ज़ज्बात
आज फ़िर एक खत जलाया है हमने |
आज फ़िर खुद को रुलाया है हमने ||
उनकी यादों के मोती रखे थे जो लिखे |
अश्कों संग अक्षर वो बहाया है हमने ||
दामन में उजाले की खायी थी कसम |
आज अंधेरे को गले लगाया है हमने ||
जिन यादों से लवों पर थी मेरे हँसी |
आज यादों पे पहरा बिठाया है हमने ||
ज़ख़्म जो बन गये थे बर्फ़ रफ्ता-रफ्ता |
कुरेदकर उन्हें फिर पिघलाया है हमने ||
मुलाकातों के समंदर में मिली थी कभी |
उनकी यादें बमुश्किल भुलाया है हमने ||
वक्त ने बना दिया तेज़ाब जिस रिश्ते को |
उस रिश्ते को अब तक निभाया है हमने ||
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