दम तोड़ती व्हीसल ब्लोवर्स की आवाज़

एक तरफ जहाँ सरकार जनता से यह अपेक्षा कर रही है कि जनता भ्रष्टाचार मिटाने में उसका सहयोग करे वहीँ व्हीसल ब्लोवेर्स की दम तोड़ती आवाज़ सरकार की अपेक्षाओं पर पानी फेरती नजर आती हैंसत्येन्द्र दुबे , यशवंत सोंवड़े या फिर शैला मसूद की आवाज़ का जिस बेरहमी से गला घोटा गया उससे सरकार की कथनी और करनी में फर्क आसानी से देखा जा सकता हैअधिकतर मामलों में तो व्हीसल ब्लोवेर्स की आवाज़ को सरकारी मशीनरी की भट्ठी में ही घुन्टते और कराहते हुए देखा गया और जब ये आवाजें हमेशा के लिए खामोश कर दी गयीं तो सरकार का यह बयान की हम व्हीसल ब्लोवेर्स की सुरक्षा के लिए दृढ संकल्पित हैं, मृतक की आत्मा को भी खून के आंसू रोने पर मजबूर कर देती है
भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैकिसी भी लोकतान्त्रिक देश में गोपनीयता अपवाद होना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार रूपी पेड़ की जड़ें गोपनीयता रूपी उर्वरक पाकर और भी मजबूत हो जाती है जिन्हें उखाड़ फेकना आसान नहीं होता हैविगत कई वर्षो से व्हीसल ब्लोवर्स की सुरक्षा सम्बन्धी प्रभावी कानून की आवश्यकता काफी सिद्दत से महसूस की गयीवर्तमान सरकार ने इससे सम्बन्धी कानून की बुनियाद रखकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लिया है। भ्रष्ट तंत्र की बुनियाद आज इतनी मजबूत हो चुकी है कि सरकार को कोई भी ठोस कदम उठाने में पसीने छूटने लगते हैंसरकारी तंत्र को भ्रष्टाचार तंत्र का दीमक जाने कब का खोखला कर चुका हैभ्रष्ट नौकरशाही , भ्रष्ट मंत्रियों और तथाकथित सामाजिक ठेकेदारों ने भ्रष्टाचार कि जड़ें इतनी मजबूत बना दिया है कि आज लोकतंत्र, भ्रष्टतंत्र के आगे काफी असहाय नजर आता हैसरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों में भ्रष्टाचार अज आम बात हैलोगों में भ्रष्टाचार कि बढती प्रवृत्ति सिर्फ लोकतंत्र कि बुनियाद को खोखला कर रही है बल्कि विकास कार्यों को भी अवरुद्ध कर रही हैभ्रष्टतंत्र के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सिर्फ शारीरिक मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है बल्कि कई बार उन्हें इसकी कीमत अपनी जान गवा कर चुकानी पड़ती हैकानून व्यवस्था कि लचरता का फायदा उठाकर भ्रष्टाचारी साफ बच जाता है और लोकतंत्र के मूल्यों को जिन्दा रखने के लिए अपनी जान कि बाज़ी लगाने वाला व्हीसल ब्लोवर कानून का दुश्मन बन जाता हैउन्हें झूठे मामलों में फंसाकर या तो उनकी आवाज़ दबाने कि कोशिश कि जाती है या फिर उनका लावारिश शव सड़क अथवा रेलवे ट्रैक पर पाया जाता है
सन २००३ में बिहार में कार्यरत सत्येन्द्र दुबे कि हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गयी क्योंकि उन्होंने सड़क निर्माण कार्य में हो रहे घोटाले एवं इसमें सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों के मिलीभगत को उजागर करने वाला एक पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा थासत्येन्द्र दुबे कि आवाज को भ्रस्ताचारियों ने हमेशा के लिए खामोश कर दियामहाराष्ट्र में मालेगांव के सहायक जिलाधिकारी यशवंत सोनाव्दे को तेल माफिया के खिलाफ आवाज़ उठाना काफी महंगा पड़ा और उन्हें जिन्दा जला दिया गयाअमित जेठवा, शैयला मसूद जैसे कई व्हीसल ब्लोवर भ्रस्त्तंत्र कि काली भट्ठी में झोके जा चुके है और सरकार पुराने जुमले के साथ कायम है कि वह हर तरह से व्हीसल ब्लोवर्स के जान माल कि रक्षा करेगीएक तरफ निरंकुश भ्रष्टाचारी जो किसी भी हद तक जा सकते हैं तो दुसरे तरफ कोरे आश्वाषणों वाली सरकार जो सान्तवना के शब्द के अलावा कुछ नहीं दे सकती , व्हीसल ब्लोवर्स कि सिसकती और कराहती आवाज़ का दम तोडना निश्चित जान पड़ता है

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छपास रोग ( व्यंग्य )

सूरजकुण्ड मेला : नये सन्दर्भों में परम्परा का ताना- बाना

मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक