काश! अगर.....
काश ! अगर मेरा भी चिड़ियों सा पर होता , खुले आसमान के बीच कहीं मेरा भी घर होता ।
इन्द्रधनुषी सपनो संग रोशन मेरा सहर होता , काश!...
आसमान से बातें करती स्वछन्द हो विचरण करती, बिना किसी के रोके टोके हवा के संग गुजरती ।
न मुस्कान पे पहरा होता न मर्यादायों का कहर होता , काश !....
माँ भी करती प्यार मुझे पिता भी गले लगाते, भाई सा मेरे जन्मदिन पर खुशियाँ सभी मनाते ।
पढने जाती भाई संग दादी का न डर होता, काश !.....
जन्म लिया जिस कोख से न कहती वो परायी हूँ , कुछ वर्षों की खातिर ही उसकी दुनिया में आई हूँ ।
घोसले से पिजरे में जाने का न डर होता, काश !......
इन्द्रधनुषी सपनो संग रोशन मेरा सहर होता , काश!...
आसमान से बातें करती स्वछन्द हो विचरण करती, बिना किसी के रोके टोके हवा के संग गुजरती ।
न मुस्कान पे पहरा होता न मर्यादायों का कहर होता , काश !....
माँ भी करती प्यार मुझे पिता भी गले लगाते, भाई सा मेरे जन्मदिन पर खुशियाँ सभी मनाते ।
पढने जाती भाई संग दादी का न डर होता, काश !.....
जन्म लिया जिस कोख से न कहती वो परायी हूँ , कुछ वर्षों की खातिर ही उसकी दुनिया में आई हूँ ।
घोसले से पिजरे में जाने का न डर होता, काश !......
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