हंगामा क्यों है बरपा ....
हमारे देश में हंगामा करने वालों की कोई कमी नहीं
है । लोग हर बात पर
हंगामा करने के लिए तैयार रहते हैं । बिजली नहीं मिले तो हंगामा, पानी न मिले तो
हंगामा, सड़क से लेकर संसद तक बस हंगामा ही हंगामा । हमारे माननीय तो पैसे ही हंगामा करने की लेते
हैं ।
जब भी कुछ समझ में
नहीं आता है तो संसद में हंगामा करके संसद को स्थगित करा देते हैं, फिर अगला हंगामा इस बात पर करते हैं कि पिछले
हंगामें की वजह से संसद नहीं चली और यह हंगामा तब तक जारी रहता है जब तक हंगामे के
लिए कोई नया विषय न मिल जाए । हंगामा
भी कई प्रकार का होता है जिसमें सबसे प्रमुख है
राजनीतिक हंगामा । इस हंगामें का मकसद
होता है सिर्फ हंगामा करना । वैसे
तो हर प्रकार के हंगामें के पीछे राजनीतिक हंगामा ही होता है परन्तु राजनीतिक
हंगामें में सभी माननीयों का एक समान फायदा होता है । कुछ देर हो हल्ला करने के बाद अगले दिन तक आराम
करने का मौका मिल जाता है और फिर सभी सदस्य एक दुसरे को मन ही मन धन्यवाद देते हुए
अगले दिन के हंगामें के लिए तैयार रहने का इशारा भी कर देते हैं । संसद में हुए हंगामें का असर सड़क पर पहुँच जाता
है और सड़क से होते हुए पुनः अगले
दिन संसद की चौखट पर माननीयों का इंतज़ार कर रहा होता है ।
माननीयों का भले ही कोई मजहब या रंग नहीं होता
परन्तु हर हंगामें का मजहब और रंग जरुर होता है । माननीयों को तो संविधान का पालन करना होता है तो
ऐसे में ये सिर्फ संसद सदस्य कहलाना ही पसंद करते हैं । अब संसद में बैठकर संविधान के प्रति आस्था तो
दिखानी ही पड़ेगी ।
ये इस बात पर तो
हंगामा नहीं ही कर सकते कि तुम गोरे हो और मैं काला हूँ । अरे भाई ! संसद
में पहुँचने वाले सभी सदस्यों की कमीज दूध से धुलकर सफ़ेद जो होती है । अब माननीय अपनी कमीज का ख्याल तो रखेंगे ही । हर बात में वो हंगामा थोड़े ही कर सकते । अभी कुछ समय पहले ही तो सभी सदस्यों ने सर्व
सम्मति से अपनी सैलरी बढ़ाने वाले बिल को पास करा लिया था । अब इन्हें भी तो इस बात का ध्यान रखना होता है
कि जनता इन्हें हंगामेबाज न कहने लगे । आखिर ये अपने वोटरों का ध्यान तो रखेंगे ही और
आप- हम इन्हें हंगामा करने के लिए उकसाने पर तुले
होते हैं । अब आप क्या चाहते
हैं कि इतने सम्मानित सदस्य इस बात पर हंगामा करें कि जब मध्यमवर्गीय परिवार की
सब्सिडी छिनी जा रही तो इन्हें हर जगह सब्सिडी क्यों दी जा रही या फिर इस बात पर
हंगामा करें कि अपनी पूरी जवानी मेहनत करने वाले बुजुर्ग को पेंशन नहीं तो मात्र
एक दिन के लिए माननीय का तमगा हासिल करने वाले विधायक एवं सांसद को पेंशन क्यों ? आप चाहते हैं कि ये इस बात पर हंगामा करें कि
काम न करने वाले मजदूर को जब पैसे नहीं तो फ़िर इन्हें पैसे क्यों दिये जाते हैं या
फिर ये इस बात पर हंगामा करें कि जब मात्र ५०० रूपये में असीमित काल की सुविधा
