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झंझावातों की भट्टी

झंझावातों की भट्टी में तुम, कब तक सबको झोकोगे।  जाति-पात के बीज यहाँ  कब तक 'साहब' रोपोगे।। बॅटवारे का दंश 'दीप,' हम सबने ही झेला है।  अपनों ने ही अपनों से  खून की होली खेला है  ।। राजनीति के तवे पर , कब तक रोटी सेकोगे  ।। झंझावातों की भट्टी में.....    रोक लगाओ अब तो, बढ़ते हुए अपराधों पे।  कसो शिकंजा अब तो, हैवानों और जल्लादों पे  ।। क़ानून बनाने वाले तुम, कब तक का मौन रखोगे।। झंझावातों की भट्टी में.....    हर बेटी किसी की बेटी है, बेटी की कोई जाति नहीं  ।। धरम - तराजू तोड़ो अब, हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं।  देश चलाने वाले बोलो कब, कुम्भकर्णी नींद से जागोगे।।  झंझावातों की भट्टी में..... 

कब तक ?

हे काली ! तुम ले लो फिर,  इस धरती पर अवतार। कब तक होगी बेटी यहाँ, नरपिशाचों की शिकार।। कब तक होता रहेगा माँ, मासूमों का बलात्कार। हे काली ! तुम। .... नरभक्षी दरिन्दों ने माँ, इस कदर कहर मचाई है। एक बेटी के जिस्म को, आज फ़िर से नोंच खाई है।। हे रणचंडी ! उठा लो तुम, फिर से अपनी तलवार। हे काली ! तुम। ..... मानवता के दुश्मनों ने, इंसानियत शर्मसार किया है। एक पापा की गुड़िया संग, आज फिर बलात्कार किया ।। रौद्र रूप में आकर तुम, कर दो पापियों का संहार।। हे काली ! तुम। .... रूह कँपाती घटनाएँ माँ, नितदिन ही बढ़ रही हैं। रावण राज में सुरक्षित सीता, अपनों से भी डर रही हैं। जन्म देने वाली जननी क्यूँ, सहती यह बर्बर व्यवहार।। हे काली ! तुम। .... कोर्ट कचहरी के चक्कर में, परिजन होते बेबस लाचार। नमक छिड़कते दर्द पर नेता, मूक-बधिर बनी सरकार।  कलयुग अपने चरम पर है, पापी कर रहे हद पार।। हे काली ! तुम। ....     

आओ रिकॉर्ड बनाते हैं ..

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है।  यहाँ के लोग समानता में विश्वास रखते हैं। यानि दुनिया के कदम से कदम मिलाकर चलने में। मज़ाल है कि अलोकतांत्रिक देश का कोई पड़ोसी हम भारतीयों से आगे निकल जाये और रिकॉर्ड अपने नाम कर ले। हम भारतीय भले ही पड़ोसी देश से द्वेष नहीं रखते परन्तु सबसे बड़ी जनसँख्या वाले देश का तमगा पड़ोसी देश के पास रहे, यह भी तो बर्दाश्त नहीं कर सकते। लिहाज़ा हम भारतियों ने ठान लिया है कि जल्द ही हम चीन को जनसँख्या की दृष्टि से पीछे छोड़कर यह रिकॉर्ड अपने नाम कर लेंगे। भले ही हमें गरीबी का संत्रास झेलना पड़े, बेरोजगारी और संसाधनों के अकाल से जूझना पड़े, हर साल एक आस्ट्रेलिया की जनसँख्या भारत की सरजमीं पर उतारनी पड़े, हम पीछे नहीं हटेंगे। 'हम दो-हमारे दो' का नारा हमारे मजबूत इरादे को बदल नहीं सकता। सरकार भले ही पड़ोसी देश से आगे निकलने का जज़्बा नहीं दिखा पा रही और आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ती ही जा रही है परन्तु हम भारतीय जनसँख्या की दृष्टि से पहला स्थान हासिल करके ही दम लेंगे। सरकार सारे रिकॉर्ड अकेले तो नहीं बना सकती। आखिर हमारा भी तो कुछ फ़र्ज बनता है। ऐसा नहीं है कि रिकॉर्ड बनाने...

महंगाई के मारे, नेताजी बेचारे ( व्यंग्य )

महंगाई की मार से आज न सिर्फ आम जनता परेशान है बल्कि देश के नेताओं के सामने भी रोटी – दाल का संकट आ खड़ा हुआ है । कई नेता तो शपथ ग्रहण के तुरन्त बाद से ही परेशान हैं कि इस महंगाई डायन से कैसे निपटें । कुछ एक   नेता जी तो यह सोच – सोच कर ब्लडप्रेशर के मरीज हो चुके हैं । इसी वजह से प्रधानमंत्री महोदय आजकल बहुत चिंतित नज़र आते हैं । पिछले कुछ सालों में उन्होंने सार्वजनिक मंचों से कई बार इस बात को दोहराया है कि गरीबों का दर्द वो भली – भांति समझ सकते हैं । ये अलग बात है कि इस दौरान न गरीबों का दर्द कम हुआ है और न ही गरीबी । प्रधानमंत्री जी नोटबंदी से लेकर तमाम उपाय कर चुके हैं । वे तो पैसों का पेड़ भी लगाने को तैयार थे परन्तु पूर्व प्रधानमंत्री का मानना था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं । इसलिए इन्होंने पैसों के पेड़ वाला आईडिया ड्रॉप कर दिया । अब आप ही बताइये वो पूर्व प्रधानमंत्री की तौहीन कैसे करते ? और तो और उनके बात में दम भी था क्योंकि अगर पैसे पेड़ पर उगते तो उनके मंत्रियों को घोटाले करने की जरुरत ही नहीं पड़ती। बेचारे नेताजी पांच साल में झूठ बेईमानी और भ्रष्टाचार के बल प...