सशक्त राष्ट्र का आधार है नागरिकों में कर्तव्य बोध
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र के नागरिकों का महत्वपूर्ण
योगदान होता है | राष्ट्र नामक संस्था को संचालित करने के लिए नागरिकों में कर्तव्य
बोध का भाव अति आवश्यक है क्योंकि यही वह कारक है जो नागरिकों को राष्ट्र के विकास
प्रक्रिया से जोड़ता है | नागरिकों में कर्तव्य बोध का अभाव एक उदासीन समाज का निर्माण
करता है जिसमें मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जाता है एवं एक राष्ट्र की मान्यता खंडित
होती है | सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने
आस-पास की अन्य सामाजिक इकाईयों के प्रति संवेदनशील हो, एवं यह तभी संभव है जबकि उसे
अपने कर्तव्य का बोध होगा | प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में सेवा-बोध,
कर्तव्य-बोध, एवं राष्ट्र-बोध के भाव को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है जिससे इस समाज
में रहने वाला प्रत्येक मनुष्य न सिर्फ मानव समाज के प्रति संवेदनशील दिखलाई देता है
अपितु वह अन्य जीव-जन्तुओं एवं पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील होता है | मनुष्य के
अन्दर संवेदनशीलता का गुण ही नागरिक कर्तव्य का आधार है जिसके बिना वह न तो किसी अन्य
का दुःख-दर्द समझ सकता है और न ही एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन ही
कर सकता है | भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो नागरिक कर्तव्यों
का बोध कराता है | राष्ट्र की संप्रभुता हो, पर्यावरण की रक्षा हो या फिर राष्ट्रबोध
के भाव को जागृतकर राष्ट्र के विकास को दिशा देने का कार्य, मौलिक कर्तव्य न सिर्फ
अधिकारों की बात करते हैं अपितु कर्तव्यबोध के भाव को भी राष्ट्रहित में जागृत करते
हैं जिससे सशक्त एवं समर्थ राष्ट्र की परिकल्पना साकार दिखती है | २०४७ तक भारत ने
विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम बढ़ाया है जिसे नागरिक सहभागिता के
बिना प्राप्त करना असंभव है | ऐसे में यह समीचीन प्रतीत होता है कि नागरिक अपनी जड़ों
से जुड़ें, न कि अपनी जड़ों से कटते जायें |
वर्तमान समाज में जिन आधुनिक मूल्यों का समावेश हुआ है उसने
मनुष्य के अन्दर से संवेदनशीलता रुपी आदर्श गुण को निरंतर कम किया है जिससे आज परिवार
नामक संस्था भी प्रभावित हो रही है | खंडित हो रहे संयुक्त परिवार की अवधारणा आज भारतीय
समाज के स्वरुप को तेजी से बदल रही है जिसमें बुजुर्गों का अप्रासंगिक होना हमारे सामाजिक
क्षरण को इंगित करता है | भले ही एकल परिवार आज की मजबूरी बन चुका है परन्तु एकल परिवार
जब परिवार के बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशील हो जाता है तो यह कई प्रकार की नई चुनौतियों
को जन्म देता है | महानगरों में तेजी से पाँव पसार रहे बृद्धाश्रम इस बात की ओर संकेत
करते हैं कि हम अपने परिवार के प्रति भी असंवेदनशील होते जा रहे हैं | कभी-कभी तो किसी
फ्लैट में एकाकी जीवन जी रहे मृत पड़े बृद्धजन के प्रति पड़ोस में रहने वाले लोगों की
असंवेदनशीलता हमारे मानवीय मूल्यों को तार-तार कर जाती है जब ऐसा समाचार मिलता है कि
उस व्यक्ति की मृत्यु कुछ दिन पहले ही हो गयी थी | रोड दुर्घटना का शिकार हुए किसी
व्यक्ति की मदद न करके वहाँ से आगे बढ़ जाने वाले व्यक्ति निश्चित रूप से एक संवेदनहीन
समाज का ही निर्माण करेंगे जबकि सरकार की ओर से अनेक जनहित विज्ञापन दिये जाते हैं
कि ऐसी घटना होने पर तुरंत पुलिस को सूचना दें अथवा घायल व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल
