राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय दृष्टि

 

प्राचीन काल से ही भारत अपने शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए विश्व-विख्यात रहा है | सदियों से यहाँ का शैक्षणिक वातावरण न सिर्फ दुनिया को आकर्षित करता रहा है अपितु अपने ज्ञान दर्शन से सभ्य एवं आदर्श समाज के निर्माण में योगदान भी देता रहा है | हमारे प्राचीन ग्रन्थ न सिर्फ भारतीय शिक्षा नीति एवं दृष्टि को स्पष्ट करते हैं अपितु समाज के सर्वांगीण विकास की धुरी रही शिक्षा व्यवस्था एवं उसकी प्रासंगिकता को भी दर्शाते हैं | गुरूकुल परम्परा को आत्मसात करने वाली शिक्षा व्यवस्था में गुरु को सृजनकर्ता की संज्ञा दी जाती है जिसमें राजा और रंक दोनों के लिए समान शिक्षा व्यवस्था की बात की गयी है | यह शिक्षा व्यवस्था एक तरफ चरित्र निर्माण की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | भाषायी वैविध्यता वाले भारत में प्रत्येक भाषा को ऊचित सम्मान प्राप्त होता है जो इसकी समग्रता के परिचायक होते हैं | नालन्दा एवं तक्षशीला जैसे विद्या केंद्र न सिर्फ भारतीय दर्शन का बोध कराते हैं अपितु ज्ञान-पुंज को विश्व में पल्लवित करने का कार्य भी करते हैं | अनेकों विदेशी विद्वानों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को व्यक्तित्व निर्माण के आधारशिला के रूप में देखा एवं इसके बारे में लिखा | मैकाले पद्धति के लागू होने से पहले भारतीय शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में ज्ञानार्जन था, इसमें न ही भाषायी तिरष्कार था और न ही कोई भारतीय भाषा किसी दूसरी भारतीय भाषा से छोटी ही थी | मैकाले शिक्षा व्यवस्था के रक्तबीज से ऊपजे वामपंथी विद्वानों ने एक ऐसा चक्रव्यूह रचा जिसने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के मूल स्वरुप को पूरी तरह से विकृत कर दिया | आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी हमारे देश में मैकाले पद्धति पुष्पित-पल्लवित होती रही और ज्ञान को अंग्रेजियत से पहचाना जाने लगा जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्य भारतीय भाषाएँ पीछे छूटती चली गयीं और इस कसौटी पर खरा न उतरने वाला व्यक्ति भाषायी हीनता का शिकार होता गया | ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये मूल्यविहीन होती शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प किया जा सकता है हालाँकि इसके क्रियान्यवन में कई बाधाएँ भी दिखती हैं |

शिक्षा मनुष्य के मस्तिष्क का विकास करने के साथ ही उसके अन्दर आनुभविक मूल्यों की समझ विकसित करती है | शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को मात्र साक्षर न बनाकर उसे शिक्षित करने से है जो तभी सम्भव है जब हम शिक्षण व्यवस्था को व्यक्ति पर थोपे नहीं अपितु उसे आवश्यकतानुसार विकल्प चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करें | छात्र को अपनी मातृभाषा में शिक्षा का विकल्प उपलब्ध हो क्योंकि विज्ञान भी इस बात को महत्व देता है कि मातृभाषा में प्राप्त अन्तर्वस्तु की ग्राह्यता अधिक होती है | प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की बात करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति अंग्रेजी के बोझ से दब रहे उन मासुम नौनिहालों को बचाने का प्रयत्न करती दिखती है जो मैकाले के बुने जाल से कभी निकल नहीं पाते | आधुनिक भारत में शिक्षा जगत के सुपरिचित हस्ताक्षर रहे डॉ० राधाकृष्णन भी कहते थे कि शिक्षा का उद्देश्य शिक्षार्थी के मस्तिष्क में तथ्य ठूँसना नहीं है अपितु शिक्षार्थी के मस्तिष्क को इस प्रकार से विकसित करना है कि वह प्रस्तुत तथ्य को आसानी से समझ सके और व्यावहारिक जीवन में उसका उपयोग कर सके | प्रस्तुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति में डॉ० राधाकृष्णन के विचारों के अनुरूप व्यक्तित्व विकास पर बल दिया गया है जिसका लक्ष्य साक्षरता दर बढ़ाना नहीं है अपितु लोगों को इस प्रकार से शिक्षित करना है जिससे वे अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें | प्रस्तुत शिक्षा नीति न सिर्फ़ प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव की बात करती है अपितु उच्च शिक्षा व्यवस्था में परिवर्धन पर भी बल देती है जिससे दोनों के बीच कोई दरार न रहे | यह शिक्षा नीति शिक्षण व्यवस्था में लचीलापन लाने की बात भी करती है जिससे शिक्षक स्थानीय परिवेश को ध्यान में रखकर अध्यापन कार्य कर सके, साथ ही साथ पाठ्यक्रम बनाते समय स्थानीय भाषा, संस्कृति, एवं साहित्य को भी स्थान दिया जा सके |

