मजदूर ही तो हैं
बेबस लाचार गरीब मजबूर ही
तो हैं |
छले जाते हैं ये ताउम्र
ज़िन्दगी में,
वक्त के मारे मिट्टी के
कोहिनूर ही तो हैं ||
दुःख में मुस्कुराने का
हुनर आता इन्हें,
सदियों से ही कुचला जाता है
जिन्हें |
कीड़े-मकोड़े से ज्यादा वजूद
नहीं कोई,
सुख गढ़ते हैं पर सुख से दूर
ही तो हैं ||
गाँव से शहर भाग आते हैं
अभागे,
लाते हैं साथ ये जिम्मेदारियों
के धागे |
बहन का सम्मान और पिता की
लाठी,
माँ के आँखों के ये नूर ही
तो हैं ||
गर्मी जाड़ा हो या भयंकर
बरसात,
सुहानी सुबह हो या फिर काली
रात |
हर रोज ही अपनी हड्डियों को
गलाते,
खुद के अरमान जलाते तन्दूर
ही तो हैं ||
आपके सपनों का महल हैं ये बनाते,
भगा देते हैं आप साहब इनको
रुलाके |
बहुत कुछ कहती हैं नम आँखें
इनकी,
कसूर इतना है कि बेक़सूर ही
तो हैं ||
बड़ा दर्द है ‘दीप’ इनकी
सिसकियों में
मोल नहीं जिनका सत्ता की
गलियों में |
मौत पर बहा देते कुछ
घड़ियाली आँसू,
राजशाही के लिए ये गैर-जरूर
ही तो हैं ||
जिस शहर को अपने पसीने से
सींचा,
उस शहर से लौट रहे बेगरूर
ही तो हैं |
भूलकर जख्म लौट आयेंगे कल
फिर,
आपके नजर में ये जी-हुजूर
ही तो हैं ||
Majdooro ke drd ko. Shabad de diye
जवाब देंहटाएंATI Sundar Bhai
जवाब देंहटाएंइन लाचर मजदूरों की दुर्दशा की कोई सुनवाई नहीं ये बेचारे जरूरत पड़ने पर जिनकी सेवा की वहीं लोग आज इनकी दुर्दशा के असली गुनहगार है इन्हीं मजदूरों कि वजह से जो आज ऊंची मजिलो में रहते है आज वही उनके असली गुनहगार है।
जवाब देंहटाएंTrue
हटाएं