संदेश

नई सुबह

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  तिमिर छंटते ही, खुशनुमा सहर होगी | पाँव जमीं पे,   आसमां पे नज़र होगी || काँटे अनगिनत हैं राह में, तो क्या हुआ | फूलों से संजी कल, अपनी डगर होगी || रोक ले कदम जो, तूफानों में दम नहीं | बदल दे हवा का रूख, वो मौसम नहीं || उजाले में परछाईयों की, परवाह नहीं | मेरे किरदार में चमक, उम्र भर होगी || हौसलों से बाँध रखा है, कश्ती की डोर | साहिल तक पहुंचेगी, चाहे भँवर होगी || आज तन्हा सफ़र है, कल होगा कारवां | इतिहास के पन्नों में, कहानी अमर होगी || रेत पर भी बन जायेंगे,   पक्के आशियां | जमीं से जुड़ने की, अंगद सी हुनर होगी || आज जिक्र न हो ‘दीप’, तो कोई बात नहीं | मेरे जाने के बाद, मेरी चर्चा मगर होगी ||  

छोटी सी ज़िन्दगी

  क्या गलत क्या सही है दोस्तों | इतनी ही समझ नहीं है दोस्तों || ख़ामोश आँखें कुछ कहती नहीं | रिश्तों में बर्फ़ जमी है दोस्तों || जिसके मिलने से थी हर ख़ुशी | बन गया अजनबी है दोस्तों || बढ़ गयी हैं दूरियां इस कदर | कोई नज़र जैसे लगी है दोस्तों || बढ़ रहे रोज उलझनों के धागे | ज़िन्दगी ये उलझ रही है दोस्तों || रेत पे खड़ी है दिवार रिश्तों की | धीरे-धीरे   गिर रही है दोस्तों || आओ साफ करते हैं उस धूल को | नफरतों की ‘दीप’ जमी है दोस्तों || गिले-शिकवे मिटा लग लें गले | बड़ी छोटी सी ज़िन्दगी है दोस्तों ||  

हर युग में प्रासंगिक रहा है शिक्षक

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  विगत कुछ वर्षों में तकनीकी के क्षेत्र में हुए बदलाव ने शिक्षण व्यवस्था को भी प्रभावित किया है, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विस्तार ने शिक्षण पद्धति पर व्यापक असर डाला है, और बदलते परिवेश में असंख्य लोग शिक्षक नामक संस्था की आवश्यकता और प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करने लगे हैं | उनको लगता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विद्यार्थी को अंतर्वस्तु की जिस दुनिया में ले जा सकता है, उस दुनिया में शिष्य को पहुँचाना किसी भी शिक्षक के लिए सम्भव नहीं है | निश्चित रूप से तकनीकी ने शिक्षण प्रक्रिया को बदला है, एवं शिक्षार्थी के लिए इंटरेक्टिव ज्ञानार्जन का एक विकल्प प्रदान किया है | तथ्य को टेक्स्ट, आवाज, एवं दृश्य के संगम के रूप में प्रस्तुत करके उसकी ग्राह्यता को बढ़ाकर आधुनिक तकनीकी ने एक नया परिदृश्य तैयार कर दिया है जो तेजी से विद्यार्जन के केंद्र रहे शिक्षक नामक संस्था के सामने चुनौती प्रस्तुत कर रही है | आज ए आई के कई टूल्स उपलब्ध हैं जो विद्यार्थी को दत्त-कार्य पूरा करने में सहायता करते हैं तो वहीं कई ऐसे टूल्स भी हैं जो शिक्षक को शिक्षार्थी के कार्य की समीक्षा करने एवं मूल्...

