जीवन-चक्र को प्रभावित करता प्रदूषण
पर्यावरण हमारे जीवन-चक्र के सुचारू रूप से संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है परन्तु जब वातावरण में दूषित पदार्थ मिल जाते हैं तो प्रदूषण नामक एक ऐसी समस्या का जन्म होता है जिससे समस्त जीवन-चक्र पर नकारात्मक असर पड़ता है | मानव की आधुनिकतावादी सोच ने पर्यावरण को सर्वाधिक रूप से प्रभावित किया है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भले ही आर्थिक उन्नति को गति प्रदान कर रहा है परन्तु यह हमारे पर्यावरण को भी क्षति पहुंचा रहा है जिसकी भरपाई करना अत्यंत ही मुश्किल है | टिहरी में जबसे गंगा के प्रवाह को बांधा गया है, यह नदी अपने मूल स्वरुप को प्राप्त नहीं कर सकी है जिससे गंगा की गोद में पलने वाले जीव-जंतु हों या फिर गंगा की जलधारा से अपनी प्यास बुझाने वाले लोग, निरंतर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं | औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाला कचरा हो या फिर घरेलू अपशिष्ट मिला हुआ शहरी नालों का गंदा पानी, गंगा जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं जिससे हरिद्वार से आगे बढ़ते ही गंगा जल में हानिकारक बैक्टीरिया जीवनदायिनी गंगा को प्रदूषित कर रहा है | सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से गंगा को स्वच्छ बनाने की दिशा में प्रयास तो किया है परन्तु सरकारी मंत्रालय व विभागों का सुस्त कार्य, एवं प्रशासन तथा नागरिक उदासीनता के कारण यह प्रयास सार्थक परिणति से बहुत दूर नजर आता है | यही स्थिति दिल्ली में यमुना की भी है, या यूँ कहें कि यमुना नदी धीरे-धीरे नाले का रूप लेती जा रही है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | लगभग तीन दशक पहले जब ‘यमुना एक्शन प्लान’ अस्तित्व में आया था तो लगा था कि यमुना की स्थिति में सुधार होगा परन्तु वर्तमान स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि पौराणिक महत्त्व वाली इस नदी का अस्तित्व ही आज खतरे में है | तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली सरकार नालों के माध्यम से अपशिष्ट घुले जल-शोधन के लिए आवश्यक संयत्र नहीं लगा सकी है जिससे दूषित पदार्थों को यमुना में मिलने से रोका जा सके | दिल्ली के बजीराबाद से कालिंदीकुंज क्षेत्र तक पहुँचते-पहुँचते यमुना का जल इन प्रदूषित पदार्थों से इस प्रकार मिल जाता है कि यह यमुना का जल है अथवा नाले का, अंतर करना अत्यंत कठिन हो जाता है | एन जी टी एवं अन्य संस्थाएं यमुना की स्थिति को लेकर कई बार प्रश्न खड़े कर चुकी हैं, जबकि पूर्व में दिल्ली हाईकोर्ट भी राज्य सरकार को यमुना की दुर्दशा के लिए फटकार लगा चुका है | यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि नदियों की पूजा करने वाला हमारा देश आज नदियों की दुर्दशा देखने को विवश है | निश्चित रूप से यह विवशता हमने ओढ़ी है क्योंकि हमारी सभ्यता की सहगामी रही नदियों को हमने मात्र भौगोलिक इकाई मान लिया जबकि हमारे पूर्वजों ने इन नदियों को हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का अनिवार्य अंग माना था |
प्लास्टिक जो कि हमारे पर्यावरण को विभिन्न प्रकार से क्षति पहुंचा रहा है, कभी मिट्टी में मिलकर मृदा प्रदूषण को जन्म, तो कभी जल स्रोतों में मिलकर इन इकाईयों के पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक असर डालना, इस हानिकारक तत्व को न तो हम अपने जीवन से दूर कर पा रहे हैं और न ही वातावरण से | सरकार द्वारा जब प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो कुछ समय के लिए इसके उपयोग में कमी तो आती है परन्तु कुछ समय बाद न तो सरकार को इससे होने वाले नुकसान का भान