वो और उनकी यादें

उनकी याद आयी तो मुस्कुरा बैठे | रोका बहुत मगर अश्कों से नहा बैठे || आज उन्होंने भी याद किया होगा मुझे | इस एहसास में अपना दर्द भूला बैठे || ये मिलना बिछड़ना मुकद्दर का खेल था | जमीं और आसमां का कहाँ कोई मेल था || दिल को समझाया यूँ तो बहुत ही मगर | गली से उनके गुजरे तो होश गंवा बैठे || ख्वाब में आ जाते थे मिलने हमदम मेरे | सामने आये तो मुझसे नज़रें चुरा बैठे || हिज्र-ए-शाम में देखा था दूर जाते उन्हें | मुद्दतों बाद मिले तो अजनबी बता बैठे || दिल ने चाहा रोक ले उन्हें दूर जाने से | वो अपने आरजू-ए-सफ़र पर जा बैठे || जिंदा है अक्स उनका मेरे वजूद में 'दीप' | मेरी परछाइयों से दूर जो घर बना बैठे ||