उड़ान

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  तूफान कहाँ रोक पाते, हौंसले की उड़ान को | बादल कहाँ ढक पाते, नीले आसमान को || मुश्किलों के पहाड़ से, घबराना न तुम कभी | मेहनत के हथौड़े से, तोड़ देना हर चट्टान को || पाँव के नीचे रेत अगर, कभी फिसलने लगे | बर्फ बन खुशियाँ कभी, तेज पिघलने लगे || जीवन के झंझावातों से, हो अगर सामना | निराशा के भाव में, खोना न मुस्कान को || जिन्दा रखना ख्वाब, लक्ष्य बनाकर आँखों में | जैसे हो धड़कन कोई, जिन्दा तेरी साँसों में || ज़िन्दगी के सफ़र में, आयेंगे ऐसे मोड़ भी | छीन लेंगे तुमसे ‘दीप’, तुम्हारी पहचान को   || बहते रहना नदियों सा, सागर को पाने तुम | याद रखेगी दुनिया,   तुम्हारे इस मिलान को ||

जनसंख्या की रफ़्तार घटे तो बात बने

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  भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से 7 वां स्थान रखने वाला भारत आज दुनिया का सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश बन चुका है | विश्व का हर छठां व्यक्ति भारतीय है जो हमें गर्वान्वित करने का अवसर देता है क्योंकि मानव संसाधन के रूप में हमारे पास एक ऐसी पूंजी है जो हमें विश्व के अन्य विकासशील देशों से अलग करती है विशेष रूप से सर्वाधिक युवा प्रतिनिधित्व एक सुखद एवं समृद्ध भविष्य का संकेत देता है | पड़ोसी देश चीन की तुलना में हमारे पास अधिक युवा शक्ति है जो विकसित भारत के रथ को गति प्रदान कर सकती है | हालाँकि वर्तमान समय में कौशल एवं तकनीकि दृष्टि से उपलब्ध भारतीय मानव संसाधन वैश्विक बाजार में उपलब्ध अवसरों को अपने पक्ष में कर पायेगा, संदेह पैदा करता है | इसके पीछे तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं उपलब्ध संसाधनों के बीच लगातार बढ़ रही असमानता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है | रोजगार सृजन के सभी प्रयास जनसंख्या बृद्धि के समक्ष अत्यंत कम पड़ रहे हैं जिससे उपलब्ध मानव संसाधन की सक्रीय सहभागिता सुनिश्चित करना कठिन होता जा रहा है | सरकार जब तक 1 करोड़ रोजगार सृजित करती है, जनसंख्या 10 करोड़ अथवा उससे अधिक बढ़ जाती ...

सिसकता मंजर

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  ख़ुश्क समंदर ने सींचा है शज़र कोई | रेत पर बना आया है जैसे घर कोई   || प्यार की कश्ती कोई डूबी है आज   | इकरार ए मुहब्बत से गया मुकर कोई || गुस्ताख़ हवाओं का सितम देखिये   | तिनका-२ सा गया है बिखर कोई || सहमा सा गुमसुम छुप रहा कोने में | ख़ुद की परछाई से जैसे है डर कोई   || बेइंतहां दर्द है उसकी सिसकियों में   | दर्द ए दरिया में आया हो भंवर कोई || अश्कों से नहाकर ‘दीप’ लौटा है वो | सिसकता दिखा है फिर मंजर कोई ||

रेत सी है ज़िन्दगी

  रेत सी है ज़िन्दगी इसका ऐतबार नहीं  | तेरे जाने के बाद जीवन में बहार नहीं    || हुई है मुहब्बत अश्कों से जबसे मुझे     | इन आँखों को किसी का इन्तजार नहीं  || यूँ तो आये हैं कई ज़िन्दगी में आने वाले   | तेरे जैसा मगर कोई यहाँ यार नहीं      || मेरे अक्स से मेरी मुलाक़ात हो जाये   | दो पल का कोई ऐसा त्यौहार नहीं     || पतझड़ भी लगता है अब सावन सा | खुशियों वाली रिमझिम फुहार नहीं  || जिंदा हूँ जब तक कोई जान न पायेगा   | ज़िन्दगी से ‘दीप’ मुझे   प्यार नहीं  ||