तक पहुँचाने में मदद करें | हमारे देश में प्रति वर्ष सड़क दुर्घटना में हजारों लोग
मारे जाते हैं एवं इनमें अधिसंख्य ऐसे होते हैं जिन्हें त्वरित उपचार न मिलने के कारण
अपनी जान गंवानी पड़ती है | ऐसे में एक जिम्मेदार
नागरिक के रूप में किया गया हमारा एक छोटा सा प्रयास किसी को जीवनदान दिला सकता है
|
हमारी असंवेदनशीलता के कारण सर्वाधिक नुकसान पर्यावरण को हुआ
है | एक नागरिक के रूप में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि पर्यावरण को स्वच्छ एवं स्वस्थ
रखने में हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें, एवं पर्यावरण को क्षति न पहुंचाकर उसके
संरक्षण के लिए किये जा रहे सरकारी अथवा गैर-सरकारी प्रयासों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित
करें | हमारा एक छोटा सा प्रयास पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संजीवनी का कार्य कर
सकता है | भारतीय नदियाँ जो प्रदूषण के दंश से कराह रही हैं उन्हें प्रदूषण-मुक्त करने
की दिशा में नागरिक सहभागिता महत्वपूर्ण हो सकती है जो नागरिक कर्तव्य बोध पर ही निर्भर
करती है | नागरिकों द्वारा इस दिशा में किया जाने वाला प्रयास सरकारी प्रयासों को सार्थक
परिणाम दिला सकता है | जल-संरक्षण की दिशा में भी सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए
प्रत्येक नागरिक में कर्तव्य बोध का संचार आवश्यक है जिससे अमृत तुल्य जल का दुरूपयोग
रोकने के साथ ही भविष्य के जल संकट की चुनौती को समाप्त किया जा सके | सार्वजनिक स्थानों
पर लगे नल से बर्बाद हो रहे जल को रोकने का छोटा प्रयास हो अथवा टंकी भर जाने के बाद
गिरकर बर्बाद हो रहे जल को रोकने का प्रयास, हमें सकारात्मक परिणाम दिला सकता है |
स्वदेशी का बोध हमें आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ा सकता है जिससे विभिन्न सामाजिक
इकाईयों का सशक्त करने में मदद मिलेगी | विगत कुछ वर्षों में सार्वजनिक संपत्तियों
को नुकसान पहुँचाने का चलन भी बढ़ा है जो नागरिक कर्तव्यों पर प्रश्नचिंह खड़े करता है,
साथ ही ऐसी परम्परा राष्ट्र को कमजोर कर सकती है | किसी भी सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान
पहुँचाकर हम राष्ट्र को न सिर्फ आर्थिक चोट पहुंचाते है अपितु किसी मूलभूत आवश्यकता
की राह में भी संकट उत्पन्न करते हैं | शाहीन बाग का धरना हो या रेलवे ट्रैक को क्षति
पहुँचाने के प्रयास, नागरिक के रूप में कर्तव्यहीनता के बोध से उपजा वह संकट है जो
उसी डाल को काटने का प्रयास है जिसने उसको आधार प्रदान किया हुआ है | सामाजिक एकता
एवं राष्ट्रीय एकता की जड़ों को नागरिक कर्तव्य रुपी भाव जागृत करके ही पोषित एवं पल्लवित
किया जा सकता है जिसके लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा पाठ्यक्रमों में नैतिक मूल्यों को
समाहित करने के साथ ही बचपन से ही बच्चे के अन्दर नागरिक कर्तव्य का भाव विकसित करने
के सार्थक प्रयास किया जाये | शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीय शिक्षण मंडल
नामक संगठन ने विकसित भारत केन्द्रित शोध से बोध नामक एक शोध प्रतियोगिता रखा जिसका
उद्देश्य युवा पीढ़ी के अन्दर भारतबोध का संचार करना था | निश्चित तौर पर ऐसे प्रयास
राष्ट्र को सकारात्मक दिशा प्रदान करेंगे | आज हमें यह समझना होगा कि राष्ट्र की एकता
एवं अखंडता को सुदृढ़ करने के लिए प्रत्येक नागरिक के अन्दर कर्तव्यबोध, सेवाबोध,
एवं राष्ट्रबोध का भाव जागृत हो, इससे भारत की राष्ट्र के रूप में सशक्त करने के साथ
ही विकसित भारत का सपना भी साकार हो सकेगा |
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