महंगाई के मारे, नेताजी बेचारे ( व्यंग्य )



महंगाई की मार से आज न सिर्फ आम जनता परेशान है बल्कि देश के नेताओं के सामने भी रोटी – दाल का संकट आ खड़ा हुआ है । कई नेता तो शपथ ग्रहण के तुरन्त बाद से ही परेशान हैं कि इस महंगाई डायन से कैसे निपटें । कुछ एक  नेता जी तो यह सोच – सोच कर ब्लडप्रेशर के मरीज हो चुके हैं । इसी वजह से प्रधानमंत्री महोदय आजकल बहुत चिंतित नज़र आते हैं । पिछले कुछ सालों में उन्होंने सार्वजनिक मंचों से कई बार इस बात को दोहराया है कि गरीबों का दर्द वो भली – भांति समझ सकते हैं । ये अलग बात है कि इस दौरान न गरीबों का दर्द कम हुआ है और न ही गरीबी । प्रधानमंत्री जी नोटबंदी से लेकर तमाम उपाय कर चुके हैं । वे तो पैसों का पेड़ भी लगाने को तैयार थे परन्तु पूर्व प्रधानमंत्री का मानना था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं । इसलिए इन्होंने पैसों के पेड़ वाला आईडिया ड्रॉप कर दिया । अब आप ही बताइये वो पूर्व प्रधानमंत्री की तौहीन कैसे करते ? और तो और उनके बात में दम भी था क्योंकि अगर पैसे पेड़ पर उगते तो उनके मंत्रियों को घोटाले करने की जरुरत ही नहीं पड़ती। बेचारे नेताजी पांच साल में झूठ बेईमानी और भ्रष्टाचार के बल पर करोड़ों अरबों का घोटाला करने के बजाय अपने फॉर्म हाउस में कुछ पेड़ ही लगवा लेते । आखिर जमीन की कमी भी तो नहीं है नेताजी के पास। अकेले वाड्रा साहब ही सभी नेताओं को जमीन उपलब्ध करा देते । लालू यादव जी को ही लें, महंगाई की वजह से उन्हें कथित तौर पर चारा तक खाना पड़ा । आजकल बेचारे का पूरा परिवार जमीन के पीछे पड़ा हुआ है । बेटा, बेटी और दामाद इस महंगाई के ज़माने में सिर्फ कुछ एक हजार करोड़ की जमीन ले लिए तो विपक्षी हाय तौबा मचा रहे । गडकरी साहब भी पेशे से किसान ही हैं सो उनके पास भी थोड़ी बहुत जमीन है जो उन्होंने मेहनत के  बल पर हासिल की है । पवार साहब इतने दिन कृषि मंत्री रहे तो उनके पास भी जमीन होना जरुरी है वरना लोग ताने देते की वो कैसे कृषिमंत्री बन गए थे जब उनके पास जमीन ही नहीं थी । अब खुर्शीद साहब सबसे पीछे कैसे रहते ? उन्होंने भी बहुत मेहनत करके किसी तरह 71 लाख का इन्तेजाम किया था जिससे वो जमीन खरीदने वाले थे लेकिन केजरीवाल साहब से ये देखा नहीं गया। खैर खुर्शीद साहब के लिए सबसे मुश्किल पैदा किया बेनी जी ने । जिस पैसे को उन्होंने जमीन खरीदने के लिए इकठ्ठा किया था बेनी जी ने यह कहकर उन्हें निराश कर दिया कि महंगाई के ज़माने में आजकल 71 लाख में क्या मिलता है ? बेचारे खुर्शीद जी अब क्या करते ?  उन्हें बतौर कानून मंत्री कानून का पालन भी तो करना था , अन्य मंत्रियों जैसे कानून की धज्जियाँ उड़ाकर वो पैसे कैसे बनाते ? अभी कुछ दिन पहले की ही बात है , आज़म खान साहब ने जो जमीन बड़ी मेहनत से खरीदी थी, मीडिया को उसमें भ्रष्टाचार दिख गया । अरे भाई नेता जी की अपनी भी बचत होती है । बेचारे ने अपने बेटे के पॉकेट खर्च में से कुछ सौ करोड़ खर्च किया था, साथ ही साथ बेग़म से कुछ सौ करोड़ उधार लिया था जो उन्होंने रसोई खर्च