राष्ट्र जागरण एवं नव-निर्माण की आधार है शिक्षा
किसी भी समाज की दशा एवं दिशा, वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है |
यह न सिर्फ वर्तमान समाज के स्वरुप का निर्धारण करती है अपितु समाज अथवा राष्ट्र के
भविष्य को भी रेखांकित करने का कार्य करती है | प्राचीन भारत की समृद्धि में शिक्षा
के महत्त्व के अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनमें गुरुकुल शिक्षा पद्धति के द्वारा प्रदत्त
शिक्षा एवं जीवनोपयोगी कौशल की महत्ता देखने को मिलती है | प्राचीन शिक्षा व्यवस्था
में समग्र व्यक्तित्व के विकास पर बल दिया जाता था जिससे व्यक्ति के बौद्धिक विकास
के साथ ही उसके कौशल में भी बृद्धि हो सके, एवं वह जीवन पथ पर आने वाली अनेकानेक चुनौतियों
का सामना कर सके | गुरुकुलों में शिक्षा के साथ ही ज्ञान रुपी आचरण की शिक्षा भी दी
जाती थी जिनमें नैतिक मूल्यों का समावेश होता था | यही कारण था कि गुरुकुल भारतीय शिक्षा
व्यवस्था के ऐसे केंद्र के रूप में स्थापित थे जिन्हें व्यक्तित्व विकास का केंद्र
माना जाता था | वास्तव में ज्ञानार्जन की प्रक्रिया सतत चलती रहती है, परन्तु यह प्रक्रिया
बचपन में दी गयी शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के अन्दर विकसित दृष्टिकोण पर निर्भर करती
है | यदि प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा के दौरान व्यक्ति में सही दृष्टिकोण विकसित नहीं
हो सके तो ऐसी शिक्षा का उद्देश्य न तो समाज हित में हो सकता है और न ही राष्ट्र हित
में ही हो सकता है | मैकाले शिक्षा पद्धति ने हमारा बौद्धिक विकास भले ही किया हो परन्तु
इसने हमसे वह दृष्टि छीनने का प्रयास भी किया जिससे समग्र व्यक्तित्व विकास जैसा महत्वपूर्ण
कार्य होता था | मूल्य-रहित शिक्षा मनुष्य
का ज्ञान तो बढ़ा सकती है परन्तु यह ज्ञान, सृजनात्मक क्षमता नहीं विकसित कर सकता जिससे
समाज में कई प्रकार की विरक्तियाँ जन्म ले सकती हैं जो न तो समाज हित में है और न ही
राष्ट्र हित में ही है |
आज आत्म-निर्भर भारत के रथ पर सवार होकर हम विकसित भारत के लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे
हैं परन्तु यह लक्ष्य अच्छी एवं आवश्यक शिक्षा के बिना प्राप्त करना सम्भव नहीं है
| हमारे आध्यात्मिक मूल्य हों अथवा आनुभविक मूल्य, बिना शिक्षा के हम न तो इन मूल्यों
को आत्मसात कर सकते हैं और न ही इनके उद्देश्य को ही समझ सकते हैं | विकसित भारत के
सपने को साकार करने के लिए शिक्षा वह मूल तत्व है जो हमारे अन्दर नैतिक एवं मानवीय
मूल्यों का बीजारोपण करने के साथ ही उस तकनीकी कौशल को प्रदान कर सके जिससे मानवीय
चेतना का विकास भी हो सके एवं वैश्विक मंच पर उपलब्ध अवसर को भी अपने पक्ष में किया
जा सके | निश्चित रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० में शिक्षा को व्यक्तित्व
विकास के अनिवार्य कारक के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो एक तरफ हमारे अंदर मानवीय
मूल्यों का संचार करती है तो वहीं दूसरी तरफ अपेक्षित तकनीकी कौशल पर भी बल देती है
| भारत को जीवंत ज्ञान समाज के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से इसमें भारतीय ज्ञान
परम्परा एवं आधुनिक तकनीकी ज्ञान दोनों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है जिससे शिक्षा
का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण हो सके | भारतीय सन्दर्भ में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान
एवं कौशल का विकास करना नहीं है अपितु समग्र व्यक्तित्व विकास का वह माध्यम है जिसमें
चरित्र निर्माण है, मानवीय मूल्य है, सामाजिक उत्तरदायित्व है, राष्ट्र बोध है,
