यू टर्न


                                    
कहते हैं जब ज़िन्दगी की गाड़ी गलत दिशा में जाने लगे तो यू टर्न लेना सबसे अच्छा कदम होता है लेकिन बात जब राजनीति की हो तो यू टर्न की बात ही अलग होती है यहाँ यू टर्न लेने का खूब प्रचलन है कुछ माननीय तो यू टर्न लेने में विशेष डिग्री ले चुके हैं जब मन में आया यू टर्न ले लिया यू टर्न से इनकी पहचान जुड़ चुकी है या यूँ कहें कि ये इतनी बार यू टर्न ले चुके हैं कि आप इन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामित भी करा सकते हैं विपक्षी दलों पर कीचड़ उड़ेलना हो या फिर किसी विषय पर ज्ञान बघारना, जैसे ही अपना काम पूरा हुआ यू टर्न ले लिया राजनीतिक गलियारे में यू टर्न लेने वालों को सत्ता की मलाई भी खूब मिलती है यू टर्न लेने वाला व्यक्ति राजनीति में सबसे दूर जाता है जबकि सीधे चलने वाला व्यक्ति रास्ते में ही हिम्मत खो देता है
बेनी प्रसाद जी को यू टर्न लेने वाले माननीयों में सबसे ऊँचा स्थान हासिल है उन्होंने बड़ी मेहनत से यू टर्न लेने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था उन्हें उम्मीद थी कि बुढ़ापे में ही सही उनकी इस प्रतिभा का सम्मान होगा परन्तु केजरीवाल साहब से यह देखा नहीं गया बेचारे के सभी रिकॉर्ड को एक – एक कर तोड़ डाला प्रसाद जी ने अपनी काबिलियत के दम पर वर्षों में जो मुकाम हासिल किया था, केजरीवाल साहब ने मात्र कुछ महीनों में ही उस मुकाम से काफी ऊपर पहुँचने में सफलता हासिल कर ली है बेनी साहब इस बात को लेकर केजरीवाल साहब से बहुत नाराज बताये जाते हैं सूत्रों से मिली ख़बर के अनुसार वो केजरीवाल जी के ऊपर कॉपी राईट एक्ट के तहत मुकदमा करने के बारे में भी सोच रहे हैं उनका कहना है कि ताउम्र उन्होंने भले ही यू टर्न लिया हो परन्तु किसी बात के लिए किसी से माफ़ी नहीं माँगी उनका गुस्सा भी जायज लगता है पिछले कुछ महीनों में केजरीवाल साहब ने इतने माफीनामा लिख डाले हैं जितनी कि बेनी साहब मीडिया के ऊपर उनकी बात को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाकर अपनी बात से मुकर जाया करते थे
यू टर्न लेने वालों की बात हो और रामबिलास पासवान साहब का नाम न लिया जाय तो यह उनके साथ नाइंसाफ़ी होगी जब से पासवान साहब राजनीति में हैं तबसे लेकर आज तक अधिकांश समय सत्तासीन पार्टी में मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं सरकार किसी भी पार्टी की हो पासवान साहब की गाड़ी यू टर्न लेकर सत्ता के गलियारे तक पहुँच ही जाती है यू टर्न लेने में बेनी बाबू की तरह इन्हें भी महारत हासिल है परन्तु कब और कहाँ से यू टर्न लेना है, इसकी समझ पासवान साहब को ज्यादा है इसीलिए इनकी गाड़ी सबसे पहले मन्त्रीमंडल के काफ़िले में शामिल हो जाती है जबकि बेनी बाबू अपनी गाड़ी को सही समय पर नहीं मोड़ पाते हैं यू टर्न लेने वाले महारथियों में चौधरी अजीत जी एवं जीतन राम माँझी का नाम भी बड़ी इज्जत से लिया जाता है ये दोनों भी समय-समय पर यू टर्न लेते रहते हैं पिछले कुछ वर्षों में सिद्धू पाजी का नाम भी इस लिस्ट में जुड़ गया है कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसने वाले पाजी आजकल इस पार्टी की शान में ताली ठोकते नज़र आते हैं अपनी ममता दीदी भी इस विधा की पक्की खिलाड़ी मानी जाती हैं एन. डी. ए. एवं यू. पी. ए. दोनों को अपने यू टर्न से चौकाने वाली दीदी कब यू टर्न ले लें कोई नहीं जानता दीदी यू टर्न लेने के लिए ट्रैक बदलने की प्रथा पर विश्वास नहीं करती हैं जब मन किया यू टर्न लेकर उल्टी दिशा से अपने सहयोगियों के ट्रैक पर ही गाड़ी दौड़ा देती हैं पिछले दो दशकों में दीदी कई बार ऐसा कर चुकी हैं  
राजनीतिक यू टर्न की बात ही निराली है यहाँ दो विरोधी दल तब तक विरोधी होते हैं जबतक कि एक यू टर्न लेकर उनकी दिशा में न चलने लगे इसका सबसे ताजा उदाहरण सपा और बसपा का गठजोड़ है राजनीतिक फायदे के लिए सपा ने ऐसा यू टर्न लिया है जिसकी उम्मीद मोदी सरकार को कत्तई न थी एक दूसरे की जानी-दुश्मन पार्टी कहलाने वाली सपा और बसपा के इस गठजोड़ से आधुनिक चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को पसीने आने लगे हैं और वो तमाम कोशिश कर रहे हैं कि इन दोनों पार्टियों की गाड़ी अलग- अलग दिशा में चलने लगे अन्यथा २०१९ के चुनाव में उन्हें नुकसान पहुँच सकता है राज्यसभा में बसपा की गाड़ी पंचर करके उन्हें लगा था कि वो बसपा को यू टर्न का फायदा नहीं लेने देंगे लेकिन इस बार बुआ और बबुआ की यह जोड़ी उनके झांसे में नहीं आई अब वो बहन जी को गेस्ट हाउस वाली पुरानी बातें याद कराने की पूरी कोशिश कर रहे हैं परन्तु बहन जी ने भी ठान लिया है कि इस यू टर्न का फायदा वो उठाकर ही रहेंगी और २०१९ में सत्ता की चाबी उनके हाथ में भी होगी
राजनीतिक यू टर्न के खेल में आम कार्यकर्ताओं की खूब फ़जीहत होती है एक दूसरे को बात-बात में देख लेने की हुंकार भरने वाले कार्यकर्ता अपने नेता के यू टर्न लेते ही ठगा महसुस करने लगता है उसे समझ में नहीं आता है कि नेताओं के बहकावे में आकर एक-दूसरे को मारने पर उतारू होकर उसे क्या हासिल हुआ ? जबकि उनका नेता यू टर्न लेते ही पल भर में सारे गिले शिकवे समाप्त कर सत्ता की मलाई हजम करने में लग जाता है प्रशासनिक अधिकारियों का हाल तो इससे भी बुरा होता है सत्तासीन पार्टी का आदेश मानने को मजबूर यह वर्ग खुद को तब ठगा हुआ महसुस करता है जब अपराध करने वाला व्यक्ति या दल यू टर्न लेकर सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा बन जाता है और अपनी जान जोखिम में डालकर सबूत इकठ्ठा करने वाला,  अपराधी व्यक्ति को मंत्री के रूप में सलाम कर रहा होता है ऐसी परिस्थिति में यह वर्ग सिर्फ मूकदर्शक बन कर रह जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान समय में राजनीतिक यू टर्न की घटनाएँ जितनी तेजी से बढ़ी हैं उनपर अंकुश कैसे लगाया जाय ताकि लोकतंत्र के अन्य घटक इसके दंश से खुद को बचा सकें

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