सलाम

हिन्द के जवानों को सलाम लिख रहा हूँ, उनकी वीरता पर कलाम लिख रहा हूँ।
शहादत के जिनकी हर बातें हैं अनोखी, गोली भी खाकर जो चढ़ते गये चोटी ।।
ऐसे वीरों को आज पैगाम लिख रहा हूँ, हिन्द के जवानों को सलाम लिख रहा हूँ।
आज़ादी की खातिर जो मिट गये दीवाने, दुश्मन के लहू से जो लिख गए फ़साने।
मौत भी ना रोक सकी जिनके कदम, तिरंगे में लिपटे हुए घर आये  जो दीवाने।।
उनकी ज़िन्दगी की उनवाँ लिख रहा हूँ, हिन्द के जवानों को सलाम लिख रहा हूँ।
माँ की ममता और बहनों का प्यार, बाबूजी के सब अरमानों का जिनपे था भार। 
बच्चों को सोता जो छोड़ गया था, होता था 'दीप' जो किसी के माथे का श्रृंगार ।।
ख़त मैं उस वीर के नाम लिख रहा हूँ, हिन्द के जवानों को सलाम लिख रहा हूँ। 

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