साथ ही सकारात्मक दृष्टि का विकास भी है |
कोई भी शिक्षा व्यवस्था अपने आदर्श लक्ष्य को तब तक नहीं प्राप्त कर सकती है जब
तक कि वह विद्यार्थियों को बोझ लगे या फिर विद्यार्थी एवं सरकार उसे साक्षर बनने
का साधन माने | एक आदर्श शिक्षा व्यवस्था वह है जिसमें विद्यार्थी के अन्दर मौलिक चिंतन
का विकास हो, मानवीय मूल्यों का बीजारोपण हो, तकनीकी दक्षता एवं कौशल प्राप्त करने
का अवसर हो, एवं शोध आधारित ज्ञानार्जन प्रक्रिया को महत्त्व दिया जाये | निश्चित रूप
से वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा इस दिशा में एक सार्थक प्रयास के रूप में दिखलाई देती
है | सरकार ने वर्तमान शिक्षा नीति में कई बातों का ध्यान रखा है जिसमें मातृभाषा में
प्राथमिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी एवं कौशलयुक्त शिक्षा प्रदान
करने के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का सामावेश जैसे कई महत्वपूर्ण कदम सम्मिलित हैं
जिससे भविष्य के भारत को समृद्ध एवं सशक्त करने के साथ ही एक ऐसी सामाजिक इकाई विकसित
की जा सके जिसमें भारतीय मूल्यबोध परिलक्षित होता हो | अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार
अधिनियम हो, राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो या समग्र शिक्षा अभियान हो; सभी साक्षर एवं शिक्षित
समाज को बुनियादी दृष्टि प्रदान करने की दिशा में सार्थक कदम हैं |
वर्तमान समय में हम राष्ट्र जागरण एवं नव-निर्माण के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे
हैं जिसमें शिक्षा की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है | एक तरफ तो हमें वैश्विक
मंच पर उपलब्ध अवसर के अनुरूप मानव संसाधन का विकास करना है तो वहीं दूसरी तरफ समाज
को मशीनीकरण के दंश से भी बचाना है | भारत को विश्व गुरु के रूप में पुनःस्थापित
करने के लिए एक ऐसे शिक्षित समाज का निर्माण आवश्यक है जिसमें मानवीय चेतना हो,
पर्यावरणीय संवेदनशीलता हो, एवं भारतीय मूल्यों के प्रति सुदृढ़ता भी हो |
राष्ट्रीय पुनरुत्थान का लक्ष्य तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक कि प्राथमिक
से लेकर उच्च शिक्षा तक सम्पूर्ण शिक्षा को भारतीय मूल्यों पर आधारित, भारतीय संस्कृति
की जड़ों से पोषित एवं भारत केन्द्रित नहीं बनाया जाता | विगत कुछ वर्षों में कई ऐसे
प्रयास हुए हैं जो भारतीय शिक्षा पद्धति को भारतीय समाज के अनुरूप बनाने की दिशा में
सार्थक कदम कहे जा सकते हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सार्वजनिक मंच से यह
कह चुके हैं कि यह राष्ट्र जागरण एवं नव-निर्माण की बेला है, भारत के पास वैश्विक ज्ञान
समाज की दृष्टि देने की क्षमता एवं अवसर दोनों विद्यमान है और इसके लिए हमें मानव संसाधन
रुपी संपदा को इस प्रकार से तैयार करना है कि वह उपस्थित अवसर से स्वयं, समाज, एवं
राष्ट्र को लाभान्वित कर सके | स्वतंत्रता के बाद से शैक्षणिक संस्थानों की संख्या
निरंतर बढ़ती रही है परन्तु विगत कुछ वर्षों में शैक्षणिक संस्थानों में जिस प्रकार
से नैतिक मूल्यों एवं पर्यावरणीय संवेदनशीलता का बीजारोपण करने वाले पाठ्यक्रमों पर
बल दिया गया है वह भविष्य के भारत की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करती है जो विकसित होने
के साथ ही भारतीय मूल्यों से ओतप्रोत प्रतीत होता है | निश्चित रूप से यह शिक्षा ही
है जो मनुष्य को सृजन का गुण सिखाती है, और यह गुण जब मानवीय मूल्यों को अंगीकार करके
स्वस्थ एवं आदर्श समाज का निर्माण करता है तो राष्ट्र समृद्ध एवं सशक्त बनता है |
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