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तेरी कहानी

  लवों पे है जो मेरे तेरी अधूरी कहानी है | आँखों में मेरे आज समन्दर का पानी है || रेत सी ज़िन्दगी फिसल रही है धीरे-धीरे | लहरों की जद में जैसे कोई निशानी है  || तूफ़ान है दिल में मेरे यादों का कारवां है | किनारों सा साथ बस यही जिन्दगानी है  | | बुलाता है तेरा शहर वहाँ कई बार मुझे  | जिन गलियों में बिखरीं यादें सुहानी है  || आ जाये कभी जब मेरी याद तुझे भी  | ख्वाबों में आकर एक रस्म निभानी है  || मिलूँगा तुझे मैं तेरे हर मोड़ पर ‘दीप’  | यादों की दिल में बस ज्योति जलानी है ||

प्रकृति

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देती है जो जीवन हमको | उसका हम सम्मान करें   || नभ, थल, जल से है कल | आओ इसका गुणगान करें || कृतज्ञ हो सब शीश नवायें | संरक्षण का हम ध्यान करें | देती है जो जीवन...... एक अकेले मानव ने ही | प्रकृति को खूब रूलाया है || इच्छाओं की पूर्ति खातिर | संसाधनों का किया सफाया है || जीव-जन्तु सब तड़प रहे हैं | उनका भी कुछ ध्यान करें || देती है जो जीवन...... सूख रहे हैं कुआँ-बावली | नदियाँ भी सब कराह रही || मैला हुआ समुन्दर अपना | भू-जल का अब थाह नहीं || जल-बिन जीवन असम्भव है | जल-स्रोतों का न अपमान करें || देती है जो जीवन...... दूषित हवा दम घोंट रही है | साँसे उखड़ रही हैं सबकी   || कल-कारखानों के धुएँ से   | सेहत बिगड़ रही है नभ की || स्वच्छ हवा सेहत की कुंजी   | साफ-सुथरा हम आसमान करें || देती है जो जीवन...... मिट्टी में मिलकर प्लास्टिक | ‘दीप’ बंजर उसे बना रही है || नाले-नदी से होकर प्लास्टिक | समुद्र में अम्बार लगा रही है || आओ आज हम त्यागे इसको | प्लास्टिक मुक्त हिन्दुस्तान करें || देती है जो जीवन...... ...

दिल मेरा परेशान क्यूँ है

  दिल मेरा परेशान क्यूँ है | जख्मों से हैरान क्यूँ है || बढ़ रही है धडकनें मेरी | हर वक्त इन्तहां क्यूँ है || उजालों से घबड़ाता है | खुद से ही डर जाता है | दुनिया को समझता नहीं | दिल इतना नादाँ क्यूँ है | बढ़ रही है स्याह रात | अंधेरे से मेरी मुलाकात || कब होगी हसीं सुबह | ये काला आसमां क्यूँ है || ज़िंदगी अधूरी लगती है | अपनों से दूरी लगती है || उम्र खर्च कर दी मैंने | फिर अधूरा मकां क्यूँ है ||