से कटौती कर जुटाये थे और विपक्ष उनके पीछे पड़ गया । अब बादल साहब को ही लें, बेचारे को बस चलवानी पड़ रही है । अपनी बहन जी का बजट भी कुछ गड़बड़ ही चल रहा है नहीं तो क्या पड़ी थी उन्हें नसीम भाई से पैसे मांगने की । केजरीवाल साहब की हालत तो और ज्यादा पतली हो गयी है, बेचारे कथित तौर पर जैन साहब से सिर्फ़ दो करोड़ लिए और मिश्रा जी उनके पीछे पड़ गये । मिश्रा जी को सोचना चाहिए कि साहब महंगाई के ज़माने में सिर्फ दो करोड़ लेकर काम चला रहे और एक वो हैं कि उनके ऊपर शक कर रहे । साहब ने पार्टी के नेताओं के लिए क्या कुछ नहीं किया ? सैलरी तीन गुनी तक करने का प्रस्ताव लाया, जो विधायक मंत्री नहीं बन पाए थे उन्हें कई सुविधाएं उपलब्ध कराई, दिल्ली जैसे महंगे शहर में कईयों को कार्यालय आवंटित कराया, अब भला वो इससे ज्यादा क्या करते ? उनका भी तो परिवार है, तरह – तरह के खर्चें हैं और इस महंगाई के ज़माने में मुख्यमंत्री की पगार और कुछ भत्तों से तो घर चल नहीं सकता । इसलिए उनकी ईमानदारी पर शक करके मिश्र जी ने ठीक नहीं किया । सिद्धू साहब को तो घर चलाने के लिए ओवरटाइम भी करना पड़ रहा है । अब आप ही बताइये इस महंगाई के ज़माने में अगर कोई नेता कुछ करोड़ कमा ले तो इसमें बुरा क्या है ? माननीयों की हालत इतनी ख़राब है कि इनके पास खाने के पैसे ही नहीं, नहीं तो क्या मजाल की ये कैंटीन में सब्सिडी वाला खाना खाते । प्रधानमंत्री जी भले साठ हजार महीना कमाने वाले से सब्सिडी छोड़ने की अपील करें परन्तु उन्हें सांसदों की माली हालत पता है इसीलिए उन्होंने कभी भी इनसे सब्सिडी छोड़ने का आग्रह नहीं किया । इस महंगाई के ज़माने में माननीयों को फोन बिल के मात्र पन्द्रह हज़ार ही मिलते हैं जिसमें वो किसी तरह से क्षेत्र की जनता से संवाद स्थापित कर पाते हैं । अब नेता जी पांच सौ और हजार वाली मोबाइल कंपनियों की स्कीम नहीं प्रयोग में लाना चाहते जो असीमित कॉल उपलब्ध करा रहीं हैं तो इसमें उनका क्या दोष ? माननीयों को महंगाई परेशान न करे, इसीलिए राज्य और केंद्र सरकार ने एक छोटी सी रकम पेंशन के रूप में भी देने का फैसला किया हुआ है । अब बेचारे माननीय जो ठहरे, भले ही एक दिन के लिए ही सही । इधर शपथ लिया और उधर आजीवन पेंशन स्कीम में नाम दर्ज हो गया । अब वो कोई  बीस – तीस हजार कमाने वाले आम नौकरीपेशा इंसान तो हैं नहीं जिसे टैक्स देने के अलावा भविष्य के लिए भी पैसे जुटाने हैं । अब डीजल और पेट्रोल इतना महंगा हो गया है कि माननीयों को मिलने वाले वाहन भत्ते से काम नहीं चलता । इसीलिए वो क्षेत्र में ज्यादातर दिखाई नहीं देते । और आप हैं कि हमेशा शिकायत करते फिरते हैं कि नेता जी चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में कभी दिखाई नहीं दिए । अरे भाई आप उनके दर्द को समझिये, वो किस तरह महंगाई की मार झेलने को विवश हैं ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छपास रोग ( व्यंग्य )

सूरजकुण्ड मेला : नये सन्दर्भों में परम्परा का ताना- बाना

मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक