टिक किसी न किसी रूप में हमारे दैनिक गतिविधियों में इस प्रकार से सम्मिलित हो चुका है कि तमाम प्रयत्न के बावजूद हम अपने जीवन से इसे निकाल नहीं पा रहे हैं | एक तरफ सरकार द्वारा ‘प्लास्टिक मुक्त भारत की’ कोशिशें की जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक कचरे का लग रहा अम्बार भविष्य में एक गम्भीर परिणाम की तरफ इशारा कर रहा है | आज सिंगल यूज़ प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है | केंद्र एवं राज्य स्तर पर प्लास्टिक का उपयोग रोकने के लिए कई कानून भी लागू हैं परन्तु इनका प्रभावी असर देखने को नहीं मिलता है | सरकार द्वारा निर्देश जारी होने के बाद भले ही कुछ दिनों तक लोग प्लास्टिक के उपयोग से बचते हैं परन्तु कुछ दिनों के बाद ही सब सामान्य हो जाता है | सरकारी मशीनरी की सक्रियता कम होती जाती है एवं प्लास्टिक उत्पाद निर्माता कम्पनियों के हौसले बुलन्द होते जाते हैं | दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति एवं इण्डियन पाल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सालाना भारत में ३४ लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है तो वहीं राजधानी दिल्ली से प्रतिदिन लगभग ६३२ टन प्लास्टिक कचरा निकलता है | लगभग २ करोड़ जनसँख्या वाली दिल्ली प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने में भारत में छठें स्थान पर है तो वहीं महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर है | प्रत्येक व्यक्ति को यह लगता है कि सिर्फ़ हमारे द्वारा प्लास्टिक के उपयोग करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा परन्तु सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट हमें आगाह करती है जिसमें कहा गया है कि पिछले तीन दशक में प्लास्टिक के उपयोग में २० गुना बढ़ोत्तरी हुई है | पिछले कुछ वर्षों में प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ना इस बात की तरफ संकेत देता है कि धरती को कैंसर बाँटती प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के प्रति हम गम्भीर नहीं हैं | एक रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक की गिलास में गरम चाय पीने से कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है जबकि प्लास्टिक की प्लेट में भोजन करना कैंसर को आमंत्रण देना है |
सिंगल यूज़ प्लास्टिक रुपी कचरे का आसानी से नष्ट न होना इसकी भयावहता को दर्शाता है | इस प्रकार का कचरा पर्यावरण के लिए बिल्कुल ही अनुकूल नहीं है | डिस्पोजेबल के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला प्लास्टिक या तो कूड़े में फेंक दिया जाता है या फिर नाले अथवा नदियों के माध्यम से समुद्री जीव-जन्तुओं के समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा करता हुआ दिखता है | विज्ञान प्रसार की वेबसाइट पर उपलब्ध एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्री कचरे में ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ की मात्रा ५० प्रतिशत से भी अधिक है जिससे समुद्र के पारिस्थितिकीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है | इन प्लास्टिक उत्पादों को जलाने से वायु प्रदूषण से होने वाली बिमारियों का खतरा भी रहता है | विभिन्न उत्पादों के पैकेजिंग में प्रयुक्त होने वाली प्लास्टिक न सिर्फ मृदा प्रदूषण को बढ़ा रही है अपितु विभिन्न स्रोतों के माध्यम से पहुँचकर समुन्द्र के अन्दर भी प्लास्टिक कचरे का अम्बार लगा रही है जिससे समुद्री जीव- जन्तुओं के समक्ष भी विभिन्न संकट उत्पन्न हो रहा है | खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में प्रयुक्त प्लास्टिक कई प्रकार की बिमारियां बाँट रही