देश हित में नहीं है बाजार-आधारित सामाजिक बदलाव
विगत कुछ वर्षों में भारतीय समाज में अनेकों बदलाव देखने को मिले हैं | इन बदलावों के केंद्र में बाजार निर्मित मूल्यों को देखा जा सकता है | बाजार बहुत ही तेजी से एक ऐसे भारतीय समाज का निर्माण कर रहा है जो देश हित में नहीं है | जनसंचार माध्यमों को उपकरण के रूप में उपयोग कर एक ऐसी पूंजीवादी व्यवस्था का मायाजाल तैयार किया जा रहा है जिसका दुष्प्रभाव अनेकों पश्चिमी देश देख चुके हैं | आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखने वाला बाज़ार उन पारिवारिक मूल्यों पर चोट कर रहा है जो वास्तव में हमें एक दुसरे से जोड़े रखने का कार्य करते थे | घर की संरचना में आँगन का महत्व था जो पारिवारिक संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, वहीं साझा रसोईघर की परम्परा परिवार नामक इकाई को मजबूती प्रदान करती थी | आज घर के दोनों महत्वपूर्ण हिस्से सामाजिक बदलाव का शिकार हो चुके हैं या यूँ कहें कि इन बदलावों ने पारिवारिक सदस्यों के बीच दूरी पैदा करने का कार्य किया है | पारिवारिक संवाद के केंद्र-बिन्दु रहे दोनों ही स्थान परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे से जोड़ने का कार्य करते थे जिससे ‘अवसाद’ जैसी समस्या का जन्म भी अकल्पनीय था | वर्तमान ...