रहता है और न ही आम नागरिकों को कोई सरोकार, अंततः हमारा प्लास्टिक प्रेम एवं हमारी उदासीनता वर्षों तक जल, मिट्टी, एवं हवा में मौजूद रह सकने वाले प्लास्टिक का अम्बार लगा रहा है जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है | नालों एवं नदियों से होकर समुद्र तक पहुँचने वाली प्लास्टिक, आज समुद्र में प्लास्टिक कचरे का ढेर लगा रही है जिससे समुद्र में रहने वाले जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर संकट बढ़ रहा है | ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ़ नेचर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार 1.4 करोड़ टन प्लास्टिक प्रति वर्ष समुद्र में डाल दिया जा रहा है जिससे समुद्र में इस हानिकारक पदार्थ की मात्रा निरंतर ही बढ़ती जा रही है जिससे भविष्य में कई प्रकार के संकट जन्म ले सकते हैं |
विगत कुछ वर्षों में वातावरण में दूषित पदार्थों की मात्रा निरंतर बढ़ी है, एवं अनेक प्रयासों के बाद भी हम स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण के लक्ष्य से बहुत दूर दिखाई देते हैं | पिछले एक महीने से देश की राजधानी दिल्ली के कई हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर है जिससे दिल्लीवासी आँख, हृदय एवं अन्य स्वांसजनित बिमारियों का दंश झेलने को विवश हैं | कुछेक स्थानों पर यह 500 के अत्यंत गम्भीर सूचकांक को पार कर चुका है जो एक भयावह स्थिति को दर्शाता है | पीएम-2.5 एवं पीएम-10 की बढ़ती मात्रा ने हवा को जहरीला बना दिया है जिससे निरंतर कई समस्याएं जन्म ले रही हैं | 28 नवम्बर को जस्टिस एस ओका एवं जस्टिस ए जार्ज मसीह की पीठ ने ग्रेप-4 से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई के दौरान वायु की वर्तमान गुणवत्ता को चिंताजनक माना, साथ ही इस मुद्दे पर सरकार के ढीले रवैये पर टिप्पणी भी किया |
प्रदूषण की रोकथाम के लिए अनेक सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाएं कार्य कर रही हैं परन्तु इसका सकारात्मक परिणाम नहीं प्राप्त हो रहा है | देश की राजधानी दिल्ली जहाँ नीति-निर्माता पर्यावरण से जुड़ी नीतियों का निर्धारण करते हैं, वह स्थान विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है | ऐसे में नीति-निर्माताओं के लिए यह मंथन का समय है, जिससे आने वाले समय में पर्यावरण से जुड़ी नीतियों को अत्यधिक प्रभावी बनाया जा सके | प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है, जिससे दोनों एक ही दिशा में आगे बढ़ सकें | साथ ही विभिन्न राज्यों के बीच बेहतर सामंजस्य से प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है | पर्यावरण से जुड़ी योजनाओं के लिए निधि का आवंटन हो या फिर पर्यावरण से जुड़ी नीतियों का क्रियान्वयन, राज्य सरकारें केंद्र के साथ कदम मिलाकर सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ सकती हैं जिससे पर्यावरण को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखा जा सकता है | साथ ही प्रत्येक नागरिक को पर्यावरण के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की भी आवश्यकता है | यदि हम पर्यावरण के प्रति मात्र उपभोक्तावादी दृष्टि रखेंगे तो यह समस्या और भी विकराल होती जायेगी | हमें आज यह समझना होगा कि प्रदूषण की समस्या, मात्र राज्य एवं केंद्र का विषय नहीं है अपितु यह नागरिक कर्तव्यों से भी गहराई से जुड़ा है | नागरिकों की जागरूकता एवं पर्यावरण के प्रति उनकी संवेदनशीलता सुनिश्चित करके पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है, जिससे जीवन-चक्र एवं पर्यावरण के बीच, प्रदूषण की समस्या समाप्त हो सके |
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