आओ रिकॉर्ड बनाते हैं ..

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है।  यहाँ के लोग समानता में विश्वास रखते हैं। यानि दुनिया के कदम से कदम मिलाकर चलने में। मज़ाल है कि अलोकतांत्रिक देश का कोई पड़ोसी हम भारतीयों से आगे निकल जाये और रिकॉर्ड अपने नाम कर ले। हम भारतीय भले ही पड़ोसी देश से द्वेष नहीं रखते परन्तु सबसे बड़ी जनसँख्या वाले देश का तमगा पड़ोसी देश के पास रहे, यह भी तो बर्दाश्त नहीं कर सकते। लिहाज़ा हम भारतियों ने ठान लिया है कि जल्द ही हम चीन को जनसँख्या की दृष्टि से पीछे छोड़कर यह रिकॉर्ड अपने नाम कर लेंगे। भले ही हमें गरीबी का संत्रास झेलना पड़े, बेरोजगारी और संसाधनों के अकाल से जूझना पड़े, हर साल एक आस्ट्रेलिया की जनसँख्या भारत की सरजमीं पर उतारनी पड़े, हम पीछे नहीं हटेंगे। 'हम दो-हमारे दो' का नारा हमारे मजबूत इरादे को बदल नहीं सकता। सरकार भले ही पड़ोसी देश से आगे निकलने का जज़्बा नहीं दिखा पा रही और आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ती ही जा रही है परन्तु हम भारतीय जनसँख्या की दृष्टि से पहला स्थान हासिल करके ही दम लेंगे। सरकार सारे रिकॉर्ड अकेले तो नहीं बना सकती। आखिर हमारा भी तो कुछ फ़र्ज बनता है।
ऐसा नहीं है कि रिकॉर्ड बनाने के मामले में सरकार उदासीन है। वह लगातार प्रयास कर रही है जिसमें हम भारतीयों की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि हम सरकार का सहयोग करें। अब डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होते रूपये के रिकॉर्ड को ही लें, हम भारतीयों ने जी-जान से इसमें योगदान दिया है और सरकार इस रिकॉर्ड में हमारे योगदान को अनदेखा नहीं कर सकती। अगर हम चीन और अमेरिका जैसे देशों का महँगा सामान नहीं खरीदते, विदेश की यात्राएं नहीं करते, तो सरकार किसी भी क़ीमत पर रूपये को सबसे निचले स्तर पर पहुंचाने का रिकॉर्ड हासिल नहीं कर पाती।
दुनिया ने हम भारतीयों को गरीब समझ लिया था इसलिए हम सबने मिलकर आई-फोन ११ खरीद कर एक नया रिकॉर्ड बना डाला। मज़ाक थोड़े है कि हम भारतीयों को कोई गरीब समझे और हम कोई प्रतिक्रिया न दें। भला ऐसा हो सकता है कि कोई नया फोन बाज़ार में आये और हम उसे खरीद कर एक कीर्तिमान न स्थापित करें। अब यह अलग बात है कि गरीबी के मामले में भी हमने जो रिकॉर्ड बनाया है वह विश्व रिकॉर्ड है जिसे हम किसी देश द्वारा तोड़ने नहीं देंगे। भला २७ रूपये से कम का गरीबी रेखा से नीचे रहने का रिकॉर्ड हम भारतीयों के अलावा कोई अपने पास रख सकता है क्या ? हम तो सरकार से आग्रह करते हैं कि गरीबी रेखा का मानदण्ड थोड़ा और नीचे ले आये ताकि हम भारतीय एक नया कीर्तिमान बना सकें। भ्रष्टाचार के मामले में भी हम निरन्तर एक कीर्तिमान की  तरफ अग्रसर हैं और उम्मीद करते हैं कि एक न एक दिन यह रिकॉर्ड भी हमारे पास होगा। विश्व भ्रष्टाचार सूचकांक में भले ही हम थोड़े पीछे चल रहे परन्तु पूर्ण विश्वास है कि जिस तेजी से हमारे भाई-बन्धु भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं, जल्द ही यह उपलब्धि भी हमारे नाम होगी और विश्व के तमाम देश हमसे जल उठेंगे।
