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नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन-चक्र को प्रभावित करता प्रदूषण

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पर्यावरण हमारे जीवन-चक्र के सुचारू रूप से संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है परन्तु जब वातावरण में दूषित पदार्थ मिल जाते हैं तो प्रदूषण नामक एक ऐसी समस्या का जन्म होता है जिससे समस्त जीवन-चक्र पर नकारात्मक असर पड़ता है | मानव की आधुनिकतावादी सोच ने पर्यावरण को सर्वाधिक रूप से प्रभावित किया है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भले ही आर्थिक उन्नति को गति प्रदान कर रहा है परन्तु यह हमारे पर्यावरण को भी क्षति पहुंचा रहा है जिसकी भरपाई करना अत्यंत ही मुश्किल है | टिहरी में जबसे गंगा के प्रवाह को बांधा गया है, यह नदी अपने मूल स्वरुप को प्राप्त नहीं कर सकी है जिससे गंगा की गोद में पलने वाले जीव-जंतु हों या फिर गंगा की जलधारा से अपनी प्यास बुझाने वाले लोग, निरंतर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं | औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाला कचरा हो या फिर घरेलू अपशिष्ट मिला हुआ शहरी नालों का गंदा पानी, गंगा जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं जिससे हरिद्वार से आगे बढ़ते ही गंगा जल में हानिकारक बैक्टीरिया जीवनदायिनी गंगा को प्रदूषित कर रहा है | सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से गंगा ...

सशक्त राष्ट्र का आधार है नागरिकों में कर्तव्य बोध

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  किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र के नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है | राष्ट्र नामक संस्था को संचालित करने के लिए नागरिकों में कर्तव्य बोध का भाव अति आवश्यक है क्योंकि यही वह कारक है जो नागरिकों को राष्ट्र के विकास प्रक्रिया से जोड़ता है | नागरिकों में कर्तव्य बोध का अभाव एक उदासीन समाज का निर्माण करता है जिसमें मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जाता है एवं एक राष्ट्र की मान्यता खंडित होती है | सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने आस-पास की अन्य सामाजिक इकाईयों के प्रति संवेदनशील हो, एवं यह तभी संभव है जबकि उसे अपने कर्तव्य का बोध होगा | प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में सेवा-बोध, कर्तव्य-बोध, एवं राष्ट्र-बोध के भाव को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है जिससे इस समाज में रहने वाला प्रत्येक मनुष्य न सिर्फ मानव समाज के प्रति संवेदनशील दिखलाई देता है अपितु वह अन्य जीव-जन्तुओं एवं पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील होता है | मनुष्य के अन्दर संवेदनशीलता का गुण ही नागरिक कर्तव्य का आधार है जिसके बिना वह न तो किसी अन्य का दुःख-दर्द समझ सकता है और न ही ए...

राष्ट्र जागरण एवं नव-निर्माण की आधार है शिक्षा

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  किसी भी समाज की दशा एवं दिशा, वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है | यह न सिर्फ वर्तमान समाज के स्वरुप का निर्धारण करती है अपितु समाज अथवा राष्ट्र के भविष्य को भी रेखांकित करने का कार्य करती है | प्राचीन भारत की समृद्धि में शिक्षा के महत्त्व के अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनमें गुरुकुल शिक्षा पद्धति के द्वारा प्रदत्त शिक्षा एवं जीवनोपयोगी कौशल की महत्ता देखने को मिलती है | प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में समग्र व्यक्तित्व के विकास पर बल दिया जाता था जिससे व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ ही उसके कौशल में भी बृद्धि हो सके, एवं वह जीवन पथ पर आने वाली अनेकानेक चुनौतियों का सामना कर सके | गुरुकुलों में शिक्षा के साथ ही ज्ञान रुपी आचरण की शिक्षा भी दी जाती थी जिनमें नैतिक मूल्यों का समावेश होता था | यही कारण था कि गुरुकुल भारतीय शिक्षा व्यवस्था के ऐसे केंद्र के रूप में स्थापित थे जिन्हें व्यक्तित्व विकास का केंद्र माना जाता था | वास्तव में ज्ञानार्जन की प्रक्रिया सतत चलती रहती है, परन्तु यह प्रक्रिया बचपन में दी गयी शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के अन्दर विकसित दृष्टिकोण पर निर्भर करती है ...