उपलब्ध है तो फिर इन्हें पन्द्रह हजार रूपये क्यों दिये जाते हैं ? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप बिल्कुल गलत सोचते
हैं । हर हंगामें का अपना
समीकरण होता है ।
पिछले दिनों को ही लें, पिछले दिनों संसद में हंगामा इसलिए हुआ कि नीरव
मोदी, मेहुल चौकसी जैसे कुछ लोग मात्र कुछ हजार करोड़ लेकर देश से चम्पत हो गये । अब माननीयों से यह तो देखा नहीं गया । अतः इन्होंने जोरदार हंगामा किया । एक दुसरे के ऊपर कीचड़ की पोटली उड़ेली, आरोप- प्रत्यारोप का टी-ट्वंटी खेला और संसद
सत्र के कीमती समय को हंगामें की भेंट चढ़ा
दिया । अब आप ही बताइये कि लगभग १३० करोड़ की भारी- भरकम
जनसंख्या वाले देश से कुछ लोग कम जनसंख्या वाले देश में चले गये तो इसमें हंगामा
बरपाने की क्या जरूरत आन पड़ी । उन्होंने
तो हमारा भला ही किया । अब आप
कहेंगे कि सिर्फ चार-पांच लोगों के देश छोड़कर चले जाने से हमारी जनसंख्या थोड़े ही
कम होगी । ऐसा कहकर तो आप उन पैसे
वाले रसूखदार लोगों को उकसाने का कार्य कर रहे हैं जो अभी तक इस देश में हैं । कुछ लोगों का कहना है कि नीरव मोदी, ललित मोदी,
मेहुल भाई, मुकेश जैन, विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर गये तो गये परन्तु उन्हें
देश का पैसा नहीं ले जाना चाहिए था । ऐसे लोगों की नासमझी पर मुझे तरस आता है । अब सोने की चिड़िया कहलाने वाले और आर्थिक स्तर
पर तेजी से मजबूत होते देश कि छवि विदेश में बिगाड़ने का काम तो वो कर नहीं सकते
इसलिए उन्होंने पहले ही ठान लिया था कि हिन्दुस्तानी पैसों की खनक से दुनिया को वो
जरुर परिचित करायेंगे और उन्होंने देशहित में पैसा ले जाने का निर्णय लिया । बेचारे ! अपने देश को विदेशी सरजमीं पर बेइज्जत
होने से बचाने के लिए कुछ हजार करोड़ लेते गये तो सड़क से लेकर संसद तक लोग हंगामा
करने पर आमादा हो गये । हम
भारतीय कब तक विदेश में सपेरों और भूखे नंगों की पहचान के साथ जायेंगे । यही सोचकर हमारे देश के इन महानुभावों ने पैसे
लेकर जाने का निर्णय लिया ताकि ये किसी भी देश में जाकर उनका मुँह बंद करा सकें जो
इन्हें गरीब समझते हैं । रोज
वैली और शारदा घोटाले में तथाकथित रूप से संलिप्त मुकुल राय साहब को तो देश की
इज्जत कि चिंता ही नहीं वरना वो भी कबके दुसरे देश चले गये होते । हो सकता है अभी कुछ पैसे का और जुगाड़ करना हो । राजनीति में होने के नाते उन्हें शायद बड़ी रकम
की जरूरत हो । अब विक्रम कोठारी
साहब को ही लें, ८०० करोड़ से ज्यादा की रकम डकारने के बाद भी देश नहीं छोड़ रहे, अलग
से यह कह कर हंगामा करा रहे कि भारत एक अच्छा देश है । अगर ऐसा नहीं होता तो लिखते- लिखते भाईसाहब
करोड़पति कैसे बनते ? अरे ! भाई कुछ तो देश के बारे में सोचिये । जाइये विदेशों में देश का नाम कीजिये । अगर कुछ करोड़ रूपये की कमी पड़ रही हो तो और एक-
दो बैंक को चुना लगाइये ।
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