नशा
अपनों में बेगाना बना देती है नशा , लुटा हुआ खजाना बना देती है नशा । लगती है प्यारी जन्नत से ज्यादा , इस कदर दीवाना बना देती है नशा । पीकर शराब गांजा ईठलाते है हम , सुख व् चैन अपना खो जाते है हम । बोकर कांटे ज़िन्दगी की राह में , खुद की खुशियों को खुद ही लुटाते हैं हम । पैदा करती मुश्किलें राह में अनगिनत , समझते हैं दोस्त जब इसको हम । तोड़ देती परिवार पल में दोस्तों , जिसके लिए सबको भूल जाते हैं हम । खुद की नजरों में खुद को गिरा देती नशा , हँसता परिवार उजाड़ देती है नशा । खुद की नजरों में गिरकर जो कोई अगर , दीप जन्नत भी पाए तो है वो सजा । खांसी दमा व् कैंसर क्या इसके लिए , हर ख़ुशी ही दुश्मन है जिसके लिए । छीन लेती जो खुशियाँ पल में ही सारी , क्या देगी ख़ुशी ज़िन्दगी के लिए । जहां को दुश्मन बना देती नशा , इन्सान का वजूद मिटा देती नशा । संजाकर सेंज पाप के फूलों से यारों , मौत की नींद सुला देती नशा ।