झंझावातों की भट्टी


झंझावातों की भट्टी में तुम,
कब तक सबको झोकोगे। 
जाति-पात के बीज यहाँ 
कब तक 'साहब' रोपोगे।।
बॅटवारे का दंश 'दीप,'
हम सबने ही झेला है। 
अपनों ने ही अपनों से 
खून की होली खेला है ।।
राजनीति के तवे पर ,
कब तक रोटी सेकोगे ।।
झंझावातों की भट्टी में.....  
रोक लगाओ अब तो,
बढ़ते हुए अपराधों पे। 
कसो शिकंजा अब तो,
हैवानों और जल्लादों पे ।।
क़ानून बनाने वाले तुम,
कब तक का मौन रखोगे।।
झंझावातों की भट्टी में.....  
हर बेटी किसी की बेटी है,
बेटी की कोई जाति नहीं ।।
धरम - तराजू तोड़ो अब,
हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं। 
देश चलाने वाले बोलो कब,
कुम्भकर्णी नींद से जागोगे।। 
झंझावातों की भट्टी में..... 






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