हम भक्तन के, भक्त हमारे


हमारे देश में भक्तों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं इनमें से कई का अस्तित्व सदियों पुराना है तो कई हाल ही में विकसित हुई हैं कुछ एक प्रजाति के अस्तित्व का पता लगाना बेहद ही कठिन है क्योंकि इस प्रजाति के भक्त केंचुए की तरह छिपे होते हैं और अनुकूल बरसात होते ही अवतरित हो जाते हैं । ऐसे भक्तों को न भगवान से मतलब होता है और न ही धर्म गुरुओं से । प्राचीन काल वाले भक्तों की संख्या लगभग नगण्य हो चुकी है, ऐसे भक्त भगवान के भक्त कहलाते हैं फिलहाल ये हिमालय की गुफाओं में मृतप्राय स्थिति में पाये जा सकते हैं ऐसे भक्तों को या तो भगवान अपने पास बुला चुके हैं या फिर इस प्रजाति का अस्तित्व बनाये रखने के लिए कुछेक को धरती पर रखे हुए हैं । इस श्रेणी के भक्तों के लिए भगवान की भक्ति ही सबकुछ होती है । भगवान अपने भक्तों के हर दुःख दर्द को अपना समझते हैं । इस श्रेणी के भक्त अपने भगवान से निःस्वार्थ प्रेम करते हैं और भगवान भी अपने भक्त का हमेशा ध्यान रखते हैं । हाल ही में नासा ने ऐसे भक्तों की खोज के लिए अपनी एक टीम का ऐलान किया है जो यह पता लगाएगी की प्रतिकूल वातावरण होते हुए भी इस श्रेणी के भक्त भारत में जिन्दा कैसे हैं जबकि अन्य देशों में यह प्रजाति काफी पहले ही विलुप्त हो चुकी है नासा यह भी पता लगाने का प्रयास करेगा कि कहीं भक्तों की यह प्रजाति चौक में कुछ और एवं घर में कुछ और तो नहीं । नासा के इस मिशन पर कुल १०० करोड़ खर्च होने की सम्भावना है ।
दूसरी श्रेणी के भक्त सम्प्रदाय विशेष की भक्ति के लिए जाने जाते हैं ये सभी सावन के अंधे की तरह होते हैं जिन्हें सिर्फ एक ही रंग की पहचान होती है इन्हें सिर्फ अपना धर्म श्रेष्ठ दिखता है और बाकि धर्म इनके लिए कोई मायने नहीं रखते । इस श्रेणी के भक्त हमेशा ही दूसरी श्रेणी के भक्तों को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं । इस श्रेणी के भक्त ठेकेदारी प्रथा के अनुयायी होते हैं जिनका प्रतिनिधित्व पंडित जी और मौलवी जी जैसे उपमा वाले लोग करते हैं । इस श्रेणी के भक्त मन्दिर और मस्जिद के आस- पास बहुतायत पाये जाते हैं । इनका भगवत भक्ति से कोई सरोकार नहीं होता है । ये धर्म के ठेकेदारों के हित में झंडा बुलंद करने का काम करते हैं । अपने ठेकेदार को खुश करने के लिए ये हमेशा तत्पर रहते है । धर्म की चासनी में लपेटकर नफरत के जहर को आसानी से अवाम में फ़ैलाने का कार्य इस श्रेणी के भक्त बहुत ही आसानी से करते दिखलाई दे जाते हैं । इस श्रेणी का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने भक्तों को मानसिक गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं और अपने भक्तों को धार्मिक उन्माद की पराकाष्ठा तक पहुँचाने के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं ।
तीसरी श्रेणी के भक्तों को बाबा भक्त कहा जाता है । ये भक्त धर्म और सम्प्रदाय से खुद को ऊपर मानते हैं । ये आँख मूंद कर बाबा पर न सिर्फ विश्वास करते हैं बल्कि तन मन और धन से बाबा के चरणों में समर्पित होते हैं । इन भक्तों पर बाबा का इतना प्रभाव होता है कि बाबा की एक आवाज पर ये मरने मारने जैसे घृणित कार्यों के लिए भी तैयार हो जाते हैं । इस श्रेणी के भक्त प्रायः समूह में पाये जाते हैं । इस श्रेणी के भक्त की सबसे बड़ी विशेषता होती है इनके द्वारा परिवार एवं रिश्तेदार को अपने समूह में शामिल करने का पुनीत कार्य करना । बाबा भक्तों में सबसे बड़ा भक्त उसी को माना जाता है जो अपने पुरे कुनबे को भक्त बना दे । कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस श्रेणी के भक्तों का समूह फैला हुआ है । बाबा के एक आदेश पर ये भक्त अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं । घर पर सांस ससुर को कराहता हुआ छोडकर जाने वाली बहू सेवा की दरिया बहा रही होती है तो वहीं बूढ़े माँ बाप को छोड़ जाने वाला बेटा बाबा सेवा में सब कुछ भूल जाता है । इस श्रेणी के भक्तों के पास जो कुछ भी होता है सब बाबा का होता है । बाबा अपने भक्तों से कहते हैं कि जो कुछ तेरा है वो मेरा है और जो कुछ मेरा है वो मेरे परिवार का है ।
संयोगवश कल एक ऐसे ही भक्तों के समूह से मुलाकात हुई । दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बहुत ही प्रसिद्ध बाबाजी का प्रवचन था सम्पादक महोदय का आदेश हुआ कि जाकर समाचार कवर कर आओ । उपसम्पादक जी ने बताया कि तुम्हे बाबा और भक्तों की विशेष पहचान है इसीलिए तुम्हे भेजा जा रहा है । साथ ही हिदायत भी मिली की बाबाजी बहुत ही पहुँचे हुए हैं, उनकी पहुँच सत्ता के गलियारे तक भी है इसलिए विशेष ध्यान रखना । वहाँ जाकर पता चला कि बाबा जी सचमुच बहुत पहुँचे हुए थे बाबाजी इतने पहुँचे हुए थे कि उन तक पहुँचने के लिए भक्तों को दस से बीस हजार खर्च करने पड़े थे हजारों की भीड़ बाबाजी के दर्शन के लिए दो दिन पहले से ही रामलीला मैदान में डेरा जमाये हुई थी । खैर ! बाबाजी तय समय पर अपने भक्तों से मुखातिब हुए । बाबाजी ने अपने भक्तों को बताया कि पैसा दुखों का मूल कारण है, आप अपना दुःख मुझे दे दीजिये । भक्तों के पास जो कुछ भी था वो खुले मन से दान कर प्रसाद ग्रहण कर रहे थे और देखते ही देखते करोड़ों का दान लेकर पैसा को मिट्टी बताने वाले बाबाजी अपने साथियों के साथ दुसरे पड़ाव की तरफ बढ़ गये । 
चौथी श्रेणी के भक्त अंधभक्त कहलाते हैं । इन भक्तों का सत्तापक्ष के प्रति झुकाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है । इस श्रेणी के भक्त शुद्ध रूप से दरबारी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए देखे जा सकते हैं । ये अपने राजा की हाँ में हाँ मिलाने के लिए जाने जाते हैं । राजा अगर दिन को रात कहता है तो ये एक स्वर में दिन को रात बताने में लग जाते हैं । इन भक्तों को चालाक भक्त कहा जा सकता है क्योंकि ये भक्त सत्ता की मलाई का खुब लुत्फ़ उठाते हैं । वैसे तो भक्त और भगवान का रिश्ता सबसे पवित्र होता है परन्तु समय सापेक्ष श्रेणीगत भक्त परम्परा में गिरावट स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है ।




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