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देश हित में नहीं है बाजार-आधारित सामाजिक बदलाव

विगत कुछ वर्षों में भारतीय समाज में अनेकों बदलाव देखने को मिले हैं | इन बदलावों के केंद्र में बाजार निर्मित मूल्यों को देखा जा सकता है | बाजार बहुत ही तेजी से एक ऐसे भारतीय समाज का निर्माण कर रहा है जो देश हित में नहीं है | जनसंचार माध्यमों को उपकरण के रूप में उपयोग कर एक ऐसी पूंजीवादी व्यवस्था का मायाजाल तैयार किया जा रहा है जिसका दुष्प्रभाव अनेकों पश्चिमी देश देख चुके हैं | आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखने वाला बाज़ार उन पारिवारिक मूल्यों पर चोट कर रहा है जो वास्तव में हमें एक दुसरे से जोड़े रखने का कार्य करते थे | घर की संरचना में आँगन का महत्व था जो पारिवारिक संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, वहीं साझा रसोईघर की परम्परा परिवार नामक इकाई को मजबूती प्रदान करती थी | आज घर के दोनों महत्वपूर्ण हिस्से सामाजिक बदलाव का शिकार हो चुके हैं या यूँ कहें कि इन बदलावों ने पारिवारिक सदस्यों के बीच दूरी पैदा करने का कार्य किया है | पारिवारिक संवाद के केंद्र-बिन्दु रहे दोनों ही स्थान परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे से जोड़ने का कार्य करते थे जिससे ‘अवसाद’ जैसी समस्या का जन्म भी अकल्पनीय था | वर्तमान ...

महादेव हमारे

देवों के देव महादेव जी निराले हैं | करते हैं रक्षा जगत के रखवाले हैं || करके गरल-पान बचाया सभी को | गंगा जटाओं में ये त्रिनेत्रों वाले हैं || काशी है प्यारी कैलाश पर बसेरा है | गले में भुजंग तीनों लोकों में डेरा है || जितने गुसैल हैं उतने ही दयालु हैं | कण-कण में व्याप्त ये डमरू वाले हैं || जीवन में माँगों जो मिलता है इनसे | सच्चे हृदय से जो मांगे भक्त इनसे || नंदी सवार हो झट से चले आते हैं | भक्त कभी जब संकट में बुलाते हैं || पार्वती पति हैं ये सभी रुद्रावतार हैं | कर दें कृपा जिसपे उसकी नैया पार है ||

ख्वाहिश

उनकी गलियों में जाना बहुत हुआ,  बिसरी यादों से याराना बहुत हुआ | आँखों ने ढूँढा उन्हें हर बार बहुत,  पलकों से अश्क गिराना बहुत हुआ || न जाने होंगे वो किस हाल में अब,  उनसे बिछड़े हुए जमाना बहुत हुआ | बढ़ जाती हैं धड़कनें उन्हें याद कर,  यादों का किस्सा पुराना बहुत हुआ || मेरी रूह में अब भी वजूद है उनका,  यह सोचकर मुस्कुराना बहुत हुआ | लौट आयें 'दीप' वो मेरी ज़िंदगी में, रूठ कर मुझसे यूँ जाना बहुत हुआ ||

सियासत का एक नया अध्याय लिखता महापौर चुनाव

  हिन्दुस्तान की सियासत का केंद्र राजधानी दिल्ली इन दिनों एमसीडी में महापौर चुनाव को लेकर चर्चा में है | वैसे तो दिल्ली का दंगल केन्द्रीय राजनीति की दिशा तय करता है परन्तु ऐसा पहली बार है जब मेयर के चुनाव ने हलचल पैदा कर रखा है | दिल्ली की जनता एमसीडी चुनाव में वोट देकर अपना काम कर चुकी है, मीडिया चुनावी उलटफेर की कहानी बता-बता कर थक चुकी है, राजनीतिक पण्डित मेयर के बारे में अटकले लगाकर शांत हो चुके हैं, परन्तु लगभग ३ महीने होने के बावजूद दिल्ली एमसीडी का सिंहासन अपने प्रतिनिधि की ओर टकटकी लगाये है | आम आदमी पार्टी एवं भारतीय जनता पार्टी के बीच चल रहा नूराकुश्ती का खेल समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा | राजनीतिक विशेषज्ञों के तमाम आँकलन गलत साबित हो रहे हैं तो वहीं मुख्यमंत्री एवं लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच की तल्खी भी लगातार बढ़ती जा रही है जिसने चुने हुए पार्षदों की धड़कन भी बढ़ा दिया है | सड़क से लेकर सदन तक दोनों प्रमुख पार्टियों ने तरकश के सभी तीर आजमा कर देख लिया है, फिर चाहे गाली-गलौज जैसा अमर्यादित व्यवहार हो अथवा एक दुसरे के ऊपर कुर्सियाँ फेंकने जैसा असभ्य आचरण, धरना प्रदर्शन जैसी...