अभी-अभी ताजा ख़बर आई है कि विश्व के ३०० प्रमुख विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। इस ख़बर ने हम भारतीयों को एक नया लक्ष्य दे दिया है, जल्द से जल्द हम ५०० का आंकड़ा  प्राप्त कर लेंगे। कुछ ही सालों में जिस तरह से हम २०० प्रमुख विश्वविद्यालयों की सूचि से निकलकर ३०० का आकड़ा पीछे छोड़ दिए हैं, वह दिन दूर नहीं जब हम १००० का आकड़ा भी पार कर लेंगे और दुनिया देखती की देखती रह जाएगी। हम अपने पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान को किसी क़ीमत पर अपने से आगे नहीं निकलने देंगे। बस हमारे प्रयास में कमी नहीं आनी चाहिए। ऐसे ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग जारी रखना चाहिए एवं ऐसे लोगों को उच्च शिक्षण संस्थानों की कमान सौपनी चाहिए जिनका उच्च शिक्षा से कोई वास्ता न हो। सरकार इस दिशा में निरन्तर प्रयासरत दिखती है, हमें बस धैर्य के साथ सरकार के निर्णयों पर विश्वास करना चाहिये और हो सके तो शिक्षक बन्धुओं को अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ाकर शैक्षिक क्रिया-कलापों में कम रूचि लेनी चाहिए जिससे हम इस क्षेत्र में भी ऊंचाई पर पहुँच सकें।
आरक्षण की बेड़ियाँ पहनाकर प्रतिभाओं का गला घोंटने में भी हम निरन्तर एक रिकॉर्ड की तरफ़ अग्रसर हैं। जल्द ही हम आरक्षण के एक ऐसे लक्ष्य को हासिल कर लेंगे जिसे दुनिया का कोई देश सपने में भी हासिल करने का नहीं सोच सकता। अब आप सोच रहे होंगे कि हमारे देश में पैदा होने वाली प्रतिभाओं का क्या होगा ? अरे भाई ! आप लोग भी बड़े निराशावादी क़िस्म के लोग हैं, पता नहीं आप लोग सरकार की दूरदर्शी योजनाओं को क्यों नहीं समझना चाहते। जब शून्य अंक पाने वाला गणित और विज्ञान पढ़ायेगा तो प्रतिभा इस देश में खुद ब खुद पैदा होने से मना कर देगी। और सरकार को प्रतिभावान व्यक्तियों के लिए नौकरी देने की चुनौती नहीं रहेगी। आप लोगों को सरकार को कोसने का बहाना चाहिए। आप लोग  सोच रहे होंगे कि अगर गलती से कोई प्रतिभा हमारे देश में पैदा हो गयी तो उसका क्या होगा ? आप निश्चिन्त रहिये।  हमारी सरकार ने इसके विषय में सोचने का कार्य पहले ही ट्रम्प अंकल को सौंप दिया है और वह सरकार को निराश करेंगे, ऐसा प्रतीत नहीं होता है।
आप अपने बच्चों को बस आरक्षण की बैसाखी देकर खुश होते रहिये और ब्रिटेन एवं अमेरिका इस देश से प्रतिभा को निचोड़ते रहेंगे। नित् नये कीर्तिमान हासिल करते रहिये। बिना रुके और बिना सोचे।  सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश आज विश्व पटल पर गरीबी और महंगाई से जूझ रहा है। नालन्दा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों वाला देश निरन्तर शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है।  आर्यभट्ट के इस देश में प्रतिभा का अकाल न पड़ जाये।  आखिर हम भारतीय पीछे क्यूँ रहें ? हमारा भी तो कुछ फ़र्ज बनता है सरकार के साथ कुछ कदम से कदम चलने और रिकॉर्ड बनाने में सहयोग करने का। हमे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले दिनों में कुछ नये रिकॉर्ड हासिल करेंगे।

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