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पृथ्वी के प्रति संवेदनशील आचरण जरुरी

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  सृष्टि निर्माण के लिए आवश्यक पंच तत्वों में से एक क्षिति अर्थात पृथ्वी हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है, यह पर्यावरण का न सिर्फ अनिवार्य अंग है अपितु जीवन-चक्र को संचालित करने में भी महती भूमिका का निर्वहन करती है | मनुष्य के साथ ही लाखों जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिए यह जननीतुल्य अथवा जननी है | आज हमारी उपभोक्तावादी सोच के कारण निरंतर ही धरा का क्षरण हो रहा है जिसके कारण अनेक समस्याएँ जन्म ले रही हैं | एक तरफ तो हम पृथ्वी के श्रृंगार रुपी जंगलों को काटते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक एवं घरेलू कचरों से इसको निरंतर पाटते जा रहे हैं | पृथ्वी के गर्भ में मौजूद प्राकृतिक संसाधन हों या पहाड़ों के रूप में अनगिनत श्रृंखलाएं, ग्लेशियर, समुद्र एवं झीलों के रूप में जल के स्रोत हों या फिर     नदियों के रूप में जल की अविरल धाराएं, सभी को मानव की उपभोक्तावादी सोच ने प्रभावित किया है जिससे पृथ्वी पर जैव विविधता का तेजी से ह्रास होने के साथ ही प्राकृतिक असंतुलन का खतरा गहराता जा रहा है जो न ही मानव हित में है और न ही पृथ्वी पर अस्तित्व रखने वाले जीव-जंत...

ज़िन्दगी के फ़लसफ़ें

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  रेत की बुनियाद पर घर बनाते नहीं | ख़ुश्क जमीं पे शज़र हम लगाते नहीं || ख्वाब देखना कोई बुरी बात नहीं है   | ख्वाबों के संग ज़िन्दगी बिताते नहीं   || नफरतें मिटा देती हैं मुस्कान हमारी   | मुस्कुराहटों को हम तो भूलाते नहीं   || सर्द रात भी कट जायेगी धीरे-धीरे | किसी का घर तो हम जलाते नहीं || दफ्न होंगे सीने में बहुत राज हमारे | हर शख्स को राज अपने बताते नहीं || खामोशियाँ भी कह जाती हैं बात कई | दर्द दिल के लवों पे हम लाते नहीं || तूफ़ान के संग दीप जला लेंगे हम | हवा के रूख से हम तो घबड़ाते नहीं ||