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ज़ज्बात

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आज फ़िर एक खत जलाया है हमने | आज फ़िर खुद को रुलाया है हमने || उनकी यादों के मोती रखे थे जो लिखे |  अश्कों संग अक्षर वो  बहाया है हमने || दामन में उजाले की खायी थी कसम | आज अंधेरे को गले लगाया है हमने || जिन यादों से लवों पर थी मेरे हँसी | आज यादों पे पहरा बिठाया है हमने || ज़ख़्म जो बन गये थे बर्फ़ रफ्ता-रफ्ता | कुरेदकर उन्हें फिर पिघलाया है हमने || मुलाकातों के समंदर में मिली थी कभी | उनकी यादें बमुश्किल भुलाया है हमने || वक्त ने बना दिया तेज़ाब जिस रिश्ते को | उस रिश्ते को अब तक निभाया है हमने ||

अपना मुकद्दर

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दम तोड़ देती हैं, कई नदियाँ सफ़र में | हर नदी को नसीब, समुंदर नहीं होता || बनाते हैं मजदूर जो, दूसरों के महल | उन दिहाड़ियों का खुद, घर नहीं होता || दर्द को लगाते हैं, हँसकर गले कुछ | हर दर्द जमाने का, ज़हर नहीं होता || देखा है खुश्क शज़र, दरिया के पास | हर दरख़्त हरा हो, मुकद्दर नहीं होता || महरूम रह जाते हैं, प्यार की दो बूँद से | हर शख्स को,अमृत मयस्सर नहीं होता || गाँव से देखा है, रोज शहर जाते कई | हर बंजारे का अपना, शहर नहीं होता || लौट आते हैं थक हार, जमाने में कुछ | ख्वाबों सा हसीं, हर सफ़र नहीं होता || उग जाते हैं रेगिस्तान में, प्यार के बीज | हर रिश्ता हमेशा तो, बंजर नहीं होता || जो मिला है 'दीप', उसे नियामत समझो| नींद के लिए जरूरी, बिस्तर नहीं होता ||

राह ए ज़िंदगी

ज़िंदगी लगी बेहद हसीं जब मुस्कुराकर देखा हमने | उनके ख्वाब  पलकों पे जब सजाकर देखा हमने || तकलीफ उनके दिल की समझ सका था न अब तलक | उदासी उनकी समझ में आई जब हँसाकर देखा हमने || कुछ दर्द पराये आज लगने लगे हैं मुझको पहचाने से | अश्क उनके मेरी पलकों से जब गिराकर देखा हमने || हालात के मारे कबसे भटकते रहे थे हम दर- बदर | समझ में आई ये ज़िंदगी जब उन्हें गंवाकर देखा हमने || कसूर किसको दें और किससे आज हम फरियाद करें | पाने की हसरत है समझा जो सब लुटाकर देखा हमने ||