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मुसाफ़िर

  कोशिशों के रास्ते में मिल रही हार अगर | किनारों के पास रूक रही पतवार अगर || रुकना नहीं मुसाफ़िर थक हार कर कभी   | आसमां से बरस रहे राह में अंगार अगर || हार और जीत में केवल थोड़ा है फासला | असम्भव ही सम्भव का दिखाता है रास्ता || भागना नहीं मुसाफ़िर मुँह मोड़ कर कभी | आ जाये रास्ते में मुश्किलों के पहाड़ अगर || हर रात के बाद सुबह का पैगाम है यही | अँधेरा कितना भी घना हो छंटता है सही || डरना नहीं मुसाफ़िर ज़िन्दगी के मोड़ पर   | दिख रहे राह में झंझावातों के जंजाल अगर ||    

राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय दृष्टि

  प्राचीन काल से ही भारत अपने शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए विश्व-विख्यात रहा है | सदियों से यहाँ का शैक्षणिक वातावरण न सिर्फ दुनिया को आकर्षित करता रहा है अपितु अपने ज्ञान दर्शन से सभ्य एवं आदर्श समाज के निर्माण में योगदान भी देता रहा है | हमारे प्राचीन ग्रन्थ न सिर्फ भारतीय शिक्षा नीति एवं दृष्टि को स्पष्ट करते हैं अपितु समाज के सर्वांगीण विकास की धुरी रही शिक्षा व्यवस्था एवं उसकी प्रासंगिकता को भी दर्शाते हैं | गुरूकुल परम्परा को आत्मसात करने वाली शिक्षा व्यवस्था में गुरु को सृजनकर्ता की संज्ञा दी जाती है जिसमें राजा और रंक दोनों के लिए समान शिक्षा व्यवस्था की बात की गयी है | यह शिक्षा व्यवस्था एक तरफ चरित्र निर्माण की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | भाषायी वैविध्यता वाले भारत में प्रत्येक भाषा को ऊचित सम्मान प्राप्त होता है जो इसकी समग्रता के परिचायक होते हैं | नालन्दा एवं तक्षशीला जैसे विद्या केंद्र न सिर्फ भारतीय दर्शन का बोध कराते हैं अपितु ज्ञान-पुंज को विश्व में पल्लवित करने का कार्य भी करते हैं | अनेको...

पर्यावरण संरक्षण पर टिका भविष्य

पिछले कुछ वर्षों में मौसम ने जिस तरह से करवट बदला है उससे आने वाले खतरे का अंदेशा होने   लगा है | बिन मौसम के बारिश की मार हो या दिन प्रतिदिन चिलचिलाती गर्मी का टूटता रिकॉर्ड , बादल फटने की बढ़ती घटनाएं हों या फिर सैकड़ों को काल के गाल में ले जाने वाली लू का प्रकोप , निश्चित तौर पर प्रकृति हमें आगाह कर रही है | प्रकृति से हो रहे छेड़छाड़ ने पूरे पारिस्थितिकीय तंत्र को बदल दिया है जिससे प्रतिदिन एक नई चुनौती जन्म ले रही है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन एक तरफ इन संसाधनों की भविष्य में उपलब्धता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की समस्या को भी जन्म दे रहा है | आज मनुष्य की भौतिकवादी जीवनशैली एवं उपभोक्तावादी आचरण की कीमत पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक जीव किसी न किसी रूप में चुका रहा है | आर्थिक प्रगति को विकास की धुरी मान बैठा मानव जिस प्रकार से प्रकृति रुपी उसी डाल को काट रहा है जिसपर उसका अस्तित्व टिका है, निश्चित तौर पर उसकी सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है | विगत कुछ वर्षों से देश में बारिश की कमी की वजह से जहाँ कई राज्य सूखे का दंश झेल चुके हैं वहीं भार...