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वो और उनकी यादें

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  उनकी याद आयी तो   मुस्कुरा बैठे | रोका बहुत मगर अश्कों से नहा बैठे || आज उन्होंने भी याद किया होगा मुझे | इस एहसास में अपना  दर्द भूला बैठे || ये मिलना बिछड़ना मुकद्दर का खेल था | जमीं और आसमां का कहाँ कोई मेल था || दिल को समझाया यूँ तो बहुत ही मगर | गली से उनके गुजरे तो होश गंवा बैठे || ख्वाब में आ जाते थे मिलने हमदम मेरे | सामने आये तो मुझसे नज़रें चुरा बैठे || हिज्र-ए-शाम में देखा था दूर जाते उन्हें | मुद्दतों बाद मिले तो अजनबी बता बैठे || दिल ने चाहा रोक ले उन्हें दूर जाने से | वो अपने आरजू-ए-सफ़र पर जा बैठे || जिंदा है अक्स उनका मेरे वजूद में 'दीप' | मेरी परछाइयों से दूर जो घर बना बैठे ||

चलो फिर

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  चलो इस तन्हाई का रहबर ढूंढते हैं | खो आये मुस्कान जहाँ शहर ढूंढते हैं || चले थे जहाँ से एक बार जाते हैं फिर | यादों के कारवां समेटे डगर ढूंढते हैं || अंधेरों के गर्दिश ने भटकाया बहुत | उजालों से भरी एक सहर ढूंढते हैं | | उतार फेंकते हैं अमीरी के लिबास | जेहन में समाया पुराना घर ढूंढते हैं || वो कागज की कश्ती बनाते हैं फिर | वजह-बेवजह हम मुस्कुराते हैं फिर || वो लड़ना झगड़ना फिर मिल जाना | भावनाओं का ऐसा समन्दर ढूंढते हैं || खुशियों की बारिश में नहाते हैं ‘दीप’ | रूठा हुआ अपना मुकद्दर   ढूंढते हैं ||

आओ मतदान करें

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आओ मिल मतदान करें | राष्ट्रहित में योगदान करें || लोकतंत्र के  महापर्व का | दिल से हम सम्मान करें  || पाँच वर्ष में आया अवसर | व्यर्थ न कर देना  इसको || अपने मत की कीमत समझो | दे आना तुम मर्जी जिसको || एक बार जो तुम चूक गये | मत दिया नहीं घर रूक गये || कोई अपात्र पा गया जो कुर्सी | तुम अपनी नज़रों में झुक गये || राष्ट्र निर्माण की बेला है यह | समझो इसकी महत्ता भाई || संविधान ने दिया है शक्ति | करती यह सत्ता की तुरपाई || उठो घरों से निकलो तुम | अपना मत न व्यर्थ करो || एक वोट की ताकत समझो | राष्ट्र को तुम समर्थ करो ||