है | चाय की दुकान से लेकर मिठाई की दुकान एवं रेस्तरां तक प्लास्टिक से बने गिलास या प्लेट के उपयोग को देखा जा सकता है | यही नहीं शादी व्याह एवं अन्य आयोजनों के अवसर पर मिट्टी से बने कुल्हड़ एवं पेड़ के पत्तों से बने पत्तल का उपयोग करने वाला गाँव भी आज प्लास्टिक से निर्मित प्लेट एवं गिलास का उपयोग कर रहा है जिसके निस्तारण की कोई भी व्यवस्था गाँवों में नहीं है | मिट्टी से बने बर्तन एवं पत्तों से बने पत्तल जहाँ स्वाभाविक तरीके से मिट्टी में मिलकर नष्ट हो जाते थे वहीं प्लास्टिक निर्मित प्लेट एवं गिलास मिट्टी को दूषित करने का कार्य कर रहे हैं | प्लास्टिक निर्मित उत्पादों की आसानी से उपलब्धता एवं कम लागत होने के कारण भोला-भाला ग्रामीण भी मरीचिका के वशीभूत होकर परम्पराओं से दूर हो रहा है जिसका परिणाम यह हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है | विगत कुछ वर्षों में सिंगल यूज़ प्लास्टिक के कारण कई समस्या देखने को मिली है | देश में ५० माइक्रोन से पतली थैलियों अथवा प्लास्टिक सामग्री के निर्माण, भण्डारण एवं बिक्री पर रोक है परन्तु सच्चाई यह है कि ऐसे उत्पाद भारतीय बाजारों में आसानी से देखे जा सकते हैं |
अब प्रश्न यह उठता है कि तमाम नियम कानून होने एवं प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले नुकसान को जानने के बावजूद भी इसका उपयोग बन्द क्यों नहीं हो रहा है ? निश्चित तौर पर यह प्रश्न पर्यावरणविदों को परेशान कर रहा है | पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही विभिन्न संस्थाएं न सिर्फ मंथन करती आ रही हैं अपितु सरकार को सुझाव भी देती आई हैं कि वह ‘सस्टेनेबल पैकेजिंग’ को प्रोत्साहित करे एवं जल्द से जल्द प्लास्टिक के विकल्प की उपलब्धता भी सुनिश्चित करे | कम्पनियां सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उत्पाद न बनायें, यह सुनिश्चित करना भी अत्यन्त आवश्यक है | प्लास्टिक का विकल्प तलाशना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब धरती को कैंसर दे रही प्लास्टिक धरती पर जीवन को गम्भीर संकट में डाल दे | हो सकता है कि प्लास्टिक का विकल्प महँगा हो परन्तु हमें इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार होना होगा | सरकार इस दिशा में जन-जागरूकता अभियान के जरिये अनुकूल वातावरण तैयार कर सकती है | पैकेजिंग की परम्परागत पद्धति को प्रोत्साहित करने की जरुरत है जिससे स्थानीय स्तर पर प्लास्टिक के विकल्प के रूप में मौजूद उत्पाद लोगों तक पहुँच सकें | ग्रीन पैकेजिंग की प्रक्रिया अपनाकर प्लास्टिक कचरे के बढ़ते बोझ को कम किया जा सकता है परन्तु यह तभी सम्भव है जब सभी लोग इसे गम्भीरता से लें | सरकार लोगों को जागरूक कर इस प्रक्रिया में जनसहभागिता सुनिश्चित करे, साथ ही ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ से विविध उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों के लिए कठोर दण्ड लागू करे | जनता को भी चाहिए कि प्लास्टिक से बने उत्पादों का स्वैच्छिक रूप से त्याग करे जिससे पर्यावरण के समक्ष गम्भीर संकट के रूप में खड़े प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से बचा जा सके |
Nice
जवाब देंहटाएंBahut hi Vistar se samjhaya hai apne. Iska alternative sarkaar ko dhoondhna chahiye Taki company plastic packaging band Kar de. Log prayog karna band Kar denge. Ye Mera manana hai.
जवाब देंहटाएंPlastic is a blessing and most amazing product but due to human selfishness and ignorance is has become a threat to our mother earth. We humans can still bring the change.
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