कसक
वो हमसे रूठ कर न जाने किधर गये, मेरे घर न आये न अपने शहर गये |
न ख़त आया उनका न आया पैगाम, इंतज़ार में उनके कई सावन गुजर गये ||
फासले बढ़ते गये दोनों के दरमियां, होते थे जो कभी दो जिस्म- एक जां |
दबीज होने लगी है उन यादों की कब्र, जिन यादों के सहारे वर्षों गुजर गये ||
कफ़स बन गयी हिज्र की वो शाम, बच गया मेरी दुनिया में जजीरे इन्हिदाम |
जो ख़्वाब मेरे सीने में दफ्न हैं उनके, कैसे करूँ ‘दीप’ उन ख्वाबों को नीलाम ||
मयस्सर नहीं प्यार उनका कोई बात नहीं, कैसे कहूँ दिल में उनके जज्बात नहीं |
भीगी पलकें कराती हैं एहसास हर सुबह, न आये मेरे ख्वाब में कोई रात नहीं ||
उनकी तस्वीर को सीने से लगा रखा है, यादों की दिल में दुनिया बसा रखा है |
कहीं किसी मोड़ पर होगी मुलाकात, इस उम्मीद में खुद को जिन्दा रखा है ||
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