भारतीय भाषाओं, कला, एवं संस्कृति की बात करने वाली यह नीति वास्तव में भारतीय दृष्टि को प्रस्तुत करती है | गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के साथ ही परम्परागत शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख बिन्दुओं को शामिल किया गया है जो मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में सहायक होती हैं | तकनीकी एवं नवाचारों को समझने के लिए भारतीय भाषाओं में अन्तर्वस्तु उपलब्ध कराने के साथ ही इच्छानुसार विषय चुनने अथवा एक साथ ऐच्छिक विषय का चुनाव करने की आजादी प्रदान करने वाली यह नीति निश्चय ही भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नया स्वरुप प्रदान करेगी जिसमें कोई विज्ञान विषय का छात्र इच्छानुसार कला अथवा अन्य विषय से भी जुड़ सकेगा | यह शिक्षा नीति समग्र और बहु-विषयक शिक्षा पर भी बल देती है जो विद्यार्थी की समझ विकसित करने के साथ ही उसके आर्थिकोपर्जन में सहायक हो सकती है | भारतीय समाज में शिक्षक को समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना गया है जो एक कुम्भार की भांति विद्यार्थी के व्यक्तित्व को आकार प्रदान करता है | कुम्भार जितना अधिक चपल और कुशल होगा, वह बर्तन को उतना ही अच्छा बना पायेगा अर्थात एक कुशल शिक्षक ही विद्यार्थी के व्यक्तित्व को निखार सकता है, इसके लिए शिक्षक के चयन एवं समयसापेक्ष नवाचारों से उसे जोड़ने की बात भी की गई है | किसी भी शिक्षण व्यवस्था में शिक्षक ही उसका मेरुदण्ड होता है | अतः यह आवश्यक है कि भारतीय समाज में भगवान से भी पहले स्थान पाने वाले गुरु अपने उत्तरदायित्व को समझें एवं उनका निर्वहन करें |

पिछले कुछ दशक में शिक्षा की दशा एवं दिशा निर्धारित करने में आर्थिक कारक प्रभावी दिखे हैं जिससे सामाजिक स्तर पर विषमता बढ़ी है | अच्छी आर्थिक स्थिति होना बड़े संस्थानों में प्रवेश का अपरिहार्य अंग बन गया है जिससे उच्च शिक्षा का मूल उद्देश्य बाधित होता दिखता है | नई नीति ऐसे शैक्षिक परिवेश पर भी कुठाराघात करती है | भारत को जीवन्त एवं न्यायसंगत ज्ञान समाज में पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से शैक्षिणक ढाँचों में परिवर्तन की बात की गई है जिससे भारत एक बार फिर से विश्व में ज्ञान के क्षितिज को छू सके | समाज एवं राष्ट्र के उत्तरदायित्वों से परिचित कराने एवं छात्र के अन्दर नैतिक मूल्यों को भरने के लिए भी कार्य योजना दी गई है जो आदर्श भारतीय समाज का अनिवार्य अंग है | राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आचरण आधारित शिक्षा को प्रमुख मानते थे | उनका यह भी मानना था कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा को अधिक रुचि एवं सहजता के साथ ग्रहण कर सकता है | दुनिया के कई देश अपनी भाषा, संस्कृति, एवं परम्पराओं को शिक्षा व्यवस्था के अनिवार्य घटक के रूप में स्थापित कर चुके हैं | ऐसे में यह समीचीन है कि सदियों से ज्ञान का केंद्र रहे भारत में एक ऐसी शिक्षा पद्धति लागू हो जिसमें भारतीयता का बोध हो, जो भारतीय दृष्टि से विश्व को परिचित करा सके, जो हमें आत्मग्लानि से निकालकर आत्मविश्वास के पथ पर अग्रसर कर सके | इस शिक्षा नीति के माध्यम से भारतीय शिक्षण मण्डल द्वारा शिक्षा में भारतीयता को स्थापित करने का प्रयास भी सफल होता दिखलाई देता है जो एक बार फिर भारतीय ज्ञान पताका को विश्व पटल पर फहराने के लिए आशान्वित है |

वैश्वीकरण के इस दौर में तकनीकी ने भले ही सूचना का अम्बार लगा दिया है परन्तु ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के मूल उद्देश्य को समझने में युवा वर्ग असफल दिखता है | उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवक का बाजारोन्मुखी व्यावहार न सिर्फ संवेदनहीन समाज के निर्माण को आतुर दिखता है अपितु पूरे विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले भारत में नैतिक पतन को भी देखा जा सकता है | प्रश्न यह नहीं है कि हम कितने आधुनिक हुए हैं ? प्रश्न यह है कि आधुनिकता के चकाचौंध में हम करुणा एवं संवेदनशीलता जैसे गुण से कितना विमुख हुए हैं ? अमेरिका जैसा आधुनिक समाज आज नैतिक शिक्षा के महत्व को समझ रहा है जो प्राचीन काल से हमारी शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है, जो प्रकृति के दर्द को महसूस करता है, जो सामाजिक विषमता का खण्डन करता है, जो सभी जीव जन्तुओं की महत्ता को स्वीकारता है | वास्तव में आज ऐसी शिक्षा व्यवस्था की सख्त ज़रूरत है जो हमें आधुनिक ज्ञान से तो जोड़े ही, साथ ही साथ हमारे अन्दर नैतिक समझ भी विकसित करे | राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय दृष्टि के जो अभिनव आयाम जोड़े गये हैं, आने वाली पीढ़ी को काबिल बनाने के साथ ही एक अच्छा इन्सान बनाने की कसौटी पर खरे उतरते दिखलाई देते हैं | भले ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल स्वरुप में कुछ बदलाव होने शेष हैं परन्तु इस दिशा में कदम बढ़ाकर सरकार ने भारतीय मूल्यों से ओत-प्रोत एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की नींव रखने का प्रयास किया है जो शिक्षण-प्रशिक्षण के वर्तमान परिवेश को बदलने के साथ ही एक नये शैक्षणिक परिदृश्य को सृजित करेगा |

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