रूबरू
खुद से खुद को जब रूबरू कराया है,
चेहरे के पीछे अक्स नज़र आया है |
तन्हा था सफ़र हजारों के संग मेरा,
आज तन्हाई में कारवां नज़र आया है ||
खुद की धड़कनों से अनजान था दिल,
पल दो पल का ही मेहमान था दिल |
ढूढ़ता रहा खुद को कस्तूरी की तरह,
अधूरी इच्छाओं का आसमान था दिल ||
नज़रों ने देखे थे जो ख़्वाब कभी,
आज हकीकत में नज़र आया है |
हुई है पहचान आज मुझसे मेरी,
वर्षों बाद मैंने खुद को पाया है ||
Wah
जवाब देंहटाएंWah
जवाब देंहटाएंWah
जवाब देंहटाएंवाह वाह.....
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